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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : सोमवार, 8 जून 2020 (17:48 IST)

श्रीकृष्ण की ये 11 कारगर नीतियां

Krishna Niti | श्रीकृष्ण की ये 11 कारगर नीतियां
वह व्यक्ति ही सही है, जो धर्म, सत्य और न्याय के साथ है। महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने धर्म का साथ दिया था। धर्म अर्थात सत्य, न्याय और ईश्‍वर। सत्य किधर है? यह सोचना जरूरी है।
 
 
यहां यह कहना जरूरी होगा कि महाभारत काल से आज तक युद्ध के मैदान और खेल बदलते रहे लेकिन युद्ध में जिस तरह से छल-कपट का खेल चलता आया है, उसी तरह का खेल आज भी जारी है। ऐसे में सत्य को हर मोर्चों पर कई बार हार का सामना करना पड़ता है, क्योंकि हर बार सत्य के साथ कोई कृष्‍ण साथ देने के लिए नहीं होते हैं। ऐसे में कृष्ण की नीति को समझना जरूरी है।
 
1. जब दुश्मन शक्तिशाली हो तो उससे सीधे लड़ाई लड़ने की बजाय कूटनीति से लड़ना चाहिए। भगवान कृष्ण ने कालयवन और जरासंध के साथ यही किया था। उन्होंने कालयवन को मु‍चुकुंद के हाथों मरवा दिया था, तो जरासंध को भीम के हाथों। ये दोनों ही योद्धा सबसे शक्तिशाली थे लेकिन कृष्ण ने इन्हें युद्ध के पूर्व ही निपटा दिया था। दरअसल, सीधे रास्‍ते से सब पाना आसान नहीं होता। खासतौर पर तब जब आपको विरोधि‍यों का पलड़ा भारी हो। ऐसे में कूटनीति का रास्‍ता अपनाएं।
 
2. युद्ध में संख्या बल महत्व नहीं रखता, बल्कि साहस, नीति और सही समय पर सही अस्त्र एवं व्यक्ति का उपयोग करना ही महत्वपूर्ण कार्य होता है। पांडवों की संख्या कम थी लेकिन कृष्ण की नीति के चलते वे जीत गए। उन्होंने घटोत्कच को युद्ध में तभी उतारा, जब उसकी जरूरत थी। उसका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उसके कारण ही कर्ण को अपना अचूक अस्त्र अमोघास्त्र चलाना पड़ा जिसे वह अर्जुन पर चलाना चाहता था।
 
3. जो राजा या सेनापति अपने एक-एक सैनिक को भी राजा समझकर उसकी जान की रक्षा करता है, जीत उसकी सुनिश्‍चित होती है। एक-एक सैनिक की जिंदगी अमूल्य है। अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने अपने साथ लड़ रहे सभी योद्धाओं को समय-समय पर बचाया है। जब वे देखते थे कि हमारे किसी योद्धा या सैनिक पर विरोधी पक्ष का कोई योद्धा या सैनिक भारी पड़ रहा है तो वे उसके पास उसकी सहायता के लिए पहुंच जाते थे।
 
4. जब आपको दुश्मन को मारने का मौका मिल रहा है, तो उसे तुरंत ही मार दो। यदि वह बच गया तो निश्चित ही आपके लिए सिरदर्द बन जाएगा या हो सकता है कि वह आपकी हार का कारण भी बन जाए। अत: कोई भी दुश्मन किसी भी हालत में बचकर न जाने पाए। कृष्ण ने द्रोण और कर्ण के साथ यही किया था।
 
5. कोई भी वचन, संधि या समझौता अटल नहीं होता। यदि उससे राष्ट्र का, धर्म का, सत्य का अहित हो रहा हो तो उसे तोड़ देना ही चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण ने अस्त्र न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर धर्म की ही रक्षा की थी। जब अभिमन्यु को भीष्म के बनाये नियम के विरुद्ध निहत्‍था मार दिया गया तो श्रीकृष्ण ने भी फिर युद्ध के किसी भी नियम का पालन नहीं किया। अभिमन्यु श्रीकृष्ण का भांजा था। श्रीकृष्ण ने तब ही तय कर लिया था कि अब युद्ध में किसी भी प्रकार के नियमों को नहीं मानना है। तब शुरू हुआ श्रीकृष्ण का कूटनीतिक खेल
 
6. युद्ध प्रारंभ होने से यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि कौन किसकी ओर है? कौन शत्रु और कौन मित्र है? इससे युद्ध में किसी भी प्रकार की गफलत नहीं होती है। लेकिन फिर भी यह देखा गया था कि ऐसे कई योद्धा थे, जो विरोधी खेमे में होकर भीतरघात का काम करते थे। ऐसे लोगों की पहचान करना जरूरी होता है।
 
7. युद्ध में मृत सैनिकों का दाह-संस्कार, घायलों का इलाज, लाखों सैनिकों की भोजन व्यवस्था और सभी सैनिकों के हथियारों की आपूर्ति का इंतजाम बड़ी ही कुशलता से किया गया था। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह सभी कार्य श्रीकृष्ण की देखरेख और उनकी नीति के तहत ही होता था।
 
8. इस भयंकर युद्ध के बीच भी श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया। यह सबसे अद्भुत था। कहने का तात्पर्य यह कि भले ही जीवन के किसी भी मोर्चे पर व्यक्ति युद्ध लड़ रहा हो लेकिन उसे ज्ञान, सत्संग और प्रवचन को सुनते रहना चाहिए। यह मोटिवेशन के लिए जरूरी है। इससे व्यक्ति को अपने मूल लक्ष्य का ध्यान रहता है।
 
9. भगवान श्रीकृष्ण ने जिस तरह युद्ध को अच्छे से मैनेज किया था, उसी तरह उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन को भी मैनेज किया था। उन्होंने हर एक प्लान मैनेज किया था। यह संभव हुआ अनुशासन में जीने, व्यर्थ चिंता न करने और भविष्य की बजाय वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने से। मतलब यह कि यदि आपके पास 5, 10 या 15 साल का कोई प्लान नहीं है, तो आपकी सफलता की गारंटी नहीं हो सकती।
 
10. कृष्‍ण सिखाते हैं कि संकट के समय या सफलता न मिलने पर साहस नहीं खोना चाहिए। इसकी बजाय असफलता या हार के कारणों को जानकर आगे बढ़ना चाहिए। समस्याओं का सामना करें। एक बार भय को जीत लिया तो फि‍र जीत आपके कदमों में होगी।
 
11. महात्मा गांधी की नीति के अनुसार साध्य और साधन दोनों ही शुद्ध होना चाहिए अर्थात यह कि आपका उद्देश्य सही है तो उसकी पूर्ति करने के लिए भी सही मार्ग या विधि का उपयोग ही करना चाहिए। चाणक्य की नीति के अनुसार यदि उद्देश्य सही है, सत्य और न्याय के लिए है तो साधन कुछ भी हो, इससे फर्क नहीं पड़ता। चाणक्य ने यह नीति संभवत: महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण से ही सीखी होगी। हालांकि श्रीकृष्ण की नीति को कोई नहीं समझ पाया है।