भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए अब समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय लोकदल के साथ हाथ मिला लिया है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में खासा प्रभाव रखने वाली और किसान आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लेने वाली राष्ट्रीय लोकदल के साथ समाजवादी पार्टी का गठबंधन करीब-करीब तय हो चुका है और मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन से एक दिन पहले 21 नवंबर को इसका विधिवत एलान होने की भी संभावना है।
राष्ट्रीय लोकदल की पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 13 जिलों में अच्छी पकड़ है। गठबंधन के साहरे समाजवादी पार्टी पश्चिम उत्तर प्रदेश मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर वोटरों के बिखराव को रोकने की कोशिश की है। राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन करने में सपा का उद्देश्य कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की नाराजगी का फायदा उठाकर वोटरों से साथ-साथ पश्चिमी उत्तरप्रदेश के मुसलमानों और जाटों को अपनी ओर लाना है।

राष्ट्रीय लोकदल के साथ समाजवादी पार्टी के गठबंधन को उत्तरप्रदेश की सियासत को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव छोटे दलों के साथ गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे है। पश्चिम उत्तरप्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन की सबसे बड़ी वजह इस क्षेत्र में समाजवादी पार्टी की वैसी पकड़ नहीं होना जैसी राष्ट्रीय लोकदल की है। राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन कर वह मुस्लिम और जाट वोट बैंक को अपनी ओर लाना है।
इससे पहले 27 अक्टूबर को मऊ में अखिलेश यादव ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर विधानसभा चुनाव में उतरने का एलान किया था। राजभर समुदाय से आने वाले पूर्वांचल वोटरों को साधने में सुभासपा गठबंधन बड़ी भूमिका निभा सकता है।
गौरतलब है कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी इससे पहले ओवैसी की पार्टी AIMIM के साथ गठबंधन में चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में थी। ओमप्रकाश राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चो में भारतीय वंचित पार्टी, जनता क्रांति पार्टी, राष्ट्र उदय पार्टी और अपना दल शामिल हैं। ये पार्टियां अभी जाति विशेष में अपनी पकड़ के कारण चुनाव में असरदार साबित होती हैं।
गौरतलब है कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी इससे पहले ओवैसी की पार्टी AIMIM

कुनबा बढ़ाने के साथ अखिलेश यादव अपने बिखरे कुनबे को एक करने के लिए भी कदम बढ़ा दिया है। 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव की पार्टी प्रगितशील समाजवादी पार्टी (PSP) के साथ गठबंधन की बात भी कहीं है। दीपावली से ठीक पहले अखिलेश यादव ने कहा कि 'समाजवादी पार्टी का प्रयास रहा है कि वह छोटे दलों के साथ गठबंधन करे। स्वाभाविक रूप से हम चाचा शिवपाल सिंह यादव की पार्टी के साथ भी गठबंधन करने जा रहे हैं। समाजवादी पार्टी उन्हें पूरा सम्मान देगी।'
वहीं अखिलेश यादव के बयान के बाद चाचा शिवपाल यादव ने भी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने को अपनी मंजूरी दे दी है। शिवपाल यादव ने कहा कि अगर समाजवादी पार्टी के साथ उनकी पार्टी का गठबंधन होता है तो बहुत अच्छा होगा।
दरअसल अखिलेश यादव गठबंधन के सहारे जातीय समीकरण को भी साधने की कोशिश कर रहे है। ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा के साथ ही अखिलेश ने महान दल के साथ हाथ मिलाया है। इसका प्रभाव बरेली, बदायूं और आगरा क्षेत्र के सैनी, कुशवाहा शाक्य के बीच है। इसके अलावा सपा ने जनवादी पार्टी को भी अपने साथ ले लिया है।

राष्ट्रीय लोक दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, महान दल और जनवादी पार्टी जैसे छोटे दल राज्य के विभिन्न हिस्सों में जातिगत और समुदाय विशेष के वोटरों को साधने में अपना प्रभाव रखती है। वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि समाजवादी पार्टी पश्चिमी उत्तरप्रदेश में जयंत चौधरी की पार्टी के साथ गठबंधन कर रहे है तो पूर्वांचल में वोटरों को साधने के लिए ओम प्रकार राजभर के साथ गठबंधन किया है। उत्तर प्रदेश की सियासत में राजनीति में प्रदेश के क्षत्रप के साथ-साथ अपनी-अपनी जातियों के आंचलिक क्षत्रप भी उभरे रहे है और उनका असर भी पड़ता है। अखिलेश यादव की कोशिश है कि एंटी इंकम्बेंसी विरोधी वोटों का पूरा फायदा उठाने की है और उसना जनाधार बढ़े और पार्टी जहां कम वोटों से हारी थी उस पर जीत सके।
रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि उत्तरप्रदेश की वर्तमान सियासी परिदृश्य में समाजवादी पार्टी अपने को योगी सरकार के विकल्प के तौर पर देख रही है। पिछले दिनों हुए पंचायत चुनाव की बात करें या विधानसभा के उपचुनाव की उसमें समाजवादी पार्टी दूसरे नंबर पर रही। ऐसे में उत्तरप्रदेश में स्वाभिवक रूप से समाजवादी पार्टी को वर्तमान सरकार के एक विकल्प के तौर पर देख रहे है।