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Last Updated : बुधवार, 21 अगस्त 2024 (15:47 IST)

श्राद्ध क्यों करना चाहिए?

Pitru Shradh Paksha
Why should we do Shradh : भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्‍विन माह की अमावस्या तक श्राद्ध पर्व रहता है। यानी 16 दिनों तक श्राद्ध पर्व मनाया जाता है। इसे पितृपक्ष भी कहते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनसुसार इस बार यह पर्व 10 सितंबर 2022 से प्रारंभ होकर 25 सितंबर तक रहेगा। इस दौरान हर घर के लोग अपने पूर्वज और मृतकों की शांति और सद्गति के लिए पिंडदान, तर्पण और पूजा करते हैं।
 
श्राद्ध कर्म है श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक : श्राद्ध कर्म करना एक सभ्य मनुष्य की निशानी है। पशु और पक्षियों में जो संवेदनशील होते हैं वे भी अपने परिवार के मृतकों के लिए निश्‍चित स्थान पर एकत्रित होकर संवेदना व्यक्त करते हैं। जिस पिता ने, दादा ने या पूर्वज ने आपका पालन-पोषण किया और आपको एक जीवन दिया उसके प्रति श्रद्धा रखते हुए उसकी शांति और मुक्ति का कर्म करने के लिए श्राद्ध करना चाहिए।
 
प्रश्न : श्राद्ध क्यों करना चाहिए?
उत्तर : पूर्वजों और अतृप्त आत्माओं की सद्गति के लिए श्राद्ध कर्म करना चाहिए। अतृप्त की तृप्ति के लिए करना होता है श्राद्ध। प्रत्येक पुत्र या पौत्र या उसके सगे संबंधियों का उत्तरदायित्व होता है कि वह उक्त आत्मा की तृप्ति और सद्गति के उपाय करें ताकि वह पुन: जन्म ले सके।
अतृप्ति का कारण : अतृप्त इच्छाएं। जैसे भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं रखने वाले को और  अकाल मृत्यु मरन वालों के लिए। जैसे हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना या किसी रोग के चलते असमय ही मर जाना। आदि के लिए श्राद्ध करना जरूरी है। क्योंकि ऐसी आत्माओं को दूसरा जन्म मिलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है या कि वह अधोगति में चली जाता है। उन्हें इन सभी से बचाने के लिए पिंडदान, तर्पण और पूजा करना जरूरी होता है। 
 
अतृप्ति के और भी कई कारण होते हैं। जैसे धर्म को नहीं जानना, गलत धारणा पालना, अनजाने में अपराध या बुरे कर्म करान। हत्या करना, आत्मत्या करना, बलात्कार, हर समय किसी न किसी का अहित करना या किसी भी निर्दोष मनुष्‍य या प्राणियों को सताना, चोर, डकैत, अपराधी, धूर्त, क्रोधी, नशेड़ी और कामी आदि लोग मरने के बाद बहुत ज्यादा दु:ख और संकट में फंस जाते हैं, क्योंकि कर्मों का भुगतान तो सभी को करना ही होता है।
 
पितृ पक्ष एक ऐसा पक्ष रहता है जबकि उक्त सभी तरह की आत्माओं की मुक्ति का द्वारा खुल जाता है। तब धरती पर पितृयाण रहता है। जैसे पशुओं का भोजन तृण और मनुष्यों का भोजन अन्न कहलाता है, वैसे ही देवता और पितरों का भोजन अन्न का 'सार तत्व' है। सार तत्व अर्थात गंध, रस और उष्मा। देवता और पितर गंध तथा रस तत्व से तृप्त होते हैं।