मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
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मोदी के आश्वासन के बाद भी लालफीताशाही से नहीं जग पाई 'उषा की किरण'

मोदी के आश्वासन के बाद भी लालफीताशाही से नहीं जग पाई 'उषा की किरण' - Usha Rathod, Gujarat, International Para Table Tennis Player,
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ आप जिस दिव्यांग लड़की उषा राठौड़ की तस्वीर देख रहे हैं, वो 2009 की है, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। भारतीय पैरा टेबल टेनिस टीम राष्ट्रमंडल खेलों के सिलसिले की तैयारी के लिए लंदन जा रही थी और तब मोदी ने उन लड़कियों को बुलाया था, जो गुजरात से ताल्लुक रखती थीं। उषा ने पांच अंतरराष्ट्रीय पैरा टेबल टेनिस स्पर्धाओं में शिरकत की और उसका सपना है कि अपनी तमाम उपलब्धियों के बदले उसे गुजरात सरकार एक छोटी-सी नौकरी दे दे...ताकि अपने परिवार को आर्थिक तंगी से उबार सके।
 
अभय प्रशाल में राष्ट्रीय पैरा टेबल‍ टेनिस चैम्पियनशिप में भाग लेने आईं उषा ने 'वेबदुनिया' के साथ खुलकर अपनी दास्तान बयां की जिसका सार फकत इतना भर है कि किसी तरह वे रोजगार हासिल करके अपने पैरों पर न सही, परिवार का भार अपने कंधों पर उठा सकें...पैरों पर इसलिए नहीं क्योंकि उषा पोलियोग्रस्त हैं और व्हीलचेयर ही उनका सहारा हैं।
 
तमाम दुश्वारियों के बाद भी उषा के मुस्कुराते चेहरे पर यकायक नजरें टिक जाती हैं और उनके जोश व जुनून को सलाम करने का मन इसलिए करता है क्योंकि उन्होंने उम्मीद की किरण का दामन नहीं छोड़ा है। यूं तो उनका जन्म भी अहमदाबाद में तंदुरुस्त लड़की की तरह रामजी भाई के घर हुआ था। मां लक्ष्मी बेन ने लड़की होने की खुशी मनाई थी लेकिन जब डेढ़ साल की हुई, तब बुखार आ गया। अस्पताल में डॉक्टरों के गलत इंजेक्शन के कारण पैर पोलियोग्रस्त हो गए और फिर कभी वे अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकीं...
उषा बड़ी हुईं और फिर व्हीलचेयर के पहियों से ही दुनियादारी सीखी...2007 के बाद दूसरों को देखकर उषा ने टेबल टेनिस खेलना प्रारंभ किया। 2007 में गाजियाबाद, दिल्ली में जब वह नेशनल खेलने गईं तो कांस्य पदक लेकर लौटीं और इसी ने उनमें नया जोश भर दिया। 2008 में उषा का चयन राष्ट्रमंडल खेलों के लिए चुनी गई भारतीय टीम में हुआ। इसके लिए कैंप बेंगलुरु और लंदन में लगा।
 
लंदन जाने के पूर्व 2009 में तत्कालीन मु्ख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात की सभी लड़कियों उषा, भाविनी पटेल और सोनल को मिलने बुलाया और काफी देर चर्चा की। बाद में जब सभी लड़कियां जाने लगी तो मोदी ने खुद उषा की व्हीलचेयर के हैंडल को थामकर उसे आगे सरकाया। उषा ने तब मोदी से नौकरी की बात की। उन्होंने कहा कि आवेदन दे दो लेकिन बीसियों आवेदन देने के बाद भी सरकारी अधिकारियों की मनमानी के कारण वे आज तक सरकारी नौकरी से वंचित हैं।
वैसे इस प्रतिभाशाली पैरा टेबल टेनिस खिलाड़ी ने 2009 में जार्डन में एशियन चैम्पियनशिप हिस्सा लिया और उसमें केवल 1 अंक से अपना क्वार्टर फाइनल मुकाबला हार गईं, जिससे भारत पदक से वंचित रह गया। 2010 में दिल्ली में आयोजित राष्ट्मंडल खेलों में वे सेमीफाइनल तक पहुंचीं और भारत के लिए कांस्य पदक जीता। 2009 में उषा की वर्ल्ड रैंकिंग 34 रही है।  
 
अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में 1 कांस्य, राष्ट्रीय स्पर्धा में 1 स्वर्ण, 3 रजत और 7 कांस्य पदक जीतने वाली उषा ने अहमदाबाद में ही ब्लाइंड पीपल्स एसोसिएशन में जाकर दो साल का कम्प्यूटर डिप्लोमा कोर्स किया। इसके बाद भी जब उषा को कहीं से नौकरी की उम्मीद की किरण नहीं दिखाई दी, तब उन्होंने पोस्ट ग्रेज्युएशन डिप्लोमा इन स्पोर्ट्‍स (पीजीएससी) में बड़ौदा जाकर दाखिला लिया। वर्तमान में एक साल का कोर्स वे यहीं से कर रही है ताकि भविष्य में कोचिंग दे सकें।
उषा ने अपने दिल की बात बताई कि वे एक बार फिर मोदीजी से मिलना चाहती हैं ताकि वे बता सकें कि उनका नौकरी देने का आश्वासन लालफीताशाही के चलते फाइलों में दबा पड़ा है। वे यह भी मानती हैं कि अब प्रधानमंत्री से मिलना आसान नहीं है क्योंकि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते तो मुलाकात की आशा थी, अब नहीं...
 
33 बरस की उषा का कहना है कि देश में 99 फीसदी दिव्यांग निम्न या मध्यम वर्ग तबके से आते हैं, जिन्हें आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पैरा टेबल टेनिस खिलाड़ियों को भी प्रायोजक नहीं मिल पाते हैं जिसकी वजह से उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं से महरूम रहना पड़ता है। यही कारण है प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की हिम्मत भी जवाब दे जाती है। 
इंदौर में 22 से 25 मार्च तक आयोजित पहली आधिकारिक राष्ट्रीय पैरा टेबल टेनिस चैम्पियनशिप में भाग लेने आने के ठीक पूर्व गांधीनगर के राजभवन में उषा को 'गुजरात खेल प्रतिभा पुरस्कार' से राज्यपाल एपी कोहली ने सम्मानित किया है। क्या गुजरात सरकार से इतनी उम्मीद रखी जानी चाहिए कि वे अपने राज्य की प्रतिभाओं को सिर्फ सम्मान का हार पहनाने के साथ ही उनके रोजगार के लिए भी गंभीरत से सोचेगी??  
 
उषा को अभी भी उम्मीद है कि मोदीजी तक उनकी बात जरूर पहुंचेगी और नौकरी आश्वासन परिणाम में जरूर तब्दील होगा। हम भी उम्मीद करते हैं कि उषा की 'किरण' इस तरह जगमगा कर भारत का नाम दुनिया भर में रोशन करेगी। 
 
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