तेनालीराम की कहानियां : मूर्खों का साथ हमेशा दुखदायी
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय जहां कहीं भी जाते, जब भी जाते, अपने साथ हमेशा तेनालीराम को जरूर ले जाते थे। इस बात से अन्य दरबारियों को बड़ी चिढ़ होती थी।एक दिन तीन-चार दरबारियों ने मिलकर एकांत में महाराज से प्रार्थना की, ‘महाराज, कभी अपने साथ किसी अन्य व्यक्ति को भी बाहर चलने का अवसर दें।’ राजा को यह बात उचित लगी। उन्होंने उन दरबारियों को विश्वास दिलाया कि वे भविष्य में अन्य दरबारियों को भी अपने साथ घूमने-फिरने का अवसर अवश्य देंगे।
एक बार जब राजा कृष्णदेव राय वेष बदलकर कुछ गांवों के भ्रमण को जाने लगे तो अपने साथ उन्होंने इस बार तेनालीराम को नहीं लिया बल्कि उसकी जगह दो अन्य दरबारियों को साथ ले लिया।घूमते-घूमते वे एक गांव के खेतों में पहुंच गए। खेत से हटकर एक झोपड़ी थी, जहां कुछ किसान बैठे गपशप कर रहे थे। राजा और अन्य लोग उन किसानों के पास पहुंचे और उनसे पानी मांगकर पिया।फिर राजा ने किसानों से पूछा, ‘कहो भाई लोगों, तुम्हारे गांव में कोई व्यक्ति कष्ट में तो नहीं है? अपने राजा से कोई असंतुष्ट तो नहीं है?’