अभिवादन को अभिवंदना, आवंदन, नमन, नमस्ते, नमामि, नमोनमः, वंदन, वंदे आदि कहते हैं। अभिवादन सदाचार का मुख्य अंग है, उत्तम गुण है। इसमें नम्रता, आदर, श्रद्धा, सेवा एवं शरणागति का भाव अनुस्यूत रहता है। बड़े आदर के साथ श्रेष्ठजनों को प्रणाम करना चाहिए और छोटों को आशीर्वाद देना चाहिए जबकि अपने समकक्ष मिलते वक्त कैसे अभिवादन करें, यह सीखना जरूरी है।
जब हम किसी से मिलते हैं तो उसका अभिवादन करते हैं और वह हमारा अभिवादन करता है। दो शैव साधु एक-दूसरे से मिलते हैं तो आदेश या नमो नारायण कहते हैं। उसी तरह जब दो वैष्णव साधु मिलते हैं तो वे भी नमो नारायण या जय श्रीकृष्ण कहते हैं, लेकिन आम जनता को क्या कहना चाहिए? आम हिन्दूजन अपने-अपने तरीके से अभिवादन शब्द कहता है लेकिन क्या यह उचित है?
हालांकि ज्यादातर लोग राम-राम, जय श्रीकृष्ण, जय गुरुदेव, हरिओम, जय गणेश, जय शिव, जय माता दी, सांईंराम या अन्य तरह से अभिवादन करते हैं। दफ्तरों में नमस्कार की जगह गुड मॉर्निंग, हलो, हाय का प्रचलन बढ़ गया है तो जाते वक्त नमस्ते की जगह टाटा, बाय-बाय, सी यू का प्रचलन बढ़ा है। कुछ लोग तो मिलते वक्त कहते हैं... और क्या हालचाल हैं। यह सब कितना उचित है..हम यह तो नहीं जानते, लेकिन यह देश-धर्मसम्मत नहीं है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिन्दुओं ने अभिवादन के अपने-अपने तरीके ईजाद कर लिए हैं, जो कि गलत हैं।
नमकार और नमस्ते : संस्कृत शब्द नमस्कार को मिलते वक्त किया जाता है और नमस्ते को जाते वक्त। फिर भी कुछ लोग इसका उल्टा भी करते हैं। विद्वानों का मानना है कि नमस्कार सूर्य उदय के पश्चात और नमस्ते सूर्यास्त के पश्चात किया जाता है।
प्राचीनकाल से ही हिन्दूजन मिलते वक्त नम:स्कार और जाते वक्त नमस्ते कहता आया है। यदि आप बड़े-बुजुर्गों से मिलते हैं तो उनको प्रणाम कहते या करते हैं।
नमस्कार करने की प्रमुख विधि : 1.हृदय नमस्कार : दोनों हाथों को अनाहत चक्र (सीने पर)पर रखा जाता है, आंखें बंद की जाती हैं और सिर को झुकाया जाता है। 2.मस्तक नमस्कार : हाथों को स्वाधिष्ठान चक्र (भोहों के बीच का चक्र) पर रखकर सिर झुकाकर और हाथों को हृदय के पास लाकर भी नमस्ते किया जा सकता है।
नमस्कार मन, वचन और शरीर तीनों में से किसी एक के माध्यम से किया जाता है। शरीर से किए जाने वाले नमस्कार के प्रकार 6 हैं-
* केवल सिर झुकाना।
* केवल हाथ जोड़ना।
* सिर झुकाना और हाथ जोड़ना।
* हाथ जोड़ना और दोनों घुटने झुकाना।
* हाथ जोड़ना, दोनों घुटने झुकाना और सिर झुकाना।
* दंडवत प्रणाम जिसमें 8 अंग (2 हाथ, 2 घुटने, 2 पैर, माथा और वक्ष) पृथ्वी से लगते हैं और जिसे ‘साष्टांग प्रणाम’ भी कहा जाता है।
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घर से बाहर जाते वक्त : घर (गृह) से बाहर जाने से पहले माता-पिता के पैर छुए जाते हैं फिर पहले दायां पैर बाहर निकालकर सफल यात्रा और सफल मनोकामना की मन ही मन ईश्वर के समक्ष इच्छा व्यक्त की जाती है।
साष्टांग प्रणाम : 'आह्निक सूत्रावली' नामक ग्रंथ में आता है कि छाती, सिर, नेत्र, मन, वचन, हाथ, पांव और घुटने- इन 8 अंगों द्वारा किए गए प्रणाम को साष्टांग प्रणाम कहते हैं।
साष्टांग प्रणाम अधिकतर मंदिरों में किया जाता है। अपने धर्मगुरु, माता और पिता के समक्ष भी साष्टांग प्रणाम कर सकते हैं, परंतु माताओं और बहनों का साष्टांग प्रणाम करना वर्जित माना गया है।
चरण स्पर्श : धर्मगुरु, शिक्षक, माता और पिता के अलावा चरण स्पर्श अपने ही परिवार के बुजुर्गों के किए जाते हैं, अन्य किसी व्यक्ति के नहीं। परिवार के सदस्यों को छोड़कर अन्यों के चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए।
'पैठीनीस कुल्लूकभट्टीय' ग्रंथ के अनुसार अपने दोनों हाथों को ऊपर की ओर सीधे रखते हुए दाएं हाथ से दाएं चरण तथा बाएं हाथ से बाएं चरण का स्पर्शपूर्वक अभिवादन करना चाहिए।
वृद्ध लोगों के आने पर युवा पुरुष के प्राण ऊपर चढ़ते हैं और जब वह उठकर प्रणाम करता है तो पुन: प्राणों को पूर्ववत स्थिति में प्राप्त कर लेता है। नित्य वृद्धजनों को प्रणाम करने से तथा उनकी सेवा करने से मनुष्य की आयु, बुद्धि, यश और बल- ये चारों बढ़ते हैं। -मनु स्मृतिः 2.120.121
जब श्रेष्ठ व पूजनीय व्यक्ति चरण स्पर्श करने वाले व्यक्ति के सिर, कंधों अथवा पीठ पर अपना हाथ रखते हैं तो इस स्थिति में दोनों शरीरों में बहने वाली विद्युत का एक आवर्त (वलय) बन जाता है। इस क्रिया से श्रेष्ठ व्यक्ति के गुण और ओज का प्रवाह दूसरे व्यक्ति में भी प्रवाहित होने लगता है। जो महापुरुष चरण स्पर्श नहीं करने देते उनके समक्ष दूर से ही अहोभाव से सिर झुकाकर प्रणाम करना चाहिए तो उनकी दृष्टि व शुभ संकल्प से लाभ होता है।
नमस्कार करने का महत्व और लाभ... लाभ : हमारे हाथ के तंतु मष्तिष्क के तंतुओं से जुड़े हैं। हथेलियों को दबाने से या जोड़े रखने से हृदयचक्र और आज्ञाचक्र में सक्रियता आती है जिससे जागरण बढ़ता है। उक्त जागरण से मन शांत एवं चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न होती है। हृदय में पुष्टता आती है तथा निर्भिकता बढ़ती है।
मनोवैज्ञानिक असर : भारत में हाथ जोड़ कर प्रणाम करने की प्रचलित पद्धति एक मनोवैज्ञानिक पद्धति है। हाथ जोड़ कर आप जोर से बोल नहीं सकते, अधिक क्रोध नहीं कर सकते और भाग नहीं सकते। यह एक ऐसी पद्धति है जिसमें एक मनोवैज्ञानिक दबाव होता है। इस प्रकार प्रणाम करने से सामने वाला व्यक्ति अपने आप ही विनम्र हो जाता है।
आध्यात्मिक रहस्य : दाहिना हाथ आचार अर्थात धर्म और बायां हाथ विचार अर्थात दर्शन का होता है। नमस्कार करते समय दायां हाथ बाएं हाथ से जुड़ता है। शरीर में दाईं ओर झड़ा और बांईं ओर पिंगला नाड़ी होती है तथा मस्तिष्क पर त्रिकुटि के स्थान पर शुष्मना का होना पाया जाता है। अत: नमस्कार करते समय झड़ा, पिंगला के पास पहुंचती है तथा सिर श्रृद्धा से झुका हुआ होता है।
हाथ जोड़ने से शरीर के रक्त संचार में प्रवाह आता है। मनुष्य के आधे शरीर में सकारात्मक आयन और आधे में नकारात्मक आयन विद्यमान होते हैं। हाथ जोड़ने पर दोनों आयनों के मिलने से ऊर्जा का प्रवाह होता है। जिससे शरीर में सकारात्मकता का समावेश होता है। किसी को प्रणाम करने के फलस्वरूप आशीर्वाद की प्राप्ति होती है और उसका आध्यामिक विकास होता है।