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Written By अनिरुद्ध जोशी

Shri Krishna 11 May Episode 9 : संकर्षण और श्रीकृष्ण का जन्म, योगमाया का आदेश

Shri Krishna 11 May Episode 9 : संकर्षण और श्रीकृष्ण का जन्म, योगमाया का आदेश - Shri Krishna on DD National Episode 9
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्री कृष्णा धारावाहिक के 11 मई के नौवें एपिसोड में माता देवकी का वध करने के लिए चाणूर कंस पर दबाव बनाता है, लेकिन कंस कहता है नहीं, नहीं वहां सांप है।
 
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दूसरी ओर माता रोहिणी के यहां पुत्र के जन्म की खुशियां मनाई जाती हैं। देवताओं में हर्ष व्याप्त हो जाता है। वे सभी रोहिणी के पुत्र संकर्षण अर्थात बलराम की स्तुति गाते हैं।
 
उधर, रात्रि में जब कंस अपने शयनकक्ष में सोया होता है तो उसे स्वप्न में भगवान विष्णु का हाथ में लिए शंख नजर आता है। वह भयभीत हो जाता है। फिर उसे अपने कक्ष की खिड़की में हाथ में शंख नजर आता है तो वह तलवार से उसे काटने का प्रयास करता है लेकिन बार बार वह शंख गायब हो जाता। तब वह कहता है विष्णु क्यूं इस प्रकार का छल करता है? अगर हिम्मत है तो सामने आ। तब उसे एकदम से चाणूर की बात याद आती है कि देवकी ही सारी चिंताओं की जड़ है। न रहेगी देवकी न रहेगी चिंता। फिर वह सोचता है नहीं, एक अबला का वध करना वीरता नहीं है। तब वह चीखता है नहीं मैं देवकी को नहीं मारूंगा। फिर वह बोलता है विष्णु, विष्णु सामने आ। क्यूं इस प्रकार का छल करता है। अगर हिम्मत है तो सामने आ।
तभी भगवान विष्णु वहां प्रकट हो जाते हैं। फिर उसे चारों और विष्णु ही विष्णु दिखाई देते हैं। वह घबरा जाता है। यह देखकर नारद मुनि को हंसी आ जाती है। फिर नारद कहते हैं कि प्रभु ये कैसी लीला है आपकी? वह तो निरंतर ही आपका ध्यान कर रहा है और जो निरंतर आपका ध्यान करता है वह तो मोक्ष को प्राप्त होगा ना? तब श्रीकृष्ण नारदजी को समझाते हैं कि जो हमें जिस रूप में ध्यायेगा वह हमें उसी रूप में पाएगा। कंस हमें शत्रु रूप में ध्याता है।
 
इसके बाद यह बताया जाता है किस नक्षत्र, किस मुहूर्त आदि में श्रीकृष्ण का कारागार में जन्म हुआ। भगवान स्वयं देवकी और वसुदेव को दर्शन देते हैं और कहते हैं कि हे माता आपके पुत्र रूप में मेरे प्रकट होने का समय आ गया है। तीन जन्म पूर्व जब मैंने आपके पुत्र रूप में प्रकट होने के वरदान दिया था।
 
तब श्रीकृष्ण भगवान वसुदेव और देवकी के पूर्व जन्म की कथा बताते हैं और कहते हैं कि आप दोनों ने प्रजापति सुतपा और देवी वृष्णी के रूप में किस तरह मुझे प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। फिर मैंने तीन बार तथास्तु कहा था इसलिए मैं आपके तीन जन्म में आपके पुत्र के रूप में प्रकट हुआ। पहले जन्म में वृष्णीगर्भ के नाम से आपका पुत्र हुआ। फिर दूसरे जन्म में जब आप देव माता अदिति थी तो मैं आपका पुत्र उपेंद्र था। मैं ही वामन बना और राजा बलि का उद्धार किया।
अब इस तीसरे जन्म में मैं आपके पुत्र रूप में प्रकट होकर अपना वचन पूरा कर रहा हूं। यदि आपको मुझे पुत्र रूप में पाने का पूर्ण लाभ उठाना है तो पुत्र मोह त्यागकर मेरे प्रति आप ब्रह्मभाव में ही रहना। इससे आपको इस जन्म में मोक्ष मिलेगा।
 
यह सुनकर माता देवकी कहती हैं कि हे जगदीश्वर यदि मुझमें मोक्ष की लालसा होती तो उसी दिन में मोक्ष न मांग लेती! नहीं प्रभु, मुझे मुक्ति नहीं चाहिए। मुझे तो आपके साथ मां बेटे का संबंध चाहिए। यह सुनकर प्रभु प्रसन्न हो जाते हैं। फिर माता देवकी कहती हैं कि इस चतुर्भुज रूप को हटाकर आप मेरे सामने नन्हें बालक के रूप में प्रकट हों। मुझे तो केवल मां और पुत्र का संबंध ही याद रहे बस। तब श्रीकृष्ण कहते हैं तथास्तु। 
 
फिर माता योगमाया प्रकट होती है।फिर श्रीकृष्ण कहते हैं कि मेरी माया के प्रभाव से आपको ये सब बातें याद नहीं रहेंगे। आप पुत्र मोह, वात्सल्य और पीड़ा का अनुभव करेंगी। फिर देवकी और वसुदेव माया के प्रभाव से पुन: सो जाते हैं तब प्रभु श्रीकृष्ण बाल रूप में देवकी के पास प्रकट हो जाते हैं। योगमाया उन्हें नमस्कार करती हैं।
कुछ देर बाद योगमाया वसुदेव को जगाती है। वसुदेव जागते हैं तो वह कहती हैं कि कंस के आने के पहले तुम इस बालक को लेकर गोकुल चले जाओ। वसुदेव बालक को प्रणाम करते हैं और फिर योगमाया से कहते हैं कि परंतु देवी माता मैं जाऊंगा कैसे? मेरे हाथ में तो बेड़ियां पड़ी हैं और चारों और कंस के पहरेदार भी खड़े हैं। तब देवी माता कहती हैं कि तुम स्वतंत्र हो जाओगे। गोकुल जाकर तुम यशोदा के यहां इस बालक को रख आओ और वहां से अभी-अभी जन्मी बालिका को उठाकर यहां लेकर आ जाओ।

पहरेदारों को नींद आ जाती है, वसुदेवजी की बेड़ियां खुल जाती हैं और फिर वे बालक को उठाकर कारागार से बाहर निकल जाते हैं। बाहर आंधी और बारिश हो रही होती है। चलते-चलते वे यमुना नदी के पास पहुंच जाते हैं। तट पर उन्हें एक सुपड़ा पड़ा नजर आता है जिसमें बालक रूप श्रीकृष्ण को रखकर पैदल ही नदी पार करने लगते हैं। तेज बारिश और नदी की धार के बीच वे गले गले तक नदी में डूब जाते हैं तभी शेषनाग बालकृष्ण के सहयोग के लिए प्रकट हो जाते हैं। जय श्रीकृष्णा।
 
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