पूर्व काल में गया नामक परम वीर्यवान एक असुर हुआ। उसने सभी प्राणियों को संतप्त कर रखा था। देवगण उसके वध की इच्छा से भगवान श्रीहरि विष्णु की शरण में गए।
श्रीहरि ने उनसे कहा- आप लोगों का कल्याण होगा, इसका महादेह गिराया जाएगा। एक समय शिवजी की पूजा के लिए क्षीर समुद्र से कमल लाकर गया नाम का वह बलवान असुर विष्णु माया से विमोहित होकर कीकट देश में शयन करने लगा और उसी स्थिति में वह विष्णु की गदा के द्वारा मारा गया।
भगवान विष्णु मुक्ति देने के लिए 'गदाधर' के रूप में गया में स्थित हैं। गयासुर के विशुद्ध देह में ब्रह्मा, जनार्दन, शिव तथा प्रपितामह स्थित हैं। विष्णु ने वहां की मर्यादा स्थापित करते हुए कहा कि इसकी देह पुण्यक्षेत्र के रूप में होगी।
ब्राह्मणों द्वारा प्रार्थना करने पर प्रभु ब्रह्मा ने अनुग्रह किया और कहा- गया में जिन पुण्यशाली लोगों का श्राद्ध होगा, वे बह्मलोक को प्राप्त करेंगे। जो मनुष्य यहां आकर आप सभी का पूजन करेंगे, उनके द्वारा मैं भी अपने को पूजित स्वीकार करुंगा।
यहां जो भक्ति, यज्ञ, श्राद्ध, पिण्डदान अथवा स्नानादि करेगा, वह स्वर्ग तथा ब्रह्मलोक में जाएगा, नरकगामी नहीं होगा। पितामह ब्रह्मा ने गया तीर्थ को श्रेष्ठ जानकर वहां यज्ञ किया और ऋत्विक रूप में आए हुए ब्राह्मणों की पूजा की।
'ब्रह्मज्ञान, गयाश्राद्ध, गोशाला में मृत्यु तथा कुरुक्षेत्र में निवास- ये चारों मुक्ति के साधन हैं-' गया में श्राद्ध करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नीगमन और उक्त संसर्ग-जनित सभी महापातक नष्ट हो जाते हैं।
जिनकी संस्काररहित दशा में मृत्यु हो जाती है अथवा जो मनुष्य पशु तथा चोर द्वारा मारे जाते हैं या जिनकी मृत्यु सर्प के काटने से होती है, वे सभी गया श्राद्ध कर्म के पुण्य से बन्धन मुक्त होकर स्वर्ग चले जाते हैं।
'गया तीर्थ में पितरों के लिए पिण्डदान करने से मनुष्य को जो फल प्राप्त होता है, सौ करोड़ वर्षों में भी उसका वर्णन मेरे द्वारा नहीं किया जा सकता।'
यहां पर पिण्डदान करने से पितरों को परमगति प्राप्त होती है। गयागमन मात्र से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है।
गया क्षेत्र में भगवान विष्णु पितृदेवता के रूप में विराजमान रहते हैं। पुण्डरीकाक्ष उन भगवान जनार्दन का दर्शन करने पर मनुष्य अपने तीनों ऋणों से मुक्त हो जाता है। भगवान जनार्दन के हाथ में अपने लिए पिण्डदान समर्पित करके यह मंत्र पढ़ना चाहिए-
एष पिण्डो मया दत्तस्तव हस्ते जनार्दन।
परलोकं गते मोक्षमक्षरूयमुपतिष्ठताम्॥
हे जनार्दन! भगवान् विष्णु! मैंने आपके हाथ में यह पिण्ड प्रदान किया है। अतः परलोक में पहुंचने पर मुझे मोक्ष प्राप्त हो। ऐसा करने से मनुष्य पितृगण के साथ स्वयं भी ब्रह्मलोक प्राप्त करता है।
अपने पुत्र अथवा पिण्डदान देने के अधिकारी अन्य किसी वंशज के द्वारा जब कभी इस गया क्षेत्र में स्थित गयाकूप नामक पवित्र तीर्थ में जिसके भी नाम से पिण्डदान दिया जाता है, उसे शाश्वत ब्रह्मगति प्राप्त करा देता है।
बुद्धिमान मनुष्य को इस गया क्षेत्र में अपने लिए भी तिलरहित पिण्डदान करना चाहिए और अन्य व्यक्तियों के लिए भी पिण्डदान करना चाहिए।