Solar Eclipse 2021: कंकणाकृति सूर्यग्रहण क्या होता है, जानिए
10 जून 2021 गुरुवार को ज्योतिष की दृष्टि में वर्ष का पहला सूर्यग्रहण होने जा रहा है। यह सूर्य ग्रहण भारत में न के बराबर दिखाई देगा। इसलिए इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा। यह सूर्य ग्रहण उत्तरी अमेरिका के उत्तर पूर्वी भाग, उत्तरी एशिया और उत्तरी अटलांटिक महासागर में दिखाई देगा। इसके बाद वर्ष का दूसरा ग्रहण 4 दिसंबर 2021 को दिखाई देगा। आखिर कितने प्रकार के सूर्य ग्रहण होते हैं और कंकणाकृती सूर्य ग्रहण क्या होता है जानिए संक्षिप्त में।
दरअसल, ग्रहण तीन प्रकार होते हैं जैसे खग्रास या पूर्ण, खंडग्रास या मान्द्य, वलयकार या कंकणाकृति। जब पृथ्वी पर चंद्रमा की छाया पड़ती है तब सूर्य ग्रहण होता है और जब पृथ्वी सूर्य तथा चंद्रमा के बीच आती है, तब चंद्र ग्रहण होता है। सूर्य और धरती के बीच जब चंद्रमा आ जाता है तब सूर्य ग्रहण होता है।
1.पूर्ण सूर्य ग्रहण (Full Solar Eclipse) : इसे खग्रस ग्रहण भी कहते हैं। चंद्रमा जब सूर्य को पूर्ण रूप से ढंग लेता है तो ऐसे में चमकते सूरज की जगह एक काली तश्तरी-सी दिखाई है। इसमें सबसे खूबसूरत दिखती है 'डायमंड रिंग।' चंद्र के सूर्य को को पूरी तरह से ढंकने से जरा पहले और चांद के पीछे से निकलने के फौरन बाद काली तश्तरी के पीछे जरा-सा चमकता सूरज हीरे की अंगूठी जैसा दिखाई देता है। संपूर्ण हिस्से को ढंकने की स्थिति खग्रास ग्रहण कहलाती है।
2. आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial Solar Eclipse) : इसे खंडग्रास ग्रहण भी कहते हैं। आंशिक ग्रहण तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा एक सीधी लाइन में नहीं होते और चंद्रमा सूर्य के एक हिस्से को ही ढंक पाता है। यह स्थिति खण्ड-ग्रहण कहलाती है खंडग्रास का अर्थ अर्थात वह अवस्था जब ग्रहण सूर्य या चंद्रमा के कुछ अंश पर ही लगता है। अर्थात चंद्रमा सूर्य के सिर्फ कुछ हिस्से को ही ढंकता है।
3. वलयाकार सूर्य ग्रहण (Elliptical Solar Eclipse) : इसे कंगन या कंकणाकृति सूर्य ग्रहण भी कहते हैं। सूर्य ग्रहण में जब चंद्रमा पृथ्वी से बहुत दूर होता है और इस दौरान पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है। ऐसे में सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। कंगन आकार में बने सूर्य ग्रहण को ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।
कंकणाकृति सूर्यग्रहण ( kankanakruti suryagrahan ): सूर्य, चंद्र और धरती जब एक सीध में होते हैं अर्थात चंद्र के ठीक राहु और केतु बिंदु पर ना होकर ऊंचे या नीचे होते हैं तब खंड ग्रहण होता और जब चंद्रमा दूर होते हैं तब उसकी परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती तथा बिंब छोटे दिखाई देते हैं। उसके बिम्ब के छोटे होने से सूर्य का मध्यम भाग ढक जाता है। जिससे चारों और कंकणाकार सूर्य प्रकाश दिखाई पड़ता है। इस प्रकार के ग्रहण को कंकणाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं। ग्रहण के दौरान सूर्य में छोटे-छोटे धब्बे उभरते हैं जो कंकण के आकार के होते हैं इसीलिए भी इसे कंकणाकृति सूर्यग्रहण कहा जाता है।