भगवान कृष्ण के जन्मस्थान के पास से मस्जिद हटाने की याचिका से नाखुश मथुरा के पुजारी, बोले माहौल बिगाड़ने की कोशिश
मथुरा। पुजारियों के एक संगठन ने मथुरा में भगवान कृष्ण के जन्मस्थान के पास स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने के लिए अदालत में याचिका दायर किए जाने की आलोचना की है। अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा ने 17वीं सदी की मस्जिद को हटाने के लिए कुछ लोगों द्वारा एक अदालत में याचिका दायर करने की आलोचना की।
अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश पाठक ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि कुछ बाहरी लोग मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दे उठाकर मथुरा की शांति और सद्भाव को बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
पाठक ने कहा कि 20वीं सदी में दोनों पक्षों के बीच समझौता होने के बाद मथुरा में मंदिर-मस्जिद का कोई विवाद नहीं है। उन्होंने कहा कि दोनों समुदायों के बीच सद्भाव है और अगल-बगल में धार्मिक स्थल का अस्तित्व भावनात्मक एकजुटता का उदाहरण है।
ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग : मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में मुगल शासक औरंगजेब के कार्यकाल में निर्मित शाही ईदगाह मस्जिद को वहां से हटाने की मांग की है। इस संबंध में आधा दर्जन भक्तों ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान एवं शाही ईदगाह प्रबंध समिति के मध्य पांच दशक पूर्व हुए समझौते को अवैध बताते हुए उसे निरस्त करने और मस्जिद को हटाकर पूरी जमीन मंदिर ट्रस्ट को सौंपने की मांग की है।
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने शुक्रवार को मथुरा की एक अदालत में दायर की गई याचिका में कहा है कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान एवं शाही ईदगाह प्रबंध समिति के बीच हुआ समझौता पूरी तरह से गलत है तथा भगवान कृष्ण एवं उनके भक्तों की इच्छा के विरुद्ध विपरीत है। इसलिए उसे निरस्त किया जाए और मंदिर परिसर में स्थित ईदगाह को हटाकर उक्त भूमि मंदिर ट्रस्ट को सौंप दी जाए।
शुक्रवार को लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री एवं त्रिपुरारी त्रिपाठी, सिद्धार्थ नगर के राजेश मणि त्रिपाठी एवं दिल्ली निवासी प्रवेश कुमार, करुणेश कुमार शुक्ला एवं शिवाजी सिंह ने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को जमीन देने को गलत बताते हुए सिविल जज सीनियर डिवीजन छाया शर्मा की कोर्ट में दावा पेश किया गया है।
श्रीकृष्ण विराजमान, स्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि एवं इनलेागों की ओर से पेश किए दावे में कहा गया है कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ (जो अब श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के नाम से जाना जाता है) एवं शाही ईदगाह मस्जिद के बीच जमीन को लेकर समझौता हुआ था। इसमें तय हुआ था कि मस्जिद जितनी जमीन में बनी है, बनी रहेगी।
वादियों के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने बताया कि जिस जमीन पर मस्जिद बनी है, वह श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के नाम पर है। ऐसे में सेवा संघ द्वारा किया गया समझौता गलत है। इसलिए उक्त समझौते को निरस्त करते हुए मस्जिद को हटाकर मंदिर की जमीन उसे वापस कर देने की मांग की गई है।"
उन्होंने बताया कि अदालत में दायर याचिका में कहा गया है कि शाही ईदगाह ट्रस्ट ने मुसलमानों की मदद से श्रीकृष्ण से संबंध जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया और ईश्वर के स्थान पर एक ढांचे का निर्माण कर दिया। भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का जन्मस्थान उसी ढांचे के नीचे स्थित है।
याचिका में यह दावा भी किया गया कि मंदिर परिसर का प्रशासन सम्भालने वाले श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने सम्पत्ति के लिए शाही ईदगाह ट्रस्ट से एक अवैध समझौता किया। आरोप लगाया कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान श्रद्धालुओं के हितों के विपरीत काम कर है इसलिए धोखे से शाही ईदगाह ट्रस्ट की प्रबंध समिति ने कथित रूप से 1968 में सम्बन्धित सम्पत्ति के एक बड़े हिस्से को हथियाने का समझौता कर लिया।