PR
PRआतंकवाद और तकनीक आज एक दूजे के पक्के साथी बन गए हैं। जैसे-जैसे मुंबई बम हमलों के षडयंत्र की परतें खुल रही है यह बात सामने आ रही है कि मोबाइल और इंटरनेट तकनीक ने आतंकवादियों का किस तरह से सहयोग किया। दुनिया में बढते आतंकी नेटवर्क और उससे मुकाबला कर रही सुरक्षा एजेंसियों के बीच मानो होड़ लगी रहती है कि कौन पहले तकनीक का इस्तेमाल करता है।
जाली पहचान बनी परेशानी: मुंबई हमलों की जाँच के दौरान पता चला कि बांग्लादेश के एक व्यक्ति ने आतंकवादियों को सिम कार्ड और जाली आईडी कार्ड पश्चिमी देशों जैसे मॉरिशस, यूके, यूएस, ऑस्ट्रेलिया के जरिए मुहैया कराए। हमले में मारे गए एक आतंकी के पास मॉरिशस का आइडेंटिटी कार्ड बरामद हुआ था। आतंकवादी जिस बोट से मुंबई में घुसे थे उसमें एक सैटेलाइट फोन पाया गया जहाँ से जलालाबाद में किए गए कॉल्स का विवरण डिटेल था। ये कॉल्स आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा के प्रमुख जाकिरउर्रहमान को किए गए थे।
आतंकियों की सुरक्षित वापसी के रास्ते को उनके साथियों ने जीपीएस डिवाइस में स्टोर करके रखा था। बोट में ग्लोबल पॉजिशनिंग सिस्टम मैप भी मिला है। जिसके जरिए कॉल्स और बोट द्वारा कराची से कोलाबा (मुंबई) तक यात्रा की जानकारी मिली है। साथ ही सेटेलाइट फोन के रिकॉर्ड से यह पता लगाया गया कि बोट में कॉल कहाँ-कहाँ से आए थे।

PR
PRसोचने की गति से बाहर आती खबरें:
मुंबई के होटल ताज पर आतंकी हमला शुरु होने के बाद ट्विटर पर हर 5 सेकेंड में 70 ट्वीट्स पोस्ट किए जा रहे थे या भेजे जा रहे थे। मुंबई हमलों की ब्रेकिंग न्यूज भी ट्विटर, फ्लिकर और एसएमएस के जरिए बाहर आई। मुंबई के एक ब्लॉगर ग्रुप ने अपने मेट्रोब्लॉग का उपयोग हमलों के दौरान संदेश के आदान-प्रदान के लिए किया। इसी तरह हमले में फँसे होटल के लोगो को भी होटल स्टाफ एसएमएस और मोबाइल के जरिए सतर्क कर रहा था।
आतंकी हमले की खबर की पुष्टि होने के 1 मिनट बाद ही मुंबई हमलों के बारे में विकीपिडिया पर एक विशेष पेज सेट कर दिया गया था। जिन जगहों पर हमले हुए थे उनके बारे में ताजा जानकारी इंटरनेट पर लगातार उपलब्ध हो रही थी, गूगल मैप पर हमले वाली इमारतों की लोकेशंस को दिखाया जा रहा था।