• Webdunia Deals
  1. खेल-संसार
  2. अन्य खेल
  3. समाचार
  4. Murlikant Petkar reflects on welfare of Paralympians
Written By WD Sports Desk
Last Modified: बुधवार, 22 जनवरी 2025 (18:10 IST)

गांवों में खेल अकादमियां खुले तो पैरा खिलाड़ियों के लिए अच्छा होगा: मुरलीकांत पेटकर

गांवों में खेल अकादमियां खुले तो पैरा खिलाड़ियों के लिए अच्छा होगा: मुरलीकांत पेटकर - Murlikant Petkar reflects on welfare of Paralympians
भारत के पहले पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता मुरलीकांत पेटकर को लगता है कि उनके जमाने में गांवों में खेलों के लिए उत्कृष्ट सुविधायें नहीं होती थी और अब भी पैरा खिलाड़ियों के लिए उपलब्ध सुविधाओं में सुधार की दरकार है इसलिये ध्यान शहरों के साथ साथ ग्रामीण इलाकों में अकादमियां खोलने पर होना चाहिए।

जर्मनी में 1972 में हुए पैरालंपिक खेलों में मिली ऐतिहासिक जीत के 52 साल बाद पेटकर को अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया। उन्होंने इन खेलों में पुरुषों की 50 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी में स्वर्ण पदक जीता और तीन विश्व रिकॉर्ड बनाए। इसके साथ ही वह पैरालंपिक में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत के पहले खिलाड़ी भी बने।

महाराष्ट्र में 1944 में जन्में पेटकर ने ‘भाषा’ से बातचीत में कहा, ‘‘यह पुरस्कार पाकर बहुत खुश हूं। लेकिन गांवों में अब भी खेलों के लिए उतनी सुविधायें मौजूद नहीं हैं जैसे शहरों में होती हैं, विशेषकर पैरा खिलाड़ियों के लिए। ’’

अस्सी साल के पेटकर कहा, ‘‘मेरे जमाने में देहात में कुछ सुविधा नहीं होती थी। अब भी जो खेल अकादमियां बन रही हैं वो शहरों में बन रही हैं। लेकिन गांवों में भी अकादमियां बनाओ। मेरा यही कहना है कि गांव में भी ऐसी उत्कृष्ट सुविधायें हों। ’’

अपने जमाने से अबकी तुलना करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘पहले कोच अच्छा होता था तो खिलाड़ी अच्छा नहीं होता था। खिलाड़ी अच्छा होता था तो कोच अच्छा नहीं होता था। लेकिन अब कोच भी अच्छा होता है और खिलाड़ी भी। सभी पढ़े लिखे हैं, बड़े बड़े स्टेडियम हैं, जहां अच्छा कोच चाहिए, वहां अच्छा कोच मुहैया कराया जाता है, इसलिये बच्चे विश्व रिकॉर्ड बना रहे हैं। ’’

भारतीय सेना की इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर्स कोर में सैनिक रहे पेटकर सक्षम खेलों में हिस्सा लेते थे लेकिन 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान हुए सेना के कैंप पर हुए हमले में उन्हें आठ गोली लगी जिससे उनका निचला शरीर लकवाग्रस्त हो गया। एक गोली अब भी उनकी रीढ़ की हड्डी में फंसी हुई है जिसके लिए दो सर्जरी की जा चुकी हैं लेकिन इसे निकाला नहीं जा सका है।

इसके बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, ‘‘एक गोली अब भी फंसी है। दुनिया में कहीं भी इसे नहीं निकाला जा सकता क्योंकि यह हड्डी के अंदर फंसी है। दर्द होता है, लेकिन यह अब जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। ’’

देश के लिए ओलंपिक में हिस्सा लेने का जुनून इस शारीरिक विकलांगता के बावजूद कम नहीं हुआ। उन्हें थेरेपी के अंतर्गत तैराकी करने की सलाह दी गई जिसके बाद उन्होंने पैरालंपिक खेलों की तैराकी स्पर्धा में हिस्सा लेने के लिए तैयारी शुरू कर दी।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 17 जनवरी को उन्हें 80 साल की उम्र में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया। उन्हें 2018 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

हादसे से पहले वह हॉकी और मुक्केबाजी खेलते थे। लेकिन अब तक वह करीब 10 खेलों में स्पर्धा कर चुके हैं। उनके सीने पर लगे तमगे उनकी उपलब्धियों को दर्शाते हैं।

उनके जीवन पर ‘चंदू चैंपियन’ फिल्म भी बन चुकी है जिसके बाद उनका नाम सभी की जुबां पर चढ़ गया। उन्होंने कहा, ‘‘2024 पेरिस पैरालंपिक से पहले मैंने खिलाड़ियों को इस फिल्म को दिखाया ताकि वे मेरी जिंदगी से प्रेरणा ले सकें कि पेटकर सर ने ऐसा किया था तो हमें भी करना है। ’’

‘चंदू चैंपियन’ ने उन्हें घर घर तक पहुंचाया तो इस पर उन्होंने कहा, ‘‘चंदू चैंपियन के बाद प्रसिद्धि मिली, लोग पहले मुझे ओलंपिक चैंपियन के नाम से जानते थे। पहले प्रमाण पत्र दिखाता था। लेकिन इसकी जरूरत नहीं पड़ती। अब सबको पता है। ’’ (भाषा)
ये भी पढ़ें
भारत ने टॉस जीतकर इंग्लैंड के खिलाफ पहले गेंदबाजी करने का किया फैसला (Video)