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Written By हिमा अग्रवाल
Last Modified: रविवार, 14 अगस्त 2022 (23:58 IST)

Vibhajan vibhishika smriti diwas : आंखों में आज भी बसा है वह भयानक मंजर, बंटवारे का दर्द झेल चुके लोगों की कहानी

Vibhajan vibhishika smriti diwas : आंखों में आज भी बसा है वह भयानक मंजर, बंटवारे का दर्द झेल चुके लोगों की कहानी - Vibhajan vibhishika smriti diwas
बंटवारे में केवल देश की सीमाएं और इंसान ही नहीं अलग हुए, बल्कि इंसानी भावनाएं-उम्मीद और मोहब्बत सब कुछ बंट गया। जी हां, हम बात कर रहे है 14 अगस्त 1947 की। इस दिन भारत की आजादी के साथ देश का भी विभाजन हुआ और पाकिस्तान अस्तित्व में आया।

विभाजन से पहले पाकिस्तान का कोई नामो-निशान नहीं था। जो लोग अपने से बिछुड़कर पाकिस्तान में रह गए और कुछ अपनों का साथ छोड़कर भारत में रह गए। विभाजन के दंश झेल रहे लोगों को देखकर ऐसा लग रहा था कि उनका ब्रेन डेड हो चुका है, मात्र सांस और दिल धड़क रहा है। आज हम आपको कुछ लोगों की दर्दभरी आवाज में विभाजन की कहानी सुनाएंगे। उन्होंने कैसे मजबूर होकर मातृभूमि को छोड़ा, बंटवारे में कैसे उनकी आत्मा कैसे बंट गई। 
 
75 साल पहले विभाजन के समय रातोंरात पाकिस्तान से लाखों लोगों को विस्थापित होकर अपना घर छोड़़ना पड़ा था। विभाजन को न मानने वाले अनगिनत लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। ऐसे ही लगभग 200 परिवार मेरठ में मेहनत मजदूरी करने लगे, धीरे-धीरे उन्होंने अपना व्यापार स्थापित किया। मेहनत मजदूरी कर अपना व्यापार स्थापित किया।

अब इन लोगों ने मेहनत से स्पोर्ट्स इंडस्ट्री में नाम और मुकाम बना लिया है, आज मेरठ स्पोर्ट्स नगरी के नाम से जाना जाता है। ये सभी स्पोर्ट्स कारोबारी पाकिस्तान और भारत के विभाजन के समय यहां आए थे और आकर मेरठ में स्पोर्ट व्यापार की शुरुआत की थी। 
 
मेरठ के विक्टोरिया पार्क के रहने वाले  97 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण कुमार खन्ना बताते है कि विभाजन के समय उनकी आयु लगभग 21 वर्ष के थी। हिन्दुस्तान की आजादी के लिए उन्होंने जेल में भी रहना पड़ा कृष्ण कुमार खन्ना का परिवार पाकिस्तान के शेखपुरा में रहता था। उनके पिता शेखपुरा में चावल मंडी के बड़े आढ़ती थे। 15 अगस्त को वे अपने पिता के साथ पाकिस्तान के शेखपुरा घर में थे।

रेडियो पर आजादी की सूचना मिली, लेकिन विभाजन के चलते उन्हें पाकिस्तान छोड़़ना पड़ा। उनका परिवार किसी कीमत पर अपना घर नहीं छोड़ना चाहता था पर मजबूरी के चलते खन्ना का परिवार पाकिस्तान छोड़ना पड़ा। कृष्ण कुमार खन्ना ने आंखों से वह भयानक मंजर देखा था, आज भी उस मंजर को याद करते आखें नम हो जाती हैं और वे सिसक पड़ते हैं।
 
खन्ना कहते हैं कि वे पाकिस्तान छोड़कर 27 अगस्त को अमृतसर पहुंचे और उसके बाद जैसे-तैसे करके मेरठ तो आ गए। उस समय यहां चावल की कोई बड़ी मंडी नहीं थी। इसके चलते उन्हें चावल का व्यापार करने में काफी परेशानी आ रही थी।

उन्होंने व्यापार बदलने का मन बनाया और यहां स्पोर्ट्स की बॉल बनाने का काम शुरू कर दिया। मेहनत और लगन के चलते इनकी बॉल बनाने का काम शिखर पर पहुंच गया। आज खन्ना प्रोडक्ट की स्पोर्ट्स इंडस्ट्री में अपनी एक पहचान है, फुटबॉल हो वॉलीबॉल हो या फिर क्रिकेट की बॉल, हर जगह खन्ना स्पोर्ट्स ने अपनी पहचान बना ली है। 
 
मेरठ के सूरज कुंड रोड पर स्पोर्ट्स कारोबारी अभिमन्यु महाजन अपने दिवंगत दादाजी चुन्नीलाल को याद करते हुए कहते हैं कि वे सियालकोट में बड़े जमींदार हुआ करते थे। दादाजी को शाहजी के नाम से पुकारा जाता था। चुन्नीलाल को आजादी के बाद विभाजन की सूचना मिली तो पाकिस्तान में हिन्दुओं के घर भूचाल आ गया।

दादाजी बताते थे कि उस समय लोगों से कहा गया या तो अपना धर्म परिवर्तन करो या फिर पाकिस्तान छोड़ो। अगर किसी ने पाकिस्तानी लोगों की शर्त नहीं मानी तो उनको बेरहमी से मार दिया गया। अभिमन्यु के दादा चुन्नीलाल अपने 5 भाइयों, 4 बहनों के साथ किसी तरह भारत आ गए। लेकिन विभाजन की दहशत और मारकर के बीच उनकी मां और एक भाई उनसे बिछड़ गए, जिनका आज तक कुछ पता नहीं चला है।
 
अभिमन्यु के दादा चुन्नीलाल भाई-बहनों के साथ किसी तरह पंजाब के खन्ना पहुंचे और वहां टैंट में शरण ली। किसी तरह से यह सब दिल्ली पहुंचे और वहां एक मस्जिद में सिर छुपाने की जगह मिल गई। लेकिन वहां से भी उन्हें यह कहकर निकाल दिया कि तुम लोग मस्जिद पर कब्जा कर लोगे।

चुन्नीलाल किसी तरह अपने परिवार को लेकर मेरठ लालकुर्ती इलाके में किराए के मकान में रहने लगे। पाकिस्तान में सब कुछ छूट गया, खाली हाथ भारत आए, यहां पेट पालने के लिए मुसीबतों का सामना करना पड़ा। चुन्नीलाल का पाकिस्तान (पंजाब) में स्पोर्ट्स का काम था, उन्होंने मेरठ में अपने पैतृक काम को जोड़ा और धीरे-धीरे मेरठ में लोगों को भी खेल का सामान बनाना सिखाया।

उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने अपने बेटे के प्रेम सागर के साथ मिलकर प्रेम सागर एंड संस के नाम से अपनी कंपनी बनाई। इस कंपनी में फुटबॉल, वॉलीबॉल, तमाम तरह के नेट और जूते भी बनाए जाते हैं और अब इस कंपनी को अभिमन्यु संभाल रहे है।

अभिमन्यु का कहना है कि उत्तरप्रदेश के आगरा के अलावा पंजाब के मलेरकोटला में जूते बनाने का बड़ा काम है। सरकार की एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत अब उन्होंने मेरठ में स्पोर्ट्स के जूते बनाने का काम कर रहे हैं। इससे पंजाब के मलेरकोटला पर खासा असर पड़ेगा। अभिमन्यु का कहना है कि उनका स्पोर्ट्स प्रोडक्ट भारत ही नहीं बल्कि नेपाल और भूटान तक भी सप्लाई किया जाता है।
 
वर्तमान में स्पोर्ट्स कारोबारी सुरेंद्र चड्ढा बताते हैं कि विभाजन से पहले उनका पाकिस्तान में स्पोर्ट्स का बड़ा कारोबार था। जब पाकिस्तान में उपद्रव होने की सुगबुगाहट उनके नौकर के कानों तक पहुंची तो वह तुरंत उनके पिता के पास आया और सारी प्लानिंग से अवगत कराते हुए कहा कि आप तुरंत पाकिस्तान छोड़कर भारत निकल जाओ।

सुरेंद्र के पिता यह बात सुनते ही अपने परिवार को सुरक्षित लेकर पाकिस्तान से निकल आए। परिवार को किसी तरह मार-काट से बचाते उनके पिता सुरेन्द्र किसी तरह जम्मू स्थित अपनी ससुराल पहुंचे। वहां भी हालात अच्छे नहीं थे, जिसके चलते उनका परिवार मेरठ आया और यहां पर आकर शिफ्ट हो गए। सुरेंद्र के पिता ने यहां पर अपना स्पोर्ट का काम शुरू किया जो एक मुकाम पा चुका है। 
 
75 साल पहले 14 अगस्त को अखंड भारत के दो टुकड़े हुए थे। विभाजन के दर्द को याद करते हुए 14 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा ऐलान किया कि अब हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के तौर पर याद किया जाएगा।

उत्तरप्रदेश में योगी सरकार के आवाहन के बाद 14 अगस्त को विभाजन दिवस के रूप में मनाया गया है। मौन जुलूस निकाल कर विभाजन के समय बलिदान हुए बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी जा रही है।
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