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Written By Author गिरीश पांडेय
Last Modified: गुरुवार, 28 दिसंबर 2023 (20:52 IST)

कैनोपी प्रबंधन से समृद्धि का जरिया बनेंगे आम के बागान

सर्वाधिक रकबा और उपज होने के नाते यूपी के किसानों को होगा सबसे अधिक लाभ

कैनोपी प्रबंधन से समृद्धि का जरिया बनेंगे आम के बागान - Mango orchards will become a source of prosperity through canopy management
Mango canopy management: 'आम' खास है। तभी तो इसे फलों का राजा कहते हैं। उत्तर प्रदेश के लिए तो यह और खास है। क्योंकि, रकबे और उत्पादन में इसका नंबर देश में प्रथम है। यहां के दशहरी, लंगड़ा, चौसा, आम्रपाली, गौरजीत आदि की अपनी खुशबू और स्वाद है। चूंकि डबल इंजन की सरकार के लिए किसानों, बागवानों का हित सर्वोपरि है, इनकी आय बढ़ाने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है।

शर्त यह है कि नए बागों का शुरू से और पुराने बागों का क्रमशः कैनोपी (छत्र) प्रबंधन किया जाए। इससे उत्पादन तो बढ़ेगा ही फलों की गुणवत्ता भी सुधरेगी। देश और विदेश में इसके निर्यात की संभावनाएं बढ़ेंगी। इन सबका लाभ बढ़ी आय के रूप में किसानों को होगा।
 
जंगल जैसे हो गए हैं तमाम पुराने बाग : फिलहाल तो 15 साल से ऊपर के तमाम बाग जंगल जैसे लगते हैं। पेड़ों की एक दूसरे से सटी डालियां, सूरज की रोशनी के लिए एक दूसरे से प्रतिद्वंदिता करती मुख्य शाखाएं। कुल मिलाकर इनका रखरखाव संभव नहीं। इसके नाते उत्पादन और उत्पाद की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। कैनोपी प्रबंधन ही इसका एक मात्र हल है। आम में बौर आने के पहले ही यह करने का उचित समय भी है।
 
रहमानखेड़ा (लखनऊ) स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.  सुशील कुमार शुक्ल के मुताबिक पौधरोपण के समय से ही छोटे पौधों का और 15 साल से ऊपर के बागानों का अगर वैज्ञानिक तरीके से कैनोपी प्रबंधन कर दिया जाए तो इनका रखरखाव, समय-समय पर बेहतर बौर और फल के लिए संरक्षा और सुरक्षा का उपाय आसान होगा। इससे उत्पादन और गुणवत्ता दोनों सुधरेगी। निर्यात की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। आम में बौर आने के पहले (दिसंबर, जनवरी) ही कैनोपी प्रबंधन का उचित समय भी है।
 
नए बागों का कैनोपी प्रबंधन : शुरुआत में ही मुख्य तने को 60 से 90 सेमी पर काट दें। इससे बाकी शाखाओं को बेहतर तरीके से बढ़ने का मौका मिलेगा। इन शाखाओं को किसी डोरी से बांधकर या पत्थर आदि लटकाकर प्रारम्भिक वर्षों (1 से 5 वर्ष) में पौधों को उचित ढांचा देने का प्रयास भी कर सकते हैं।
 
15 से 30 वर्ष पुराने बागों का प्रबंधन : ऐसे बाग जिनकी उत्पादन क्षमता सामान्य है लेकिन शाखाएं बगल के वृक्षों से मिलने लगी हैं, वहां काट-छांट के जरिए कैनोपी प्रबंधन जरूरी है। यदि इस अवस्था में बेहतर तरीके से कैनोपी प्रबंधन कर दिया जाए तो जीर्णोद्धार की नौबत कभी नहीं आएगी। इसके बाबत वृक्षों का निरीक्षण कर हर वृक्ष में उनके एक या दो शाखाओं या शाखाओं के कुछ अंश को चिह्नित करें। जो छत्र के मध्य में स्थित हों तथा वृक्ष की ऊंचाई के लिए सीधी तौर पर जिम्मेदार हों। इन चिह्नित शाखाओं या उनके अंश को उत्पत्ति के स्थान से ही काट कर हटा दें।
 
यह काम अगर बिजली, बैटरी या पेट्रोल से चलने वाली आरी से करें तो इसमें श्रम और समय की तो बचत होती ही है। छाल भी नहीं फटती। लिहाजा इसका लाभ बागवान को अगले वर्ष से ही मिलने लगता है। इससे वृक्ष की ऊंचाई कम हो जाती है। वृक्ष के छत्र के मध्य भाग में सूर्य के प्रकाश की उपलब्धता बढ़ जाती है। परिणाम स्वरूप फलों की गुणवत्ता बढ़ती है। हवा का आवागमन बढ़ जाता है। नए कल्ले आते हैं और उचित प्रकाश के कारण कल्लों में परिपक्वता आती है। कीटों और रोगों का प्रकोप भी कम होता है। रोकथाम और फसल संरक्षा भी आसान हो जाती है।
पुराने बागों का प्रबंधन या जीर्णोद्धार : इसमें तीस साल या इससे ऊपर के बाग आते हैं। ऐसे तमाम बाग कैनोपी प्रबंधन न किए जाने से अनुपयोगी या अलाभकारी हो जाते हैं। इनकी जगह पर नए बाग लगाना एक खर्चीला और पेड़ काटने की मुश्किल से अनुमति मिलने के कारण अधिक समय लेने वाला काम है।
 
डॉ. सुशील कुमार शुक्ला के अनुसार इसके लिए दिसंबर- जनवरी में सभी मुख्य शाखाओं को एक साथ काटने की बजाय सर्वप्रथम अगर कोई एक मुख्य शाखा हो जो सीधा ऊपर की तरफ जाकर प्रकाश के मार्ग में बाधा बन रही हो, उसको उसके उत्पत्ति बिंदु से ही काट दें। इसके बाद पूरे वृक्ष में 4-6 अच्छी तरह से चारों ओर फैली हुई शाखाओं का चयन करें। इनमें से मध्य में स्थित दो शाखाओं को पहले वर्ष में, फिर अगली दो शाखाओं को दूसरे वर्ष और शेष एक या दो जो कि सबसे बाहर की तरफ स्थित हों, उन्हें तीसरे वर्ष में काट दें। साथ ही जो शाखाएं बहुत नीचे और अनुत्पादक या कीटो और रोगों से ग्रस्त हों, उन्हें भी निकाल दें। 
 
शाखाओं के काटने के बाद जरूर करें ये काम : कटे हुए स्थान पर 1:1:10 के अनुपात में कॉपर सल्फेट, चूना और पानी, 250 मिली अलसी का तेल, 20 मिली कीटनाशक मिलाकर लेप करें। गाय का गोबर और चिकनी मिट्टी का लेप भी एक विकल्प हो सकता है। इस प्रकार काटने से शुरू के वर्षों में बाकी बची शाखाओं से भी 50 से 150 किग्रा प्रति वृक्ष तक फल प्राप्त हो जाते हैं और लगभग तीन वर्षों में वृक्ष पुन: छोटा आकार लेकर फलत प्रारम्भ कर देते है। 
 
एक साथ सभी शाखाओं को कभी न काटें : ऐसे बागों की सभी शाखाओं को एक साथ कभी न काटें। क्योंकि, तब पेड़ को तनाबेधक कीट से बचाना मुश्किल हो जाता है। इनके प्रकोप से 20 से 30 प्रतिशत पौधे मर जाते हैं। 
    
गुजिया कीट का प्रबंधन और खाद पानी : गुजिया कीट के रोकथाम के लिए वृक्षों के तने के चारों ओर गुड़ाई कर क्लोर्पयरीफोस 250 ग्राम वृक्ष पर लगाएं। तनों पर पॉलीथिन की पट्टी बांधें। पाले से बचाव हेतु बाग की सिंचाई करें। और, अगर खाद नही दी गई है तो 2 किलो यूरिया, 3 किलोग्राम एसएसपी और 1.5 किलो म्यूरियट ऑफ पोटाश प्रति वृक्ष देनी चाहिए |
 
कैनोपी प्रबंधन के लिए ट्रेनिंग की सुविधा भी उपलब्ध : कैनोपी प्रबंधन या जीर्णोद्धार की सबसे बड़ी समस्या है इस बाबत कुशल श्रमिकों का न मिलना। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान इसके लिए इच्छुक युवाओं को प्रशिक्षण भी देता है। इस दौरान उनको बिजली, बैटरी या पेट्रोल से चलने वाली आरी से काम करने का तरीका और उनके रखरखाव की जानकारी दी जाती है। युवा यह प्रशिक्षण लेकर अपनी आय भी बढ़ा सकते हैं। बाग के प्रबंधन से बागवानों को होने वाला लाभ बोनस होगा।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala
 
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