पूर्व हॉकी कप्तान प्रीतम सिवाच ने भारतीय महिला कोच में विश्वास की कमी की आलोचना की
राष्ट्रीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान प्रीतम रानी सिवाच (Pritam Rani Siwach) ने गुरूवार को देश में भारतीय महिला कोच में विश्वास नहीं करने की आलोचना की और कहा कि कई लोगों को अब भी टीम का सफलतापूर्वक मार्गदर्शन करने की उनकी क्षमता पर संदेह है।
जूनियर महिला एशिया कप 2012 में रजत जीतने वाली भारतीय टीम की कोच और द्रोणाचार्य पुरस्कार हासिल करने वाली एकमात्र महिला हॉकी कोच सिवाच 2004 से सोनीपत हॉकी अकादमी में प्रतिभाओं को निखार रही हैं।
BBC की साल की सर्वश्रेष्ठ भारतीय महिला खिलाड़ी (BBC Indian Sportswoman Of The Year Award) के नामांकन की घोषणा के दौरान सिवाच ने कहा, भारत पुरुष प्रधान देश है। वे कहते हैं कि महिलाओं ने बहुत लंबा सफर तय किया है लेकिन आज भी उन्हें भरोसा नहीं है कि कोई भारतीय महिला राष्ट्रीय टीम की कोच बन सकती है। हालांकि वे आसानी से विदेशी महिला कोच को ले आते हैं।
सिवाच 2002 में राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थीं और 1998 में उनकी मौजूदगी वाली टीम ने एशियाई खेलों में रजत पदक भी जीता।
उन्होंने हितधारकों से भारतीय कोच पर भरोसा रखने का आग्रह किया और कहा, हमें उन पर भरोसा करना चाहिए। अगर हम राष्ट्रीय टीम के लिए जमीनी स्तर के खिलाड़ियों को तैयार कर सकते हैं तो हम उन्हें कोचिंग क्यों नहीं दे सकते?
सिवाच ने भाषा संबंधी बाधाओं जैसी चुनौतियों का उल्लेख किया जिसके कारण खिलाड़ियों को महत्वपूर्ण क्षणों के दौरान निर्देशों को समझने में परेशानी होती है।
उन्होंने कहा, मैं यह नहीं कह रही हूं कि विदेशी कोच बुरे हैं लेकिन फिर भी हम उनके पीछे ही हो गए हैं ना। उन्हें लाओ लेकिन देश में भी बहुत प्रतिभा है।
सिवाच ने कहा, भाषा संबंधी बाधा है। हमें दो मिनट का ब्रेक मिलता है और फिर विदेशी कोच आकर बात करते हैं और कई खिलाड़ियों को पता ही नहीं चलता कि कोच ने क्या कहा। (भाषा)