गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. चुनाव 2022
  2. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022
  3. न्यूज: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022
  4. Will the farmers movement affect the Uttar Pradesh assembly elections
Written By Author विकास सिंह
Last Updated : सोमवार, 6 सितम्बर 2021 (14:09 IST)

Special Report : क्या उत्तर प्रदेश चुनाव पर पड़ेगा किसान आंदोलन का असर ?

Special Report : क्या उत्तर प्रदेश चुनाव पर पड़ेगा किसान आंदोलन का असर ? - Will the farmers movement affect the Uttar Pradesh assembly elections
मुजफ्फरनगर में हुई किसान महापंचायत में किसानों ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने का शंखनाद कर दिया गया है। किसानों ने एलान कर दिया है कि अगर सरकार ने उनकी मांग नहीं मानी तो दोनों राज्यों में भाजपा सरकार को सत्ता से बेदखल कर देंगे। इसके साथ ही किसान महापंचायत के मंच से बकायदा मिशन उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड का एलान भी कर दिया गया है।

मुजफ्फरनगर में किसान पंचायत को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से 10 लाख किसानों के शामिल होने का दावा किया है। कृषि कानूनों के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन के बाद अब तक सबसे बड़ी किसान महांपचायत करने के दावे के बाद कहा जा रहा है कि महापंचायत उत्तर प्रदेश के सियासी परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है।
किसान महापंचायत में कृषि कानूनों की वापसी के साथ मजूदरों और महंगाई के विरोध भी हुंकार भरी गई है। महापंचायत में किसान-मजदूर एकता के नारे और किसान-विरोधी भाजपा सरकार की हार का आह्वान किया गया है। 
‘वेबदुनिया’ से बातचीत में भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता और किसान आंदोलन का बड़ा चेहरा माने जाने वाले राकेश टिकैत ने कहा कि कृषि कानूनों के साथ-साथ आज देश जिस तरह से बिक रहा है,छोटे दुकानदार खत्म हो गए है। महंगाई बढ़ रही है, किसान और मजदूर परेशान है और सरकार की नीतियों के चलते बर्बाद हो रहा है उससे पूरे देश में भाजपा के खिलाफ आंदोलन बढ़ रहा है। आंदोलन को और धार देने के लिए किसान संगठनों ने 27 सितंबर को भारत बंद का भी आह्वान किया है।
 
वहीं दूसरी ओर उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ़ दल भाजपा ने किसान आंदोलन को सिरे से खारिज कर दिया है। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि किसान आंदोलन का हश्र भी शाहीन बाग जैसे आंदोलन का होगा। उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन भी शाहीन बाग के आंदोलन की तरह टांय-टांय फिस्स हो जाएगा। 
 
उत्तरप्रदेश की राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि किसान आंदोलन अब केवल तीन कानूनों तक सीमित नहीं रह गया है। अब किसान आंदोलन के मंच से महंगाई, मजूदर की होने से आंदोलन को गांव-गरीब और किसानों का आंदोलन बना दिया है। किसान संगठनों के साथ अब आंदोलन के साथ मजदूर और अन्य संगठन भी जुड़ रहे है जो असर को और व्यापक बनाएगा। 
मुजफ्फरनगर किसान महापंचायत को लेकर रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि किसान आंदोलन का पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर व्यापक असर पड़ेगा क्योंकि वहां के लोगों की किसान आंदोलन में भागीदारी ज्यादा है। वहीं अब चुनाव से ठीक पहले किसान संगठन प्रदेश के सभी मंडलों में सभाएं करने जा रहे है जिसका भी असर पड़ेगा। 
 
पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के व्यापक असर को लेकर रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ा वोट बैंक वाले जाट समुदाय को लगता है कि अजीत सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी के चुनाव हराने के बाद उनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व शून्य हो गया है। 
 
वहीं लोकदल के कॉडर की किसान आंदोलन में भागीदारी ज्यादा है इसको देखते हुए कहा जा सकता है कि जाट समुदाय चुनाव में लोकदल के समर्थन में जा सकते है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरदाबाद, मेरठ, आगरा और सहारनपुर जैसे डिवीजन में जहां जाटों का प्रतिनिधित्व ज्यादा है वहां भाजपा के विरोध में होने वाली पार्टी को सीधा फायदा होगा। बसपा की किसानों से दूरी के चलते आज के हालातों में किसान आंदोलन का फायदा समाजवादी पार्टी और लोकदल को मिलता हुआ दिख रहा है।
 
वहीं रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तुलना में पूर्वी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का असर उतना नहीं है क्योंकि यहां भाजपा के पास अयोध्या और काशी जैसे हिंदुत्व के चुनावी मुद्दे है जिसके सहारे भाजपा अपनी चुनावी रणनीति को बनाने में जुटी है।
ये भी पढ़ें
जनाधार को बढ़ाने के लिए बीजेपी का प्लान, यूपी के बाहर रह रहे वोटर्स को जोड़ने का काम