गुरुवार, 28 नवंबर 2024
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Written By शैफाली शर्मा

स्नेह की प्रतीक नारी

स्नेह की प्रतीक नारी -
ND
'छोटे से आशियाने में पूरी दुनिया बसाकर, दहलीज़ के दोनों पार अपना फैलाव किया है तूने'

औरत, जो सिर्फ प्यार करना जनती है, उसे नहीं आता रिश्तों को स्तरों में विभाजित करना, वो जानती है सिर्फ अपनी भावनाओं को रिश्ते के अनुसार ढाल लेना, जैसे पानी को आप जिस रंग में घोलते हैं वो उस रंग का हो जाता है।

एक आम इंसान की तरह उसकी भी एक सपनों की दुनिया होती है, जिसे एक घर का रूप देकर वह साक्षात कर देती है, उस घर में सपनों का हमेशा स्वागत होता है लेकिन ऐसे सपनों का जिसका साकार रूप उसके घर के आंगन में फूल बनकर महके।

उस आंगन की मिट्टी को अपनी ममता, स्नेह, सामंजस्य और तटस्थता से सींच कर उसे पवित्र कर देने वाली नारी के अपने कुछ सपने होते हैं जिसे लेकर जब वो घर की दहलीज़ पार करती है तो यथार्थ की कड़ी धूप में बहता पसीना उसके चेहरे की मासूमियत को कई बार बहा देता है। तटस्थता और कठिन तपस्या का ही तो फल है कि इसके बावज़ूद औरत ने घर और घर के बाहर दोनों ही क्षेत्रों में अपनी जगह बना ली है।
  औरत, जो सिर्फ प्यार करना जनती है, उसे नहीं आता रिश्तों को स्तरों में विभाजित करना, वो जानती है सिर्फ अपनी भावनाओं को रिश्ते के अनुसार ढाल लेना, जैसे पानी को आप जिस रंग में घोलते हैं वो उस रंग का हो जाता है।      


अपने संस्कारों को आधुनिकता के आँचल में सहेजती हुई वो निर्लज्जता के लांछन रूपी काले दाग से बचाती हुई बढ़ रही है। कभी लोगों के दिलों पर राज करने वाली नायिका के रूप में, कभी सिर पर पल्लू लिए देश के भविष्य की बागडोर को संभालने वाले नेता के रूप में, कभी भगवा वस्र धारण कर अकेले ही निकल पड़ती हैं पुरुषों की दुनिया में, कभी एक आदर्श शिक्षिका होती है तो कभी सिर्फ एक माँ।

एक औरत होने की लाक्षणिकताओं के साथ मर्दों की दुनिया में उनके साथ सामंजस्य बिठाना यानी बहती नदी की तरह चट्टानों और जंगलों से गुजरकर अपने दोनों किनारों के बीच खुद को नियंत्रित करना है। दहलीज़ के पार भी अपनी कोमल भावनाओं को उसी रूप में सहेजने से नारी कठोर हो जाती है।

बहुत आसान नहीं होता है यह सब करना, क्योंकि औरत जानती है सिर्फ स्नेह देना जिसका कोई अलग अलग रूप नहीं होता, स्नेह सिर्फ स्नेह होता है, फिर वो बड़ों से हो, छोटों से हो या सहकर्मी के साथ हो। ऐसे में मर्दों का उसकी भावनाओं को ज्यों का त्यों लेना बहुत कम होता है।

एक द्वंद्व से गुज़र रही औरत अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए आज भी लड़ रही है कभी दहलीज़ के अन्दर, कभी उसके बाहर तो कभी अपनी ही नस्ल से या कभी खुद से, उसके लिए हर दिन एक जीवन है जिसे उसे पूरी इमानदारी से जीकर हर रात क्या खोया क्या पाया का हिसाब लगाकर एक नये दिन को जन्म देना होता है, कोई फर्क नहीं पड़ता कि एक दिन पहले वह कितने नुकसान में रही, उससे हर बार उम्मीद रखी जाती है कि आज वो पूरा दिन इमानदारी से जिएगी अपनी कोमल भावनाओं को उसी रूप में सहेजने के लिए चाहे वो ऊपर से कितनी ही कठोर क्यों न हो जाए।