सिंहासन बत्तीसी : बीसवीं पुतली ज्ञानवती की कहानी
Sinhasan Battisi 20th Story बीसवीं पुतली ज्ञानवती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य सच्चे ज्ञान के बहुत बड़े पारखी थे तथा ज्ञानियों की बहुत कद्र करते थे। उन्होंने अपने दरबार में चुन-चुन कर विद्वानों, पंडितों, लेखकों और कलाकारों को जगह दे रखी थी तथा उनके अनुभव और ज्ञान का भरपूर सम्मान करते थे। एक दिन वे वन में किसी कारण विचरण कर रहे थे तो उनके कानों में दो आदमियों की बातचीत का कुछ अंश पड़ा।
उनकी समझ में आ गया कि उनमें से एक ज्योतिषी है तथा उन्होंने चंदन का टीका लगाया और अंतर्ध्यान हो गए। ज्योतिषी अपने दोस्त को बोला, 'मैंने ज्योतिष का पूरा ज्ञान अर्जित कर लिया है और अब मैं तुम्हारे भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में सब कुछ स्पष्ट बता सकता हूं।'दूसरा उसकी बातों में कोई रुचि न लेता हुआ बोला, 'तुम मेरे भूत और वर्तमान से पूरी तरह परिचित हो इसलिए सब कुछ बता सकते हो और अपने भविष्य के बारे में जानने की मेरी कोई इच्छा नहीं है। अच्छा होता तुम अपना ज्ञान अपने तक ही सीमित रखते।' मगर ज्योतिषी रुकने वाला नहीं था। वह बोला, 'इन बिखरी हुई हडि्डयों को देख रहे हैं। मैं इन हडि्डयों को देखते हुए बता सकता हूं कि ये हडि्डयां किस जानवर की हैं तथा जानवर के साथ क्या-क्या बीता?' लेकिन उसके दोस्त ने फिर भी उसकी बातों में अपनी रुचि नहीं जताई।