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Last Updated : शनिवार, 16 मई 2020 (10:27 IST)

Shri Krishna 15 May Episode 13 : कंस ने जब भेजा एक तांत्रिक, कागासुर और मायावी उत्कच

Shri Krishna 15 May Episode 13 : कंस ने जब भेजा एक तांत्रिक, कागासुर और मायावी उत्कच - Shri Krishna on DD National Episode 13
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्री कृष्णा धारावाहिक के 15 मई के 13वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 13 ) में पूतना वध के बाद कंस मधुरा के ब्राह्मण पुरोहित श्रीधर तांत्रिक को गोकुल भेजता है। तंत्र विद्याओं में माहिर वह ब्राह्मण किसी तरह गोकुल में दाखिल होता और फिर उसकी क्या दशा होती है यही सब आज बताया गया।

रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
उधर जब कंस को यह पता चलता है कि पूतना का वध हो गया तो वह अपने सभी मंत्रिगणों के साथ चर्चा करता है। चाणूर कहता है कि यह वही बालक है जिसकी हमें खोज है। क्योंकि यह बात पूतना की मृत्यु से सिद्ध हो चुकी है। जो उस हलाहल विष को पीकर भी जीवित रहा वह कोई साधारण बालक नहीं हो सकता।
फिर कंस एक और मायावी राक्षस को भेजने की बात करता है और चाणूर से कहता है कि कल प्रात: तक उस मायावी को मेरे सामने उपस्थित करो। वह जो भी पारितोषिक मांगेगा उसे हम दे देंगे।
 
प्रात: कंस चाणूर से कहता है, चाणूर हमारा ये पुरोहित तुम्हारे साथ आया है। चाणूर कहता है जी महाराज। फिर कंस कहता है कि परंतु तुम तो उसे लाने वाले थे जो गोकुल जाकर उस नंदपुत्र की हत्या का बिड़ा उठाएगा? चाणूर तुम जानते हो हमें जिसका नाश करना है वह कोई साधारण बालक नहीं है, ये ब्राह्मण वहां जाकर क्या करेगा? उसके लिए किसी शक्तिशाली दैत्य को भेजो। इस बिचारे ब्राह्मण से क्या होगा?
 
तब श्रीधर नाम का वह पुरोहित कहता है कि ब्राह्मण बिचारा नहीं होता। मैं मंत्र, तंत्र आदि विद्या में पारंगत हूं। मैं शुक्राचार्य का मानसिक शिष्य हूं। महाबली चाणूर हमारी शक्ति को जानते हैं। फिर कंस कहता हैं कि जो कोई ये कार्य करेगा उसे हम मुंह मांगा पारितोषिक देंगे। यदि तुम यह कार्य कर सकते हो तो जाओ।
 
उधर, यशोदा मैया माता रोहिणी को यह बोलकर कहीं चली जाती है कि दीदी जरा लल्ला का ध्यान रखना, मैं अभी आई। फिर नंदराय यशोदा मैया से कहते हैं कि किसी भी अपरिचित व्यक्ति को घर में न आने देना। स्त्री हो या पुरुष, कोई भी हो। नंदजी माता यशोदा से ऐसा बोल ही रहे थे कि तभी कंस का वह पूरोहित गरीब फटेहाल ब्राह्मण बनकर नंद के द्वार पर भिक्षा मांगने लगता है।
नंदराय को उसकी हालत पर तरस आ जाता है। वे पूछते हैं कि आप कौन हैं और कहां से आएं है? इस पर वह कहता है कि ब्राह्मण हूं, बाणासुर की नगरी से आया हूं और दो दिन से भूखा हूं। फिर नंदरायजी कहते हैं, परंतु रास्ते में मथुरा नगरी तो थी। तब वह कहता है कि हां परंतु वहां ब्राह्मण और गऊ का सत्कार कोई नहीं करता। वो अधर्म की नगरी हो गई है। गोकुल धर्म की नगरी है। यदि हमारे एकादशी व्रत का परायण आपके घर में हो जाए तो ब्राह्मण आशीर्वाद देगा। आपका पुत्र चिरंजीवी हो जाएगा। यह सुनकर यशोदा मैया और नंदरायजी प्रसन्न हो जाते हैं।
 
फिर नंदराय कहते हैं कि यशोदा इन्हें भीतर ले जाओ और इन्हें भोजन कराकर तृप्त करो। भोजन के पश्चात इन्हें दक्षिणा भी देना। यह कहकर नंदराय बाहर चले जाते हैं और माता यशोदा उस छद्म ब्राह्मण को घर के अंदर ले जाती हैं।
 
यशोदा मैया उस ब्राह्मण को लल्ला के पालने के सामने बिठाकर रोहिणी माता के साथ रसोई घर में भोजन बनाने के लिए चली जाती है। फिर वह पुरोहित पालने में लेटे बालकृष्ण को देखकर ओम नम: शिवाय का जाप करने लगा है। बालकृष्ण उसे देखकर मुस्कुराते हैं। पास में ही दाऊ भैया भी दूसरे पालने में सोये रहते हैं।
फिर वह पुरोहित मन ही मन अपनी तांत्रिक शक्तियों को जगाना प्रारंभ कर देता है। यह देखकर पालने में लेटे बालकृष्ण दूसरे पालने में लेटे दाऊ भैया को मानसिक रूप से कहते हैं, दाऊ भैया। दाऊ भैया कहते हैं, हां भैया। तब बालकृष्ण कहते हैं, इसका क्या करें? तब दाऊ भैया कहते हैं आप बताओ? इस पर बालकृष्ण कहते हैं कि पूतना तो नकली ब्राह्मणी बनकर आई थी परंतु ये तो सचमुच का ब्राह्मण है। भले ही भ्रष्ट है परंतु ब्राह्मण है। इसे मारने से तो ब्रह्म हत्या लगेगी। यह सुनकर दाऊ कहते हैं तो क्या करेंगे भैया? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि इसको तो मजा चखा देंगे। दाऊ कहते हैं कि हां बड़ा मजा आएगा भैया।
 
फिर वह ब्राह्मण अपनी शक्ति से अपने हाथ से एक राक्षसनी प्रकट करता है। बालकृष्ण मुस्कुराते हैं। वह राक्षसनी उन्हें खाने के लिए पालने में झुकती है तो उसे बिजली का झटका लगता है। वह तीन बार यह प्रयास करती है। यह देखकर पुरोहित भी दंग रह जाता है। फिर उस राक्षसनी को भयंकर झटका लगता है तो वह गायब हो जाती है। यह देखकर ब्राह्मण पुरोहित दंग रह जाता है। फिर वह खुद ही बालकृष्ण के पास जाकर एक हाथ से उनको मारने का प्रयास करता है तब उसे भी जोर का बिजली का झटका लगता है जिसके चलते वह चीखने लगता है और उसका एक हाथ टेड़ा होकर काम करना बंद कर देता है। तब वह दूसरे हाथ से बालकृष्ण को मारने का प्रयास करता है लेकिन बिजली के झटके से उसके दूसरे हाथ का भी यही हाल हो जाता है। फिर वह अपना मुंह ले जाता है लेकिन वह भी बिजली का झटका खाकर तेड़ा हो जाता है।
तब दाऊ भैया अपने चमत्कार से गणेशजी के गले की मोतियों की माला निकालकर उसकी कमर में लटका देते हैं। बालकृष्ण ऊपर से माखन की मटकी उसके सिर पर गिराकर फोड़ देते हैं। वह माखन में नहा लेता है। तभी वहां रोहिणी और यशोदा मैया आ जाती है। ब्राह्मण का यह हाल देखकर वह दोनों हंसने लगती है। यशोदा मैया कहती हैं ये क्या किया आपने?
 
तभी रोहिणी देखती है कि इसके कमर में तो मोतियों की माला बंधी है। यह देखकर वह कहती है अरे ये तो कोई चोर है। ये तो भगवानजी का हार चुराकर ले जा रहा था। शायद इसीलिए भागते हुए यह गिर गया होगा। पालने में लेटे बालकृष्ण मुस्कुराते रहते हैं। यशोदा मैया कहती है छी-छी ब्राह्मण देवता। ऐसा नीच काम क्यों किया?
 
लेकिन वह ब्रह्मण मुंह तेड़ा होने के कारण कुछ बोल ही नहीं पाता है और भयभीत होकर सभी को देखता रहता है। तभी रोहिणी माता चिल्लाती है चोर-चोर-चोर। सभी लोग इकट्ठे होकर उसकी धुलाई कर देते हैं। तभी वहां नंदरायजी पहुंचकर उसे छुड़ाते हैं। तब नंदरायजी कहते हैं कि यह बहुत दुखी और भूखा था। धन को देखकर इसका मन डोल गया होगा। यह ब्राह्मण है इसे छोड़ दो, जाने दो। यह सचमुच दया का पात्र है। फिर नंदरायजी उसे मोतियों की माला देकर उसे वहां से जाने देते हैं। वह ब्राह्मण वहां से चला जाता है।
वह ब्राह्मण अपना टेड़ा-मेड़ा शरीर लेकर अपने घर पहुंचता है, जहां शुक्राचार्य की मूर्ति में से स्वयं शुक्राचार्य प्रकट होकर कहते हैं कि अबे मूर्ख अपने किए का फल पाकर अब क्यों पछता रहा है? जब तुने एक नन्हें शिशु की हत्या का संकल्प किया था तो उसी क्षण तु ब्राह्मण पद से गिरकर चांडाल हो गया। तुने मुझे अपना गुरु माना लेकिन मेरे आदर्श को नहीं माना। मैं दैत्यों का गुरु हूं लेकिन मैंने उनके पाप कर्म में कभी उनका साथ नहीं दिया। पापी तुने तो ब्राह्मणों को लज्जित कर दिया है। ऐसा कहकर शुक्राचार्यजी अदृश्य हो जाते हैं।
 
फिर नारदजी प्रकट होते हैं और कहते हैं तुम भले ही भ्रष्ट ब्राह्मण थे फिर भी ब्राह्मण समझकर प्रभु ने तुम्हारे प्राण नहीं लिए। तुम्हें जीवित छोड़ दिया ताकि पश्चाताप की अग्नि में जल-जलकर तुम इसी जन्म में शुद्ध हो जाओ। अब तुम हिमालय में जाकर प्रभु के बालरूप का ध्यान करो। समय आने पर तुम्हारे बोलने की शक्ति पुन: प्राप्त हो जाएगी, लेकिन इस जन्म में तुम अपनी जिव्याह से सिर्फ प्रभु की स्तुति ही कर सकते हो। यह कहकर नादरजी अदृश्य हो जाते हैं।

कंस को यह बात पता चलती है कि ब्राह्मण श्रीधर भी असफल हो गया तो वह फिर कागासुर को आदेश देता है कि जाओ अपनी चीखी चोंच से उस बालक के टूकड़े-टूकड़े कर डालो। कागासुर कहता है जो आज्ञा महाराज। ऐसा कहकर वह आकाश में उड़ जाता है और गोकुल पहुंच जाता है।
 
श्रीकृष्ण पालने में उसे मुस्कुरा रहे होते हैं। कागासुर वहां पहुंचकर अपनी चोंच में से तरह-तरह की मायावी शक्तियां छोड़ता है। जैसे आग, जल, धुआं आदि, लेकिन श्रीकृष्ण पालने में मुस्कुराते रहते हैं। फिर कागासुर अपनी चोंच से बालकृष्ण को उठाने का प्रयास करता है, लेकिन प्रभु उसे अपनी माया से उठाकर कंस के चरणों में फेंक देते हैं।

कंस यह देखकर आश्चर्य करता है। वह चाणूर से कहता है कि चाणूर एक से एक मायावी सभी उसके सामने शक्तिहीन हो गए चाणूर। उस नन्हें से बालक ने कागासुर को यहां फेंककर हमें बहुत बड़ी चुनौती है। तभी कंस का एक मित्र वहां आ जाता है। वह अदृश्य मित्र रहता है जो दिखाई नहीं देता लेकिन उसकी आवाज सुनाई देती है। जिसका नाम उत्कच करता है। कंस कहता है उत्कच तुम बहुत सही समय पर आए हो। उत्कच बोलता है कि उसे तो मैं समाप्त करूंगा। वह कहता है कि आज ही सूर्यास्त से पहले ही मैं आपके शत्रु का नाश कर दूंगा। आप उत्सव की तैयारी करें मित्र।
 
अदृश्य (न दिखाई देना वाला) उत्कच गोकुल पहुंच जाता है और वहां वह नन्हें बालक को पालने में देखता है। उस वक्त श्रीकृष्ण आंगल में पालने में खेलते रहते हैं। बालकृष्ण उसे देखकर मुस्कुराते हैं। उत्कच एक बैलगाड़ी हुए को सरकाते धीरे धीरे बालकृष्ण के पास लाता है। जय श्रीकृष्णा।
 
 
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