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Written By WD
Last Updated : बुधवार, 19 जून 2024 (15:27 IST)

योनि मुद्रा योग का चमत्कार

yogasan
योनि मुद्रा योग। हस्त मुद्राएं कई प्रकार की होती है और उन सबके अलग अलग स्वास्थ्‍य लाभ हैं। यौगिक दृष्टि योग मुद्राओं में योनि मुद्रा को भी खास महत्व मिला हुआ है। हालांकि तंत्रशास्त्र में इसका अलग महत्व है लेकिन यहां यह मुद्रा प्राणवायु के लिए उत्तम मानी गई है। यह बड़ी चमत्कारी मुद्रा है|
 
विशेष : इस योनि हस्त मुद्रा योग (yoni mudra yoga) के निरंतर अभ्यास के साथ मूलबंध क्रिया भी की जाती है। योनि मुद्रा को तीन तरह से किया जाता है। ध्यान के लिए अलग, सामान्य मुद्रा अलग लेकिन यहां प्रस्तुत है कठिनाई से बनने वाली मुद्रा का विवरण।
 
योनि मुद्रा विधि : पहले किसी भी सुखासन की स्थिति में बैठ जाएं। फिर दोनों हाथों की अंगुलियों का उपयोग करते हुए सबसे पहले दोनों कनिष्ठा अंगुलियों को आपस में मिलाएं और दोनों अंगूठे के प्रथम पोर को कनिष्ठा के अंतिम पोर से स्पर्श करें।
 
फिर कनिष्ठा अंगुलियों के नीचे दोनों मध्यमा अंगुलियों को रखते हुए उनके प्रथम पोर को आपस में मिलाएं। मध्यमा अंगुलियों के नीचे अनामिका अंगुलियों को एक-दूसरे के विपरीत रखें और उनके दोनों नाखुनों को तर्जनी अंगुली के प्रथम पोर से दबाएं।
 
आध्यात्मिक लाभ : योनि मुद्रा बनाकर और पूर्व मूलबंध की स्थिति में सम्यक् भाव से स्थित होकर प्राण-अपान को मिलाने की प्रबल भावना के साथ मूलाधार स्थान पर यौगिक संयम करने से कई प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं|
 
भौतिक लाभ : अंगूठा शरीर के भीतर की अग्नि को कंट्रोल करता है। तर्जनी अंगुली से वायु तत्व कंट्रोल में होता है। मध्‍यमा और अनामिका शरीर के पृथ्वी तत्व को कंट्रोल करती है। कनिष्ठा अंगुली से जल तत्व कंट्रोल में रहता है।
 
इसके निरंतर अभ्यास से जहां सभी तत्वों को लाभ मिलता है वहीं इससे इंद्रियों पर नियंत्रण रखने की शक्ति बढ़ती है।
 
इससे मन को एकाग्र करने की योग्यता का विकास भी होता है। यह शरीर की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकारात्मक का विकास करती है। इससे हाथों की मांसपेशियों पर अच्छा खासा दबाव बनता है जिसके कारण मस्तिष्क, हृदय और फेंफड़े स्वस्थ बनते हैं।
 
-anirudh joshi (shatayu)