हमेशा गलत ही नहीं होती नई पीढ़ी
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सुधा मूर्ति हाल ही में मैं इजिप्ट की यात्रा पर गई। मैं मिस्र का सबसे पुराना पिरामिड देखना चाहती थी। सबसे प्राचीन पिरामिड गीजा में न होकर सक्कारो में है, जो कि कायरो से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस पाँच मंजिला पिरामिड को पहाराओ जोशेयर के लिए बनाया गया था। इसके वास्तुकार उस समय के सबसे बुद्घिमान और चतुर व्यक्ति इमेनहोटेप थे। मेरे सफर में मेरे साथ एक गाइड था, जो कि इजेप्टोलॉजी का एक अच्छा छात्र भी था। वह पिरामिडों के अभिलेखों का वर्णन कर रहा था। एक अभिलेख की ओर इशारा कर तेज आवाज में अनुवाद करते हुए उसने कहा कि आने वाली पीढ़ी के बच्चे बेहद खर्चीले होंगे, उनमें वैचारिक क्षमता कम होगी और वे जीवन के बारे में ज्यादा नहीं सोचेंगे। हम नहीं जानते उनका भविष्य क्या होगा। भगवान सूर्य ही उनकी रक्षा करेंगे। जब मुझे यह सब पढ़कर सुनाया जा रहा था, मुझे अपने ही देश की नई पीढ़ी को लेकर अक्सर सुनने में आने वाली शिकायतें याद आने लगीं- ये बच्चे हमारे विचारों का सम्मान नहीं करते, ये अशिष्ट हैं, ये ज्यादा पढ़ते नहीं हैं। इससे मुझे मालूम हुआ कि हर पीढ़ी को अपनी अगली पीढ़ी से एक समान शिकायतें होती हैं। ये सब, पीढ़ी-दर-पीढ़ी, पूरी दुनिया में, कम से कम पिछले पाँच हजार वर्षों से चल रहा है। आज की पीढ़ी के बच्चों को हमसे कहीं ज्यादा जानकारी है और हमारी पीढ़ी की तुलना में धैर्य बेहद कम है। एक दिन मैंने अपने किशोर बेटे से अचानक ही पूछ लिया- बीसवीं सदी की तीन सबसे महत्वपूर्ण क्रांतियाँ या विचार बताओ। एक क्षण के लिए उसने मेरी ओर देखाऔर कहा- आप घर में भी एक टीचर की तरह बर्ताव करती हैं। हाँ, पर मेरी राय में बीसवीं सदी की तीन सबसे महत्वपूर्ण विचार और क्रांतियाँ हैं- अहिंसा का सिद्घांत, हिंसा का प्रभाव और सूचना तकनीक का असर। '
मैं आपको समझाता हूँ,' मेरे आश्चर्य को देखने के बाद, उसने कहा और वह शुरू हो गया। '
जब भारत सदियों से गुलाम था और स्वयं के बारे में कोई निर्णय लेने की ताकत हम में नहीं थी, तब एक दुबले से व्यक्ति ने बिना खून-खराबे के एक नए आंदोलन की शुरुआत की। न कोई हथियार, न पैसा लेकिन शासकों के लिए एक संदेश- हम आपका सहयोग नहीं करेंगे,होने दो जो होता है। इस नए विचार के साथ आखिरकार उन्होंने भारत को स्वतंत्रता दिला दी। उन्हें तो शांति के लिए नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए था। वो थे मोहनदास करमचंद गाँधी, हमारे राष्ट्र्रपिता। उनके इन्हीं विचारों ने मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला और आंग सान सू जैसे नेताओं को अपने राष्ट्र को स्वतंत्रता दिलाने के लिए प्रेरित किया।'
दूसरा महत्वपूर्ण विचार भी उसी कालखंड का है, लेकिन इसकी दिशा विपरीत है। यह व्यक्ति नफरत में विश्वास करता था, उसे लगता था कि वह हथियारों और हिंसा के दम पर लोगों पर शासन कर सकता है। उसने लोगों को मक्खियों की तरह मार डाला। वह कभी प्यार और दया काअर्थ समझ ही नहीं पाया। अपने इस तरीके से वह इस दुनिया में शांति तो स्थापित नहीं कर पाया लेकिन दूसरे विश्व युद्घ का कारण जरूर बन गया। लाखों लोग उसकी इन नीतियों की वजह से त्रस्त हुए। उसकी जिंदगी युद्घ, असहिष्णुता और क्रूरता का सबसे अच्छा उदाहरण है। यह व्यक्ति था एडॉल्फ हिटलर। मुझे लगा कि मेरे बेटे की बात में दम तो है, लेकिन मैं फिर भी सोच रही थी कि बीसवीं सदी का सबसे महत्वपूर्ण आविष्कार कम्प्यूटर है। वह सहमत नहीं था। उसने कहा, 'आज दुनिया सूचना माध्यमों की वजह से सिकुड़ रही है। केवल कुछ सेकंडस में हम यह जान जाते हैं किदुनिया के बाकी हिस्सों में क्या हो रहा है? टेलीविजन और इंटरनेट इसी का एक हिस्सा है। आप इसका प्रभाव व्यापार जगत और सामाजिक जीवन दोनों पर ही देख सकती हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि हम अपनी पुरानी संस्कृति को खोते जा रहे हैं, बल्कि मैं तो कह सकता हूँकि हमारा दूसरी संस्कृतियों से भी साक्षात्कार हुआ है। अपने बेटे की बातें सुनकर मैं तो आश्चर्य में पड़ गई। बहुत समय पहले जिसे मैंने सिखाया था कि हाथ में पेंसिल कैसे पकड़ी जाती है, अब वह मुझसे एक वयस्क अनुभवी की तरह शांति, हिंसा और संचार जैसे वैश्विक विषयों पर गंभीरता से बातें कर रहा था। मुझे पूरा विश्वास है कई दूसरे अभिभावकों के विचार भी इससे मेल खाते होंगे। उन्होंने भी इस बात का अनुभव किया होगा कि उनके नन्हे बच्चे अब शायद उनसे भी ज्यादा समझदार हो चुके हैं। हमारे धर्मग्रंथ कहते हैं, जिसके पास ज्ञान है, उसका सम्मान किया जाना चाहिए, उम्र, लिंग और वर्गको परे रखकर। मेरा बेटा विदेश जाकर पढ़ना चाहता है। मैं हमेशा से इस बात को लेकर चिंतित रहती थी कि मेरा छोटा बेटा वहाँ पर अकेले रह पाएगा? इस बातचीत के बाद मुझे यकीन हो गया कि मेरे पक्षी के पंख अब स्वस्थ और मजबूत हो चुके हैं। अब समय आ गया है कि वह अपनी उड़ानभरे और दुनिया को अपने नजरिए से देखे।