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Shri Krishna 16 May Episode 14 : अदृश्य मानव उत्कच का वध और नामकरण संस्कार

Shri Krishna 16 May Episode 14 : अदृश्य मानव उत्कच का वध और नामकरण संस्कार - Shri Krishna on DD National Episode 14
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्री कृष्णा धारावाहिक के 16 मई के 14वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 14 ) में अदृश्य (न दिखाई देना वाला) उत्कच गोकुल पहुंच जाता है और वहां वह नन्हें बालक को पालने में देखता है। उस वक्त श्रीकृष्ण आंगन में पालने में खेलते रहते हैं। बालकृष्ण उसे देखकर मुस्कुराते हैं। उत्कच आंगन में रखी एक छकड़ा (छोटी बैलगाड़ी) को सरकाते हुए धीरे-धीरे बालकृष्ण के पास लाता है।

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वह छकड़े से पालने को कुचलने का प्रयास करता है लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाता है तभी पालना टूट जाता है। आंगन में खड़े सभी सेवक उस ओर देखते हैं। तभी बालकृष्ण छकड़ा को एक लात मारकर उसे आसमान में उछाल देते हैं जिसकी चपेट में आकर उत्कच भी आसमान में चीखता हुआ दूर निकल जाता है। उत्कच तो जाकर यमुना में गिर पड़ता है लेकिन बैलगाड़ी आसमान से नीचे आंगन में गिर पड़ती है। तभी माता यशोदा वहां आकर यह दृश्य देखकर घबरा जाती है। वह लल्ला के पास दौड़कर आती है। लल्ला तो टूटे हुए पालने में मुस्कुरा रहा होता है।
 
तभी नंदजी वहां दौड़कर ग्रमीणों के साथ आकर पूछते हैं यशोदा ये सब क्या हो गया? रोहिणी भी घबराकर आकर पूछती है क्या हुआ यशोदा? तभी एक ग्रमीण पूछता है ये छकड़ा कैसे उल्टा हुआ? तब एक महिला कहती है पता नहीं हम तो लल्ला को झुला रही थीं तभी यह छकड़ा आकाश की ओर उछला और नीचे गिर पड़ा।
 
नंदजी कहते हैं परंतु इसे ऊपर उछाला किसने? तभी एक महिला कहती है लल्ला ने। नंदजी कहते हैं लल्ला ने? तेरी बुद्धि तो ठीकाने हैं? वह महिला कहती है मैं सत्य कहती हूं। मैंने यही देखा कि लल्ला ने पैर का अंगूठा लगाया और यह शकट ऊपर उछल गया। लेकिन किसी को भी इस बात पर विश्वास नहीं होता है। यशोदा मैया की गोद में लल्ला मुस्कुराते रहते हैं। तब एक ग्रमीण कहता है कि इसे किसी की कुदृष्टि लग गई है। तब नंदबाबा कहते हैं कि तुम ठीक कहते हो। इन दो महीने में कितनी बार इसके प्राण बचे हैं। हम कल ही गुरुदेव शांडिल्य के पास जाएंगे और पूछेंगे कि इसकी जन्मकुंडली में ऐसा कौनसा ग्रह है जिसके कारण इसके प्राण बार-बार संकट में पड़ जाते हैं?
 
शांडिल्य ऋषि बालकृष्ण को देखकर प्रणाम करते हैं। फिर कहते हैं कि ये तो स्वयं संकटहारी है। इसके प्राणों को संकट में डालने की शक्ति किसी ग्रह में नहीं है। तब यशोदा मैया कहती हैं कि फिर क्यों बार-बार ऐसी बाधाएं आती हैं मेरे लाल पर? गुरुदेव मैं बहुत डर गई हूं। कोई ग्रह शांति का उपाय करें। तब शांडिल्य यशोदा मैया को समझाते हैं कि ये तो भगवान है। लेकिन यशोदा कहती हैं ऐसी बातें संत-महात्माओं के समझ में आ सकती है लेकिन माता की नहीं। मैं तो इतना समझती हूं कि किसी भूत-प्रेत की छाया हमारे घर पर पड़ी है। आप हमारे कुलगुरु हैं आप ही हमारी सुरक्षा करें। तब शांडिल्य ऋषि कहते हैं अच्छी बात है जैसा आप कहती हो। हम ग्रह आदि की पूजा ही कर लेते हैं। हमारे अहोभाग्य। ऐसा कहकर वे मंत्र पढ़ते हैं और बालकृष्ण मुस्कुराते रहते हैं।
 
उधर, आकाश में श्रीकृष्ण मुस्कुराते हैं तो श्रीराधा कहती हैं कि वाह क्या लीला है आपकी प्रभु शांडिल्य मुनि से पुरुष सूक्त के मंत्रों के द्वारा अपनी ही स्तुति करवा रहे हो। श्रीकृष्ण कहते हैं कि राधे यह सूक्त हमें अति प्रिय है। इसकी रचना स्वयं ब्रह्माजी ने की थी।
 
तब राधा पूछती हैं कि उस दैत्य उत्कच ने ऐसा कौनसा पुण्य कर्म किया था कि उसको आपके श्रीचरणों में मुक्ति मिली? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि उसने कोई पुण्य कर्म नहीं किया था। हमने तो अपने परम भक्त महर्षि लोमश ऋषि की वाणी को सिद्ध करने के लिए ही उसका उद्धार किया था। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि पूर्व जन्म में यह उत्कच हिरण्याक्ष का पुत्र था। उसे अपनी बलवान देह पर बड़ा गर्व था। उसने एक बार ऋषि का आश्रम उजाड़ दिया तो ऋषि ने श्राप दिया कि जा देहरहित हो जा। श्राप से तक्षण ही वह अदृश्य हो जाता है। तब वह ऋषि के चरणों में गिरकर क्षमा मांगता है। तब ऋषि कहते हैं कि तू इसी शरीर के साथ भटकता रहेगा तब 28वें मनवंतर के द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श से तेरा पूर्ण उद्धार होगा।
 
उधर, नंदरायजी से शांडिल्य ऋषि कहते हैं कि हमारे आश्रम में गर्ग मुनिजी आएंगे तब इस अवसर पर आप देवी रोहिणी के पुत्र और आपके बालक का नामकरण उनके ही हाथों से करा दें तो उत्तम होगा। क्योंकि महर्षि गर्ग बहुत ही सिद्ध मुनि हैं।
 
उधर, महर्षि गर्ग माता देवकी और वसुदेवजी को यह बताते हैं कि जैसा मैंने आपको बताया था मैंने शांडिल्य ऋषि को आपका संदेश भेज दिया है वे एक यज्ञ का अनुष्ठान करेंगे। उसमें उन्होंने मुझे आमंत्रित किया है। उस दौरान में वहां गुप्त रूप से आपके पुत्रों का नामकरण संस्कार करूंगा। इसके बा‍द देवकी माता और वसुदेवजी दोनों बालक के लिए महर्षि गर्ग को वस्त्र भेंट करते हैं।
 
दूसरी ओर कंस को उसका एक दरबारी बताता है कि मेरे गुप्तचरों के अनुसार महामुनि गर्गाचार्य यमुना पार करके गोकुल गए हैं। कंस पूछा है गोकुल में कहां, किसके पास? तब दरबारी कहता है कि महर्षि शांडिल्य के पास। तब कंस पूछता है कि किस प्रायोजन से? तब दरबारी कहता है कि एक यज्ञ के समापन अवसर पर पूर्णाहुति देने। तब कंस कहता है कि यह तो साधारण बात है। 
 
इस पर दरबारी कहता है कि वसुदेवजी अपने कुलगुरु गर्गाचार्य के आश्रम में पिछले कुछ दिनों से निरंतर आश्रम में जाते देखे गए हैं। इसलिए सेवक के मन में एक विचार आ रहा है कि महाराज के मन में जो यह संदेह है कि वसुदेव का आठवां बालक छल से गोकुल में पहुंचा दिया गया है तो गर्गाचार्य का वहां जाना कहीं इसी के संबंध में तो नहीं? फिर दरबारी कहता है कि यदि वह बालक नंदराय का है तो उसके सारे संस्कार उसके कुलगुरु शांडिल्य ही करेंगे और यदि वह वसुदेव का है तो ऋषि गर्ग करेंगे। यह सुनकर कंस सतर्क हो जाता है। तब कंस कहता है कि अपने गुप्तचरों को वहां भेजो जो गोकुल में जाकर गर्ग मुनि की गतिविधियों पर ध्यान रखें। हम अभी तक जो भी करते रहे हैं केवल एक अनुमान पर ही करते रहे हैं लेकिन अब यह संदेह मिट जाएगा।
 
उधर, शांडिल्य ऋषि और गर्गाचार्य एक-दूसरे से मिलकर प्रभु के बालरूप की बात करते हैं। वहां एक कुटिया में अनुष्ठान और गौशाला में नामकरण संस्कार की तैयारी की जाती है। फिर दोनों बालक को गौशाला में लाया जाता है। गर्ग ऋषि बालकृष्ण को देखकर मंत्रमुग्ध और भावविभोर हो जाते हैं। बालकृष्ण उन्हें देखकर मुस्कुराते हैं।
 
तब शांडिल्य ऋषि कहते हैं कि कंस के आतंक के कारण रोहिणी इसीलिए अब तक मथुरा न जा सकीं। अत: अब जब आप यहां आ गए हैं तो बालक का नामकरण संस्कार कीजिए। गर्ग ऋषि कहते हैं कि अवश्य कुमार वसुदेव की भी यदि इच्छा थी। उनका एक पुत्र रोहिणी का पुत्र है। इसलिए महर्षि शांडिल्य ने गोपनीय रीति से इस गुप्त स्थान पर इसका आयोजन कर दिया है।
 
तब नंदजी भी कहते हैं कि हमारे लल्ला का भी नामकरण संस्कार कर दीजिए गुरुवर। तब गर्गजी कहते हैं कि ये अधिकार तो आपके कुलगुरु महर्षि शांडिल्यजी का है। तब शांडिल्यजी कहते हैं कि भगवान हमारी भी यही इच्छा है। गर्ग ऋषि कहते हैं कि यदि मैं ऐसा करूंगा तो कंस को यह सूचना मिलेगी तो वह यही समझेगा कि यही वसुदेवजी का आठवां पुत्र है तो बड़ा संकट भी पैदा हो सकता है।
 
इस पर नंदरायजी कहते हैं कि उसे पता नहीं चलेगा गुरुववर। गर्ग ऋषि कहते हैं कि क्या आप इस रहस्य को गोपनीय रखने का वचन देते हैं? नंदजी कहते हैं अवश्य। तब गर्ग जी दोनों का नामकरण करते हैं। एक का नाम बलराम और दूसरे का कृष्ण। फिर गर्ग ऋषि दोनों के नाम का रहस्य और भविष्य बताते हैं। आकाश में से यह दृश्य सभी देवता देख रहे होते हैं। गर्ग मुनि आसमान में देखकर हाथ जोड़ते हैं और उनकी आंखों से आंसू निकल जाते हैं। जय श्रीकृष्णा।
 
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