कश्मीर से पलायन की दर्दनाक कहानी, कश्मीरी पंडितों की जुबानी
प्राणेश नागरी, साहित्यकार कश्मीरी पंडित की जुबानी
#KashmirFiles यह पहली बार हुआ है जब उस सच पर फिल्म बनी है जिसे कोई सुनना और जानना नहीं चाहता था.... यह फिल्म नहीं है यह डिजिटल डॉक्यूमेंटेशन ऑफ जेनोसाइड है। पहली बार हमारे जीवन के सच को इतनी प्रखरता से स्थापित करने का सुप्रयास किया गया है। हमारी पूरी की पूरी जाति को खत्म कर देने की कोशिश की गई। कश्मीरी पंडित ही भारत और कश्मीर के बीच का सेतु थे। इसलिए हमारी संस्कृति को नष्ट किया गया। वो कहते हैं न कि जब आप किसी संस्कृति को नष्ट करते हैं तो उसका भविष्य भी समाप्त कर देते हैं। हम कश्मीरी पंडित की अपनी समृद्ध, संपन्न, वैभवशाली और यशस्वी संस्कृति थी...याद कीजिए राजतरंगिणी कहां से आई, कल्हण, बिल्हण कौन थे? यह हमारे साहित्य और संस्कृति के विद्वान मनीषियों की गौरवशाली धरती है...
हमने हर किसी के पास जाकर अपनी गुहार लगाई पर किसने सुना, पहली बार हमें सूचीबद्ध किया जा रहा है पहली बार हमारी पहचान को लेकर खड़े संकट के समाधान तलाशे जा रहे हैं....#KashmirFiles में जो दिखाया गया है आप देखने से घबरा रहे हैं, देखकर चीख और चिल्ला रहे हैं अरे वह सब हमने जिया, देखा, भोगा और सहा है। सुप्रीम कोर्ट तक ने हमारी पिटिशन खारिज कर दी.. हमें क्या करना चाहिए? आप बताइए....?
मेरी मां ने अंत समय में मुझे कहा था मेरे शरीर को कश्मीर में जला देना, मैंने पूछा आप ऐसा क्यों कह रही हैं उन्होंने कहा, वहां की आग ठंडी हो गई है... सोचिए कैसा लगा होगा एक बेटे को यह सुनकर?
मेरे वहां दो घर हैं, मैं नहीं जानता वहां अब कौन रहता है? मेरे पास कम से कम 100 एकड़ की जमीन थी जिस पर फलों के बाग लगे थे....मेरी पत्नी सिर्फ एक जोड़ी कपड़े में वहां से आई थी वो भी वुलन थे हमारे पास पैसे तक नहीं थे कि उन्हें बदल सके। 7-8 महीने तक कपड़े ही नहीं बदले गए। कानपुर की 48 डिग्री गर्मी में उन कपड़ों से उसके शरीर से खून निकलने लगा था। किसने देखा हमारी तरफ, किसने सुनी हमारी बात? आज विवेक अग्निहोत्री ने फिल्म के माध्यम से कम से कम देश के लोगों तक बात को पंहुचाने का साहस तो किया है।
पहली बार सरकार हमारी पहचान को लौटाने और सच को स्थापित करने का काम कर रही है...
#KashmirFiles को बना कर विवेकरंजन अग्निहोत्री ने इतिहास रचा है। आज हम अपने आपको भूलते जा रहे हैं, मेरा बेटा नहीं जानता कि शिवरात्रि हम कैसे मनाते थे, क्या है शैव्य शास्त्र वह नहीं जानता...
उस वक्त ऐसे हालात थे कि एक ही आवाज - सारे कश्मीरी पंडितों यहां से भाग जाओ और अपनी औरतें छोड़ जाओ....आप सोचिए, किसी को मार कर उसके चारों तरफ नाचने की प्रवृत्ति को आप क्या कहेंगे? यह पैशाचिक वृत्ति कौन सा धर्म सिखाता है? इस फिल्म में एक-एक नाम सही है, एक-एक बात सही है। इस फिल्म का एक-एक सीन करेक्ट है, सच्चे नामों को इतनी सच्चाई के साथ दिखाने का कलेजा रखने के लिए मैं विवेक अग्निहोत्री के प्रति सम्मान प्रकट करता हूं।
इस फिल्म को कमजोर दिल वाले भी देखें कश्मीर भारत का स्वर्ग है उसी स्वर्ग में कश्मीरी पंडितों ने जिस नर्क को अपने सीने पर झेला है...वह देखने के लिए फिल्म को देखें...इसमें बताया कि जेनोसाइड किसे कहते हैं..
कश्मीर में नदी मर्ग एक जगह है जहां 28 कश्मीरी पंडित रहते हैं उन्हें एक लाइन में खड़ा कर के मार दिया जाता है और जब एक बच्चा अपनी मां को खो देने के दुख से रोता है तो आतंकवादी कहता है यह आवाज कहां से आ रही है और उसे भी गोली मार दी जाती है? यह हैवानियत की पराकाष्ठा है मानवीय मस्तिष्क सोच के स्तर पर वहां तक जा ही नहीं सकता है।
हमारी एक-एक नस्ल खत्म कर दी गई....32 साल से एक कश्मीरी पंडित कह रहा है मेरी बात सुनो, मैं इसी देश का हिस्सा हूं, 4000 लोगों का कत्ल कर दिया गया,साढ़े सात लाख लोग वहां से निकल कर देश भर में बिखर गए हैं....एक न एक दिन हम सब खत्म हो जाएंगे...क्या बचेगा हमारे जीवन में? कब सुनेंगे हमको, कैसे निकलेगा हमारे दिलों में पल रहा वह भयावह मंजर....
इस फिल्म को देखिए, देखेंगे नहीं तो समझेंगे कैसे, जानेंगे कैसे? जीरो ग्राउंड रियलिटी क्या है कैसे पता चलेगा? वह शब्दों से कहां आ सकेगा सामने जितना इन दृश्यों ने विचलन पैदा किया है... जितना दिखाया है वह मात्र 2 से 3 प्रतिशत ही है, कई-कई गुना हमारे दिलों में अंकित है...। जो हमने भोगा और सहा है उसके घाव अभी तक हमारे कलेजे में हैं और रहेंगे।