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मुद्रा बनाने की विधि : अपने हाथ की अनामिका और मध्यमा अंगुली को अंगूठे के आगे के भाग को छुआ कर बाकी बची तर्जनी और कनिष्ठा अंगुली को सीधा तान देने से मृगी मुद्रा बन जाती है।
योग आसन - इस दौरान उत्कटासन, सुखासन और उपासना के समय इस्तेमाल होने वाले आसन किए जा सकते हैं।
अवधि/दोहराव- इस मुद्रा को सुविधानुसार कुछ देर तक कर सकते हैं और इसे तीन से चार बार किया जा सकता है।
मृगी मुद्रा का लाभ ( mrigi mudra benefits ): मृगी मुद्रा करते समय अंगूठे के पोर और अंगुलियों के जोड़ पर दबाव पड़ता है। उक्त दबाव के कारण सिरदर्द और दिमागी परेशानी में लाभ मिलता है। एक्युप्रेशर चिकित्सा के अनुसार उक्त अंगुलियों के अंदर दांत और सायनस के बिंदु होते हैं जिसके कारण हमें दांत और सहनस रोग में भी लाभ मिलता है।
विशेष- माना जाता है कि इस मुद्रा को करने से सोचने और समझने की शक्ति का विकास भी होता है। मृगी मुद्रा मिर्गी के रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी है।
-वेबदुनिया डेस्क