विंबलडन : परंपराओं को ध्यान में रखते हुए हो रहा नई तकनीकों का इस्तेमाल
विंबलडन में परंपराओं का खासा ध्यान रखा जाता है। लेकिन इसके बावजूद नई तकनीक का इस्तेमाल करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है। यहां पिछले साल से आईबीएम के वाटसन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जा रहा है। वाटसन सॉफ्टवेयर मैच के दौरान दर्शकों के चेहरों के हावभाव से लेकर हर पॉइंट की इनफार्मेशन को प्रोसेस करता है, और 1990 से मौजूद डाटा से तुलना भी कर लेता है।
किसी भी मैच के ख़त्म होते ही यह मैच के सभी खास मौकों को मिलाकर एक वीडियो भी बना देता है। जिसका इस्तेमाल सोशल मीडिया पर ट्रेंड चलाने से लेकर हाइलाइट्स दिखाने तक में किया जाता है। वाटसन अकेला सॉफ्टवेयर नहीं है जो की यहां इस्तेमाल हो रहा है। कुछ सॉफ्टवेयर के जरिए यहां किस खिलाडी को किस कोर्ट पर खेलना है यह भी जाना जाता है। इन सब मशीनी चीजों का इस्तेमाल करते हुए कहीं ना कहीं इंसानी टच छूटता जा रहा है और इसकी कमी थोड़ी महसूस की जा रही है।
विंबलडन में गुरुवार को जोकोविच को कोर्ट नंबर 2 पर खेलाने का मुद्दा गरम रहा। जोकोविच यहां तीन बार चैंपियन रह चुकें हैं। वह इस बार भलें ही पिछले साल से ज्यादा अच्छा नहीं खेल पाएं हैं। फिर भी यहां वरीयता में अभी 12वें स्थान पर हैं। वहीँ सेंटर कोर्ट पर खेलने वालों में नडाल, कोंटा और एडमंड थे।
इसमें नडाल यहां मुलर को छोड़कर 2010 के बाद से 100 रैंक के बाहर के खिलाडी से हारें हैं। वहीं कोंटा और एडमंड की वरीयता यहां 22 और 21 की है। ब्रिटिश होने के अलावा इन दोनों में ओर कोई खास गुण नहीं थे की इनके मैच सेंटर कोर्ट पर करवाए जाएं।
जो भी सॉफ्टवेयर खेलने की लिस्ट बनाने के काम में इस्तेमाल किया जाता है। उसको जरूर यह नहीं पता होगा की भलें ही कोई खिलाडी को लेकर सोशल मीडिया में ज्यादा हलचल नहीं हो रही हो। उस खिलाडी को देखने के लिए दर्शकों का उत्साह मापा नहीं जा सकता है। उम्मीद है की आने वाले मैचों में जोकोविच को मुख्य कोर्ट्स पर खेलते देखने का मौका सॉफ्टवेयर जरूर देगा।
नडाल ने पिछले साल चेयर अम्पायर कार्लोस को उनके मैचों में नहीं रखने की अपील की थी। वजह इन दोनों के बीच रिओ ओपन के समय से ही तनाव का माहौल रहना रहा है। मगर विंबलडन में नडाल की अपील पर ध्यान नहीं दिया गया और गुरुवार को नडाल के मैच में कार्लोस ही चेयर अम्पायर थे।
मैच शुरू होने के पहले ही नडाल को ज्यादा वक़्त लेने के चलते कार्लोस ने वॉर्निंग दे दी थी। बीच मैच में उन्होंने फिर से ऐसा दोहराया। यह सही है की नियमों के मुताबिक कार्लोस गलत नहीं थे। मगर इस नियम को हर मैच और हर खिलाडी पर इस तरह लागू नहीं किया गया। यह अम्पायर पर है की वो मैच का मौका देखकर वार्निंग देने का फैसला करे और किसी लम्बी रैली या ऐसे ही किसी और मौके पर इस सख्ती से लागू करना खिलाडी पर नाइंसाफी ही है।
खैर नियम की बात अलग है पर चेयर अम्पायर की पूरी पलटन होने के बावजूद नडाल के मैच में कार्लोस को रखकर विंबलडन ने नडाल पर दबाव मैच शुरू होने के पहले ही बना दिया था। ऐसे दबाव में मैच का फैसला बदल सकने का माद्दा भी होता है और ऐसा विंबलडन बिलकुल नहीं चाहेगा की उनके दर्शकों को खींच पाने वाले खिलाडी के साथ ऐसा हो।