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Written By WD Feature Desk
Last Modified: बुधवार, 14 अगस्त 2024 (17:48 IST)

Sawan Somwar 2024 : सावन के अंतिम सोमवार के दिन बन रहे हैं अद्भुत योग संयोग, कर लें इस मुहूर्त में पूजा

Sawan 5th somwar 2024: श्रावण के पांचवें सोमवार को बन रहे हैं 5 शुभ योग, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

sawan 5th somwar 2024
Sawan 5th somwar 2024: 19 अगस्त 2024 सावन पूर्णिमा के दिन श्रावण मास का पांचवां और अंतिम सोमवार रहेगा। इस दिन रक्षाबंधन भी है और उज्जैन में बाबा महाकाल की पांचवीं सवारी निकलेगी। 90 वर्षों के बाद आए अद्भुत योग संयोग में इस बार सोमवार का व्रत रखा जा रहा है। आओ जानते हैं कि इस क्या रहेगा पूजा का खास मुहूर्त।ALSO READ: Shringi for abhishek : सावन मास में श्रृंगी से करें शिवलिंग का जलाभिषेक, महादेव होंगे अति प्रसन्न, देंगे आशीर्वाद
 
दुर्लभ योग संयोग : 19 अगस्त 2024 सोमवार के दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिष मान्यता के अनुसार इस बार पर 5 शुभ योग बन रहे हैं। इन योगों के नाम हैं- सर्वार्थ सिद्धियोग, रवियोग, सौभाग्ययोग, शोभनयोग और श्रावण नक्षत्र के संयोग सहित ये 5 योग हैं। इस दिन भद्रा का वास पाताल में दोपहर 1 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। शाम को 7 बजे बाद पंचक प्रारंभ हो जाएगा।
 
भद्रा का वास : 19 अगस्त 2024 को भद्रा का वास पाताल लोक में रहेगा। ज्योतिष मान्यता के अनुसार यदि भद्रा पृथ्‍वीलोक की हो तो ही इसके नियम मान्य होते हैं।  
 
सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त : मध्याह्न 3:30 से 6:45 मिनट तक।
 
अशुभ काल कब से कब तक रहेगा?
राहुकाल सुबह 07:31 से 09:08 तक रहेगा।
भद्राकाल : प्रात: 05:53 से दोपहर 01:30 तक रहेगा।
दुर्मुहुर्त : दोपहर 12:51 से 01:43 तक रहेगा।
गुलिक काल : दोपहर 02:02 से 03:40 तक रहेगा।
पंचक : शाम 07 बजे से 20 अगस्त तक।
शुभ काल कब से कब तक रहेगा?
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:58 से दोपहर 12:51 तक।
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:35 से दोपहर 03:27 तक।
गोधूलि मुहूर्त : शाम 06:56 से 07:18 तक। 
रक्षा बंधन प्रदोष मुहूर्त : शाम 06:56:06 से रात्रि 09:07:31 तक।
सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त : मध्याह्न 3:30 से 6:45 मिनट तक।
sawan somvar 2024
sawan somvar 2024
ऐसे करें शिवलिंग की पूजा:-
- जब आप शिवलिंग की पूजा करें तो सिर्फ शिवलिंग की ही पूजा न करें। शिवलिंग के आसपास माता पार्वती विराजमान रहती हैं, जिसे हस्त कमल का नाम दिया है।
 
- इसी प्रकार सोमसूत्र यानी जिस नलिका से जल बाहर निकलता है, उसी स्थान पर भगवान शिव की बेटी अशोक सुंदरी विराजमान हैं। 
 
- जलाधारी के आगे की ओर जो पद चिन्ह दिखाई देते हैं उस स्थान पर दाईं ओर गणेश जी और बाईं ओर कार्तिकेय विराजमान हैं। 
 
- शिवलिंग के ठीक नीचे ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और शीर्ष पर शिवजी का स्थान रहता है।
 
- सबसे ऊपर छत से लटके जल से भरे एक तांबे या पीतल के घड़े से शिवलिंग पर बूंद-बूंद जल टपकता रहता है। इसे गलंतिका कहा जाता है। इसे वसोधारा लगाना भी कहते हैं। यह ब्रह्मरंध से अमृत टपकते रहने जैसा है।
 
- इसलिए शिवलिंग के हर भाग पर वे फूल अर्पित करें तो उक्त देवी और देवताओं को पसंद है और उन सभी स्थानों की भी पूजा करें।
 
- सबसे पहले शिवलिंग का जलाभिषेक करें।
 
- इसके बाद धूप दीप प्रज्वलित करें।
 
- इसके बाद शिवलिंग पर बेलपत्र, चंदन आदि अर्पित करें।
 
- फिर नाग देवता पर बेलपत्र, फूल आदि अर्पित करें।
 
- फिर गलंतिका पर चंदन का टीका लगाएं।
 
- फिर शिवलिंग के नीचे आसपास माता पार्वती की पूजा करें।
 
- इसके बाद सोमसूत्र के पास विराजमान अशोक सुंदरी की पूजा करें। 
 
- इसके बाद भगवान गणेश एवं कार्तिकेय की पूजा करें।
 
- इसके बाद जलाधारी पर भी चंदन, फूल आदि अर्पित करें।
 
- शिवलिंग के आगे मध्य में और ठीक पीछे के स्थान पर भी चंदन लगाएं।
 
- इसके बाद नैवेद्य अर्पित करें और अंत में नंदी भगवान को चंदन का टीका लगाकर उनकी पूजा करें।