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Written By हिमा अग्रवाल
Last Updated : गुरुवार, 12 नवंबर 2020 (12:34 IST)

दिवाली पर बाजारों में छाई मिट्टी की सौंधी सुगंध, स्थानीय सजावटी सामान की धूम

दिवाली पर बाजारों में छाई मिट्टी की सौंधी सुगंध, स्थानीय सजावटी सामान की धूम - market on Deepawali
लखनऊ। उत्तरप्रदेश में दीपावली के मौके पर इस बार बाजार में मिट्‍टी के सजावटी सामान की धूम मची हुई है। लोगों में इन्हें खरीदने के लिए भी खासा आकर्षण है। मूर्तियों के साथ ही मिट्‍टी के लैंप, मुखौटे आदि लोगों की पसंद बने हुए हैं।
 
लखनऊ, मेरठ समेत यूपी के प्रमुख शहरों में लोगों ने चायनीज सामान को बाय-बाय करते हुए देश में निर्मित चीजों को तरजीह दी है, बाजारों में मिट्टी की बंदनवार, दीये, लक्ष्मी-गणेश और गिफ्ट आइटम्स देखने के लिए मिल रहे हैं। 
 
दीपोत्सव हो या कोई खास आयोजन, सजावट को लेकर आम लोगों की सोच पूरी तरह बदल गई है। कुछ समय पहले तक भारी-भरकम सामान से घरों में इंटीरियर डेकोरेशन हो रही थी, लेकिन अब देखने में आ रहा की घरों को सजाने के शौकीन मिट्टी के डिजाइनर सामान से घर-आंगन, बालकनी और बगीचों को सजाना पसंद कर रहे है।
 
दीपावली पर स्वदेशी वस्तुओं से बाजार पटा हुआ है। घर को अलग से लुक देने के लिए कोई मिट्टी का लैंप पसंद कर रहा है तो कोई, तबला, मुखौटे, स्टूल या विभिन्न प्रकार की आकृतियां। इस तरह सजे बाजार को देखने से लग रहा है कि शिल्पकारों को एक बाजार मिल गया है और उनकी दीपावली भी आर्थिक रूप से उन्नत होगी।
 
मिट्टी निर्मित कलाकृतियों को कलकत्ता, गुजरात और गोरखपुर से मंगाया है। जिसमें तबला, बांसुरी वादक, सांरगी वादक, मुखौटे शामिल हैं। सजावटी सामान में मिट्टी से बनी रंग-बिरंगी तोरण, बंदनवार, कंडील और लैंप विशेष तौर पर खरीदे जा रहे हैं। इससे अलग कागज से बने रंग-बिरंगे फूल, मोतियों के लहराते लैंप, लाल, नीली-पीली कंडील आदि लोगों को भा रहे हैं। 
 
खरीदारों का कहना है कि मिट्टी का बना सामान इकोफ्रेंडली और सस्ता है। हमें अपने देश में बनी वस्तुओं को प्रमोट करना चाहिए। इसलिए हमने देश को प्राथमिकता देते हुए चायनीज सामान से दूरी बना ली है। वहीं विक्रेताओं का कहना है कि देश में सजावट का सामान 60 रूपये से लेकर दो हजार तक की रेंज में उपलब्ध है। उपभोक्ता अपनी जेब के हिसाब से दीपावली पर खरीदारी कर सकता है।
 
ज्योति पर्व के बहाने देश की माटी की महक का आदान-प्रदान भी गिफ्ट के तौर पर किया जा रहा है। देशवासियों में स्वदेशी प्रेम को देखकर लग रहा है कि दम तोड़ चुके कुटीर उद्योग एक बार फिर से जीवित हो उठेंगे।
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