लगभग ढाई दशक से राजनीति में सक्रिय कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने साल 2024 में अपनी चुनावी राजनीति की पारी का आगाज किया। भाई राहुल गांधी के केरल की वायनाड लोकसभा सीट से इस्तीफे के बाद हुए उपचुनाव में उतरी प्रियंका गांधी ने 4 लाख से अधिक वोटरों से जीत दर्ज कर अपनी संसदीय पारी का आगाज किया। कभी 17 साल की उम्र में अपने पिता राजीव गांधी के साथ चुनावी प्रचार में शामिल होने और कई मौकों पर संसद में दर्शक दीर्घा से अपने पिता, मां और भाई के भाषणों की साक्षी बनने वाली प्रियंका गांधी अब लोकसभा की सदस्य है। यह संयोग या सियासत है कि अपनी दादी इंदिरा गांधी, मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के बाद अब प्रियंका गांधी भी लोकसभा में दक्षिण भारत का प्रतिनिधित्व कर रही है।
हाथ में संविधान की प्रति लेकर संसद की सदस्यता की शपथ लेने वाली प्रियंका गांधी ने शीतकालीन सत्र में खूब सुर्खियां बटोरी। सदन की सदस्यता की शपथ लेते हुए प्रियंका गांधी ने जिस अंदाज में संविधान की लाल किताब पकड़ी हुई थीं, उससे उनकी भविष्य की राजनीति का साफ तौर पर अंदाजा लगाया जा सकता है। वहीं सत्र के दौरान प्रियंका गांधी के हर दिन बदलते हैंड बैग खासा चर्चा के केंद्र में रहे। प्रियंका ने अपने हैंड बैग के जरिए मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। वहीं एक देश-एक चुनाव पर संसद की जेपीसी के सदस्य के तौर पर अब 2025 में प्रियंका गांधी मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ाने वाली है।
कांग्रेस की नई संकटमोचक बन पाएगी प्रियंका गांधी?-प्रियंका गांधी कांग्रेस की महासचिव होने के साथ कांग्रेस वर्किंग कमिटी की मेंबर हैं और करीब डेढ़ दशक से कांग्रेस की स्टार प्रचारक रही है। वहीं पिछले कुछ सालों से कांग्रेस के हर बड़े फैसले में उनकी प्रमुख भूमिका रही है। करीब डेढ़ दशक से राजनीति में सक्रिय प्रियंका गांधी की पहचान कांग्रेस पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार के तौर पर होती रही है। प्रियंका गांधी ने साल 2022 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा की कमान अपने हाथों में ली और विधानसभा चुनाव में ताबड़तोड़ सभा कर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने का रास्ता साफ किया। वहीं प्रियंका गांधी कई मौकों पर कांग्रेस के लिए संकटमोचक की भूमिका भी निभाती रही हैं. राजस्थान में सचिन पायलट के बागी रुख अपनाने के बाद पैदा हुए राजनीतिक संकट के समाधान में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी।
2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के चुनाव प्रचार की कमान संभालने वाली प्रियंका गांधी की छवि एक अक्रामक राजनेता की है। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को जो सफलता मिली है उसके पीछे प्रियंका गांधी की प्रमुख भूमिका मानी जा रही है। बतौर उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी ने पिछले 5-7 सालों में राज्य में पार्टी संगठन को खड़ा करने की जो कोशिश की उसका फायदा इस बार लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिला। लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में मोदी-योगी की जोड़ी पर भारी पड़ने वाली राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जोड़ी को पहली बार प्रियंका गांधी ही 2017 में एक मंच पर लेकर आई थी। प्रियंका गांधी ने जिस अंदाज में उत्तर प्रदेश में सड़क पर उतकर भाजपा सरकार को चुनौती दी उसका असर लोकसभा चुनाव में भी दिखाई पड़ा और कांग्रेस ने सपा के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश भाजपा को पीछे छोड़ दिया।
देश की सियासत में 2014 के बाद मोदी युग का आगाज होने के बाद बाद चुनाव-दर चुनाव कांग्रेस को मिलती हार के बाद जहां राहुल के नेतृत्व पर सवाल उठे वहीं भाजपा ने राहुल गांधी को एक असफल राजनेता साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। ऐसे में अब प्रियंका गांधी की चुनावी राजनीति में एंट्री के साथ उनकी संसदीय पारी का आगाज कांग्रेस संगठन और उसके कार्यकर्ताओं में नई जान फूंक सकता है। दरअसल प्रियंका गांधी लंबे समय से कांग्रेस पार्टी के संकट मोचक की भूमिका निभाती आई है।
दरससल राहुल के मुकाबले प्रियंका गांधी की राजनीति कई मायनों में अलग है। प्रियंका गांधी अपनी सरलता और बेधड़क अंदाज से लोगों से तुरंत कनेक्ट कर लेती हैं। प्रियंका गांधी ने ऐसे समय अपनी संसदीय पारी का आगाज किया है जब देश में महिलाएं राजनीति के केंद्र में है और वह चुनाव में जीत के लिए ट्रंप कार्ड साबित हो रही है। ऐसे में महिलाओं के साथ प्रियंका गांधी का सीधा कनेक्ट कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो सकता है।
प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी का अक्स- कांग्रेस की राजनीति का केंद्र बनी प्रियंका गांधी में पार्टी कार्यकर्ता उनकी दादी इंदिरा गांधी का अक्स देखते है। संसद के शीतकालीन सत्र में प्रियंका गांधी जिस तरह नजर आई उससे लोगों के जेहन में इंदिरा गांधी की छवि ताजा हो गई। केरल की ट्रेड्रिशनल कासव साडी पहनकर संसद पहुंची प्रियंका गांधी में कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता उनकी दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की छवि देखते है। प्रियंका गांधी आज कांग्रेस का भीड़ को आकृषित करने वाला सबसे बड़ा चेहरा है।
प्रियंका गांधी ने जब यूपी चुनाव में “लड़की हूं लड़ सकती हूं” का नारा दिया तो उन्होंने महिलाओं के बीच अपनी एक अलग जगह बना ली। देश में जो 30- 40 साल से ऊपर की महिलाएं हैं वे प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी का रूप देखती हैं। प्रियंका गांधी अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरफ अक्रामक राजनीति में विश्वास करती है और वह जिस अंदाज में भाजपा पर हमला बोल रही है उससे वह अपने समर्थकों में खासा लोकप्रिय हो रही है।
इंडिया गठबंधन का प्रियंका करेगी नेतृत्व?-प्रियंका गांधी ने एक ऐसे समय अपनी सक्रिय राजनीति का आगाज किया है जब कांग्रेस की अगुवाई वाला इंडिया गठबंधन में नेतृत्व को लेकर घमासान मचा हुआ है। 2024 में हुए लोकसभा चुनाव के बार हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है उससे न केवल भाजपा को ब्लकि इंडिया गठबंधन में शामिल अन्य छोटे दलों को भी राहुल गांधी पर हमला करने का मौका मिल गया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जिस तरह से खुलकर इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने की इच्छा जताई और विपक्षी गठबंधन में शामिल पार्टयों ने ममता का समर्थन कांग्रेस के लिए तगड़ी चुनौती खड़ा कर दी है।
प्रियंका गांधी के सामने चुनौती?-भारत के संसदीय इतिहास में यह पहला मौका है जब गांधी परिवार के एक साथ तीन सदस्य संसद में है। ऐसे में भाजपा परिवारवाद को लेकर अब गांधी परिवार पर और मुखर होगी। वहीं भाजपा के पति रॉबर्ट वाड्रा के जरिए भी प्रियंका गांधी को घेरने की पूरी रणनीति तैयार कर रही है। प्रियंका गांधी के सामने पार्टी के कैडर को फिर से खड़ा करना एक बड़ी चुनौती होगी। पार्टी के बड़े नेताओं के साथ चुनाव दर चुनाव हार से पार्टी के कार्यकर्ता मायूस होकर पार्टी का साथ छोड़ रहे हैं या छोड़ चुके है। ऐसे में प्रियंका के सामने चुनौती पूरे देश में पार्टी के कैडर को फिर से खड़ा करना जिससे कि वह भाजपा का सामना कर सके। बहराल राहुल गांधी इस काम में पूरी तरह असफल ही दिखाई दिए है।
दो दशक से अधिक समय तक कांग्रेस की अध्यक्ष रही सोनिया गांधी ने 1998 में पहली बार पार्टी की कमान संभाली थी, तब कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही थी। सोनिया गांधी के नेतृत्व में ही कांग्रेस पार्टी ने 2004 से लेकर 2014 तक केंद्र की सत्ता में काबिज हुई थी। ऐसे में अब कांग्रेस को प्रियंका गांधी में नई उम्मीद और राह दिखाई दे रही है और देखना होगा क्या प्रियंका गांधी कांग्रेस की सत्ता में वापसी करा पाएगी। अब देखना होगा कि साल 2025 में प्रियंका गांधी हार के सियासी भंवर में फंसी कांग्रेस को जीत की नैय्या पर सवार करा पाएगी या अभी उनको इसके लिए लंबा इंतजार करना होगा।