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Written By WD

उपेक्षा का शिकार बेगूसराय का नौलखा मंदिर

बिहार
- पटना से विनोद बंध

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रामचरितमानस की पंक्ति - "समरथ को नहिं दोष गोसाईं" भले ही चौदहवीं शताब्दी में लिखी गई हो लेकिन आज के संदर्भों में भी अक्षरशः लागू होती है। बिहार के कई मंदिरों और उनकी संपत्ति बलपूर्वक कब्जा करने वाले बड़े-बड़े माफिया मजे में हैं। उनका कोई बाल भी बाँका नहीं कर पाता, मानो भागवान भी उनके सामर्थ्य को देखकर उनका दोष नहीं मानते।

बिहार में राजा-रजवाड़ों या महंतों ने भले ही उद्योग स्थापित करने या अस्पताल बनवाने में कुछ खास दिलचस्पी न दिखाई हो लेकिन उन्होंने मंदिरों के निर्माण में खूब उदारता दिखाई। ऐसे मंदिरों की दुर्दशा अब देखते बनती है। इन्हीं में एक है बेगूसराय शहर में स्थित प्रसिद्ध नौलखा मंदिर। आजादी के तुरंत बाद बनाए गए इस मंदिर पर उस समय नौ लाख रुपए खर्च हुए थे और मंदिर प्रबंधन का दावा है कि यह देश का इकलौता मंदिर है जिसमें शीशे की इतनी आकर्षक कलाकृतियाँ लगी हैं।

कभी इनकी चमक लोगों को कुछ किलोमीटर दूर से ही दिखने लगती थीं। आज इसने अपना वह आकर्षण खो दिया है। वैसे राज्य सरकार ने बिहार धार्मिक न्यास परिषद की पहल पर इसमें दिलचस्पी दिखाई है जिससे इस मंदिर के कायाकल्प की संभावना बनी है। अचल संपत्ति के मामले में यह नौलखा मंदिर एक समय बिहार के गिने-चुने मंदिरों में एक था।

  मंदिर की स्थापना के समय इसकी वसीयत में साफ लिखा गया कि इसकी संपत्ति बेचने का अधिकार किसी को नहीं है लेकिन आज सैकड़ों लोग पूर्व के महंतों से जमीन खरीदने का दावा कर रहे हैं। आज भी कागजों में मंदिर के पास 200 एकड़ जमीन है लेकिन कब्जे में मात्र 35 एकड़ है।      
आज भी इसके पास संपत्ति कम नहीं है लेकिन संस्थापक महंत की अगली पीढ़ी से लेकर आस-पड़ोस दबंगों और पहुँचवालों की लालची नजरें इस पर गड़ी हैं। मंदिर की संपत्ति को हथियाने-हड़पने का दौर शुरू हो चुका है। बिहार धार्मिक न्यास परिषद की ओर से गठित मंदिर प्रबंधन समिति के सचिव महंत रामदेव दास ने बताया कि मंदिर के आसपास और अनेक गाँवों में इसकी करीब 6200 एकड़ जमीन थी।

मंदिर की स्थापना के समय इसकी वसीयत में साफ लिखा गया कि इसकी संपत्ति बेचने का अधिकार किसी को नहीं है लेकिन आज सैकड़ों लोग पूर्व के महंतों से जमीन खरीदने का दावा कर रहे हैं। आज भी कागजों में मंदिर के पास 200 एकड़ जमीन है लेकिन कब्जे में मात्र 35 एकड़ है।

समिति की कोषाध्यक्ष डॉ. मीरा सिंह ने बताया कि मंदिर की संपत्ति पर कब्जा करने या उस पर नाजायज हक जताने वाले ऐसे रसूखदार लोग भी हैं जिनके खिलाफ लोग आवाज उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। डॉ. मीरा सिंह ने बताया कि प्रशासन भी मंदिर की संपत्ति के साथ अबतक न्याय नहीं कर सका है।

शहरी क्षेत्र में स्थित होने के बावजूद मंदिर पर हदबंदी लगा दी गई और इसे सिर्फ एक इकाई यानी 35 एकड़ जमीन दी गई। मंदिर प्रबंधन पाँच इकाई की लड़ाई लड़ रहा है। डॉ. सिंह ने बताया कि 200 लोगों की अवैध जमाबंदी खारिज की गई है। अब भी 300 एकड़ जमीन अवैध कब्जे में है। इस मंदिर के पास स्थित बाजार में 22 दुकानें हैं लेकिन उनका किराया महज 8 हजार रुपए तय था। किराये के लाखों रुपए बकाया पड़े हैं।

अब दुकानों का किराया बढ़ाकर बारह हजार प्रति माह किया गया है। इसी तरह मंदिर के लीची के बगीचे से पहले 50-55 हजार की कमाई दिखाई जाती थी जो इसबार 1.21 लाख पर पहुँच गई है। मंदिर का प्रबंधन 1992 में जिला प्रशासन के हाथ में चला गया तबसे इसकी देखभाल करने में किसी की दिलचस्पी नहीं रही। मंदिर परिसर बदहाल होता गया और यहाँ आने वाले भक्तों की संख्या घटती गई।

इससे इस भव्य मंदिर में प्रतिमाह हजार-डेढ़ हजार रुपए ही चढ़ावे के आते हैं। मंदिर प्रबंधन को इस बात का मलाल है कि जहां प्रशासन को इस भव्य मंदिर को धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करना चाहिए था वहीं उसने मंदिर की जमीन पर ही विभागीय कार्यालयों के निर्माण की योजना तैयार कर ली है।

डॉ. सिंह ने बताया कि मंदिर के सामने स्थित मंदिर के नवरत्न भवन के पीछे 12 एकड़ जमीन पर 12 विभागों के दफ्तर बनाने की योजना तैयार की गई है। प्रबंध समिति के विरोध से फिलहाल मामला रुक गया है। गौरतलब है कि इस मंदिर के निर्माण के समय न केवल बेहतरीन कलाकृतियों को प्राथमिकता दी गई बल्कि इसके परिसर को भी खूबसूरत बनाने पर ध्यान दिया गया।

भव्य प्रवेशद्वार, साधु-संतों व सुरक्षाकर्मियों के ठहरने के लिए तथा भंडारे के लिए भवन बनाए गए। विशाल मंदिर परिसर में आधुनिक और सुंदर तालाब भी बनाया गया जिसमें सालों भर जल का तय स्तर सुनिश्चित करने के लिए नहर से पानी पहुँचाने और अतिरिक्त पानी निकाले जाने की व्यवस्था की गई। लेकिन पिछले सत्रह वर्षों से उपेक्षा झेलने के कारण तालाब बदहाल है, मंदिर का गुंबद टूट गया है और कलाकृतियाँ अपना सौंदर्य खो रही हैं।

ऊपर से मंदिर के नवरत्न भवन में कभी कालेज खोला गया तो कभी फायर स्टेशन। फायर स्टेशन हटाने के आदेश पर अमल नहीं किया जा रहा है। नवरत्न भवन के दोनों तरफ स्थित तालाब की भी शक्ल बिगड़ चुकी है। मंदिर तक पहुँचने के लिए मौजूद सड़क भी बेहतर और चौड़ी नहीं है।

हालांकि डॉ. मीरा सिंह ने बताया कि सरकार ने इस मंदिर के विकास और सौंदर्यीकरण के लिए साढ़े तीन करोड़ रुपए की मंजूरी दी है। इससे नक्षत्र भवन, विवाह भवन और पार्क का निर्माण होना है। तालाब के जिर्णोंद्धार के लिए नगर विकास विभाग ने एक करोड़ रुपए आंवटित कर दिए हैं। इससे मंदिर के कायाकल्प की उम्मीद जगी है लेकिन राज्य सरकार अगर इसकी करोड़ों की अचल संपत्ति को अवैध कब्जे से मुक्त कराने में थोड़ी दिलचस्पी दिखाए तो यह एक खूबसूरत धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकता है।