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पितृ पक्ष में किसको अधिकार है श्राद्ध करने का और क्या है 16 तिथियों का महत्व?

Shraddha Paksha | पितृ पक्ष में किसको अधिकार है श्राद्ध करने का और क्या है 16 तिथियों का महत्व?
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक कुल 16 दिनों तक चलता है। उक्त 16 दिनों में हर दिन अलग-अलग लोगों के लिए श्राद्ध होता है। वैसे अक्सर यह होता है कि जिस तिथि तो व्यक्ति की मृत्यु हुई है, श्राद्ध में पड़ने वाली उस तिथि को उसका श्राद्ध किया जाता है, लेकिन इसके अलावा भी यह ध्यान देना चाहिए कि नियम अनुसार किस दिन किसके लिए और कौन सा श्राद्ध करना चाहिए?
 
 
किसको करना चाहिए श्राद्ध?
पिता के श्राद्ध का अधिकार उसके बड़े पुत्र को है लेकिन यदि जिसके पुत्र न हो तो उसके सगे भाई या उनके पुत्र श्राद्ध कर सकते हैं। यह कोई नहीं हो तो उसकी पत्नी कर सकती है। हालांकि जो कुंआरा मरा हो तो उसका श्राद्ध उसके सगे भाई कर सकते हैं और जिसके सगे भाई न हो, उसका श्राद्ध उसके दामाद या पुत्री के पुत्र (नाती) को और परिवार में कोई न होने पर उसने जिसे उत्तराधिकारी बनाया हो, वह व्यक्ति उसका श्राद्ध कर सकता है।
 
 
16 तिथियों का महत्व क्या है?
श्राद्ध की 16 तिथियां होती हैं, पूर्णिमा, प्रतिपदा, द्वि‍तीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या। उक्त किसी भी एक तिथि में व्यक्ति की मृत्यु होती है चाहे वह कृष्ण पक्ष की तिथि हो या शुक्ल पक्ष की। श्राद्ध में जब यह तिथि आती है तो जिस तिथि में व्यक्ति की मृत्यु हुई है उस तिथि में उसका श्राद्ध करने का विधान है।
 
 
इसके अलावा प्रतिपदा को नाना-नानी का श्राद्ध कर सकते हैं। जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई है उनके लिए पंचमी तिथि का श्राद्ध किया जाता है। सौभाग्यवती स्त्री की मृत्यु पर नियम है कि उनका श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए, क्योंकि इस तिथि को श्राद्ध पक्ष में अविधवा नवमी माना गया है। यदि माता की मृत्यु हो गई हो तो उनका श्राद्ध भी नवमी तिथि को कर सकते हैं। जिन महिलाओं की मृत्यु की तिथि मालूम न हो, उनका भी श्राद्ध नवमी को किया जाता है। इस दिन माता एवं परिवार की सभी स्त्रियों का श्राद्ध किया जाता है। इसे मातृ नवमी श्राद्ध भी कहा जाता है।
 
 
इसी तरह एकादशी तिथि को संन्यास लेने वाले व्य‍‍‍क्तियों का श्राद्ध करने की परंपरा है, जबकि संन्यासियों के श्राद्ध की ति‍थि द्वादशी (बारहवीं) भी मानी जाती है। श्राद्ध महालय के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को बच्चों का श्राद्ध किया जाता है। जिनकी मृत्यु अकाल हुई हो या जल में डूबने, शस्त्रों के आघात या विषपान करने से हुई हो, उनका चतुर्दशी की तिथि में श्राद्ध किया जाना चाहिए। सर्वपितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। इसे पितृविसर्जनी अमावस्या, महालय समापन आदि नामों से जाना जाता है।
 
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