सेहत सुधारने वाली फसल - चना
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मणिशंकर उपाध्याय चना भारत की प्राचीन समय से उगाई जाने वाली फसल है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार इसका मूल स्थान अफगानिस्तान है। चना, दलहन वर्ग की फसल है। चने की फसल पक जाने पर इसकी जड़ों में बची अवशेष नत्रजन अगली फसल को मिल जाती है। जड़ों व पौधों की पत्तियों, डंठल आदि भूमि में जीवांश की वृद्धि करते हैं। आंचलिक दलहन अनुसंधान केंद्र, कृषि महाविद्यालय, इंदौर की पौध प्रजनन की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मृदुला बिल्लौरे द्वारा समर्थित चने की प्रमुख उन्नत किस्में इस प्रकार हैं:-देशी चने की किस्में : आईसीसीवी 88202-जवाहर चना-11इंदौर चना - 370 जवाहर चना-218 जवाहर चना - 412 इंदौर चना 226 जवाहर चना 315 उज्जैन - 21 जवाहर चना - 16 जवाहर चना 103 काबुली चने की किस्में : जवाहर चना काबुली -1 काक -1 आईसीसीवी - 2 कितना बीज बोएँ- छोटे दाने वाली किस्मों के लिए बीज की मात्रा 70-80 किलोग्राम और बड़े, मोटे बीज वाली किस्मों के बीज की 90-100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखी जाती है। बुवाई कब करें चने की बुवाई गेहूँ के समान ही मौसम में ठंडक आने पर की जाती है। सामान्य रूप से 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच कर दी जाती है। जिन खेतों में खरीफ में सोयाबीन के बाद अगेती आलू लिया हो, वे खेत नवंबर अंत तक खाली हो पाते हैं। ऐसे खेतों में भी पर्याप्त सिंचाई उपलब्ध हो तो चने की देरी से बोई जाने वाली किस्मों को 10 दिसंबर तक भी बोया जा सकता है।