प्राचीन भारत में वैसे तो कई खतरनाक, रहस्यमयी और रोमांचक मार्ग या रास्ते रहे हैं जो आज भी है, लेकिन हम आपको बताने वाले हैं ऐसे रहस्यमयी मार्गों के बारे में जिनका संबंध प्राचीनकाल से जुड़ा हुआ है और जो प्राचीन भारत के रहस्यमयी मार्ग हैं।
प्राचीनकाल में आज की तरह या मध्यकाल की तरह सड़के नहीं होती थी। पैदल चलने से पगडंडियां बन जाती थी तो दूसरी ओर हाथी घोड़े के आवागमन से एक रास्ता बनता जाता था। लेकिन प्रारंभ में जंगल घने और खतरनाक होते थे। जंगल में एक से बढ़कर एक खतरनाक हिंसक जानवर होते थे। उनसे बचने के लिए मनुष्य ऐसे रास्ते अपनाता था जो कि सुरक्षित होते थे। जो शॉर्टकट होते थे उसमें से कई रास्ते जोखिम भरे भी होते थे।
आमतौर पर पहाड़ों को खोदकर सुरंगे बनाई जाती थी। लेकिन भूमि के भीतर भी कई सुरंगे होती थी। इनमें से कुछ तो प्राकृतिक रूप से बनी हुई है। ये सुरंगे प्राकृतिक रूप से जमीन के नीचे बहने वाली पानी की धारा से बनती हैं जिसका उपयोग बाद में मनुष्य ने एक जगह से दूसरी जगह आने जाने के लिए किया। दुनिया में ऐसी अनेक छोटी-बड़ी सुरंगे हैं, जो किसी अजूबे से कम नहीं हैं।
हालांकि गुप्त और मध्यकाल में बचने और भागने के लिए भी कई सुरंगें बनाई गई थी जो आज तक मौजूद है। बहुत से राजा इन सुरंगों में अपना खजाना छुपाकर रखते थे। इनमें से कुछ सुरंगें तो ऐसी है जिनमें हाथी, घोड़े और सैनिकों की एक पूरी टूकड़ी आसानी से इस पार से उस पार चली जाती थी। लेकिन हम आपको इनमें से कुछ अलग ही सुरंगों और रास्तों के बारे में बताने वाले हैं।
चुनारगढ़ की सुरंग : चुनारगढ़ का किला भारत कि ऐतिहासिक विरासत है। माना जाता है कि यह किला लगभग 5000 वर्षों से विद्यमान है। हालांकि इसका बीच बीच में जिणोद्धार होता रहा है। इस किले पर महाभारत काल के सम्राट काल्यवन, सम्पूर्ण विश्व पर शासन करने वाले उज्जैन के प्रतापी सम्राट विक्रमादित्य और सम्राट पृथ्वीराज सिंह चौहान से लेकर सम्राट अकबर शेरसाह सुरी जैसे शासकों ने शासन किया है। वेबदुनिया के शोधानुसार चुनारगढ़ किले का निर्माण किस शासक ने कराया है इसका कोई प्रमाण नहीं है। इतिहासकारों के अनुसार महाभारत काल में इस पहाड़ी पर सम्राट काल्यवन का कारागार जेल था।
पत्थर के इस किले में कई गहरी और रहस्मयी सुरंगों का मुहाना है। जिसकी सीमाओं का कोई पता नहीं है। चुनारगढ किले में सुरंगों का एक जाल सा बिछा है। चुनारनगर के नीचे कई जगह इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं। इसके अलावा इस किले में कई गहरे तहखाने हैं जोकि गुप्त रास्तों से एवं एक दुसरे से जुड़े हैं। कहते हैं कि इस किले में भयंकर सांपों का बसेरा हो चला है।
किले के ऊपर एक बहुत गहरी बावड़ी है जिसमें पानी के अन्दर तक सीढियां बनी हैं एवं इसकी दीवारों पर कई तरह के चिन्ह बने हैं जो प्राचीन लिपि के हैं और जिन्हें समझना मुश्किल है। चुनारगढ़ किला एक तिलिस्मि आश्चर्य है। आज तक इसका रहस्य कोई नहीं जान सका है।
हिन्दूकुश और सिल्क रूट : हिन्दूकुश उत्तरी पाकिस्तान से मध्य अफगानिस्तान तक विस्तृत एक 800 किमी लंबी वाली पर्वत श्रृंखला है। यह पर्वतमाला हिमालय क्षेत्र के अंतर्गत आती है। दरअसल, हिन्दूकुश पर्वतमाला पामीर पर्वतों से जाकर जुड़ते हैं और हिमालय की एक उपशाखा माने जाते हैं। पामीर का पठार, तिब्बत का पठार और भारत में मालवा का पठार धरती पर रहने लायक सबसे ऊंचे पठार माने जाते हैं। प्रारंभिक मनुष्य इसी पठार पर रहते थे। हिन्दूकुश पर्वतमाला के बीचोबीच सबसे ऊंचा पहाड़ पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत के चित्राल जिले में स्थित है जिसे वर्तमान में तिरिच मीर पर्वत कहते हैं। हिन्दूकुश का दूसरा सबसे ऊंचा पहाड़ नोशक पर्वत और तीसरा इस्तोर-ओ-नल है।
उत्तरी पाकिस्तान में हिन्दूकुश पर्वतमाला और काराकोरम पर्वतमाला के बीच स्थित एक हिन्दू राज पर्वत श्रृंखला है। वेबदुनिया के शोधानुसार इस पर्वत श्रृंखला में कई ऋषि-मुनियों के आश्रम बने हुए थे, जहां भारत और हिन्दूकुश के उस पार से आने वाले जिज्ञासुओं, छात्रों आदि के लिए शिक्षा, दीक्षा और ध्यान की व्यवस्था थी। आज इस हिन्दू राज पर्वतमाला के प्रमुख पहाड़ों के नाम बदल दिए गए हैं, जैसे एक कोयो जुम नामक बहुत लंबा पहाड़ है। दूसरा बूनी जुम और तीसरा गमुबार जुम हैं। उल्लेखनीय है कि काराकोरम एक विशाल पर्वत श्रृंखला है जिसका विस्तार पाकिस्तान, भारत और चीन के क्रमश: गिलगित-बाल्तिस्तान, लद्दाख और शिन्जियांग क्षेत्रों तक है। काराकोरम, पूर्वोत्तर में तिब्बती पठार के किनारे और उत्तर में पामीर पर्वतों से घिरा है।
हिन्दूकुश पर्वतमाला में ऐसे बहुत से दर्रे हैं जिसके उस पार कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, चीन, रशिया, मंगोलिया, रशिया आदि जगह जा सकते हैं। यह हिमालय के उस पार से भारत में आने का आसान रास्ता है, जबकि तिब्बत के रास्ते सिक्किम होते हुए भारत आना थोड़ा कठिन है।
प्राचीन लोगों ने अपने कुछ प्रमुख मार्ग निर्मित किए थे जिसमें से एक है सिल्क रूट। सिल्क रूट के एक छोर से दूसरे छोर पर जाने वालों के लिए हिन्दूकुश पर्वतमाला के विशेष क्षेत्रों में बने ऋषि- मुनियों के आश्रम जहां लोगों के लिए विश्राम स्थल थे वहीं यह दुनियाभर की जानकारी प्राप्त करने का क्षेत्र भी था। रोम के वेनिस, इसराइल के येरुशलम से तुर्की के इस्तांबुल तक और वहां से लेकर चीन के च्वानजो शहर तक यह रूट था। बीच में भारतीय क्षेत्र के शहर काबुल, पेशावर, श्रीनगर व्यापार के प्रमुख केंद्रों में से एक था। वेबदुनिया के शोधानुसार काबुल का पहले नाम कुम्भा था, जो वहां की एक नदी के नाम पर रखा गया था। यह क्षेत्र भारत के 16 जनपदों में से एक कंबोज के अंतर्गत आता था। पारास्य देश के तेहरान से एक रास्ता भारत की ओर तथा दूसरा रास्ता कैस्पियन सागर और तुर्कमेनिस्तान की ओर जाता है। पहले अफगानिस्तान भारत का ही हिस्सा हुआ करता था।
रोम से जियान तक : यह रोड तकरीबन 2000 साल पहले एशिया और यूरोप के बीच बिजनेस और कल्चरल एक्सचेंज का माध्यम था। यह मार्ग चीन के जियान शहर को रोम से जोड़ता था। दरअसल पुराने समय में चीन, भारत और पश्चिमी देशों के बीच रेशम का व्यापार हुआ करता था। जियान से रोम या रोम से जियान लोग दो रास्तों से जाते थे। इसमें एक रास्ता तो हिन्दूकुश के दर्रों से सीधे चीन जाने वाला रास्ता था तो दूसरा रास्ता भारत में होकर सिक्किम के नाथुला दर्रे से होकर चीन जाता था। हिन्दूकुश पर्वतमाला से लेकर नाथुला दर्रे तक बहुत सारे मठ मिल जाएंगे। तिब्बत और अफगानिस्तान उस दौर में धर्म का गढ़ बन गया था। हिन्दूकुश में दर्रों की भरमार है। यहां पहाड़ियों के बीच से कई सुगम और दुर्गम रास्ते हैं। इसलिए यह क्षेत्र पश्चिमी लोगों के लिए द्वार बन गया। हिन्दूकुश पर्वत 800 से ज्यादा किलोमीटर तक तो लंबाई में फैला है और 200 किलोमीटर से भी अधिक इसकी चौड़ाई है।
और भी कई उप मार्ग थे : उस समय रेशम मार्ग वर्तमान के अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान, ईरान और मिस्र के अलेक्जेंडर नगर तक पहुंचता था और इसका एक दूसरा रास्ता पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के काबुल से होकर फारस की खाड़ी तक पहुंचता था, जो दक्षिण की दिशा में वर्तमान में कराची तक पहुंच जाता था और फिर समुद्री मार्ग से फारस की खाड़ी और रोम तक पहुंच जाता था।
लानझोउ यूनिवर्सिटी ऑफ फिनांस एंड इकोनॉमिक्स में शोधकर्ता गाओ कियान के अनुसार प्राचीन व्यापार मार्ग पर काबुल के बाद दुनहुआंग व्यवसाय का केंद्र था। प्राचीन रेशम मार्ग पर साहसिक यात्रा पर निकले लोग फारस की रोटी, भारत की मिठाइयां और अरब की नान खाते थे। इसके अलावा डोनर कबाब भी प्रसिद्ध था।
पुरातत्वीय खोज से पता चला है कि रेशम मार्ग ईसा पूर्व पहली शताब्दी के चीन के हान राजवंश के समय शुरू हुआ था। चीन ने इस मार्ग के माध्यम से पूरे विश्व में रेशम का व्यापार किया था। वेबदुनिया के शोधानुसार इस मार्ग से व्यापारियों के साथ ही फौजें भी गुजरने लगीं, फिर धार्मिक समूह भी। और इस तरह इस व्यापारिक मार्ग की गतिविधि के कारण ही मार्ग में पड़ने वाले सभी प्रमुख नगरों और राज्यों के सामाजिक जीवन में भी कई परिवर्तन आए। खैर, अब बात करते हैं हिन्दूकुश पर्वतमाला की।
हिमालय की सुरंगें, दर्रे और रास्ते : प्राचीन काल में लोग सुरंग बनाकर दूसरे देश तक पहुंच जाते थे। ऐसी सुरंगे बहुत ही सुरक्षित और शॉर्टकट होती थी। हिंदू कुश की पहाड़ियों से लेकर अरुणाचल तक यदि आप ढूंढेंगे तो आपको ऐसी सैंकड़ों सुरंगे मिल जाएंगी जिसमें से होकर प्राचीनकाल में मानव एक जगह से दूसरी जगह सुरक्षित पहुंच जाते थे।
कश्मीर में ऐसी चार गुफाएं हैं, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उनका दूसरा सिरा 4000 हजार किलोमीटर दूर रूस तक जाता है। इतना ही नहीं, इन गुफाओं के बारे में और भी ऐसे रहस्य हैं, जिनकी सच्चाई सदियों बाद भी सामने नहीं आईं। वेबदुनिया के शोधानुसार जम्मू-कश्मीर के पीर पंजाल में एक गुफा है जहां एक शिवलिंग रखा है। इसका नाम पीर पंजाल केव रखा गया है। जम्मू में ही शिव खाड़ी नामक एक गुफा है।
ज़ोजिला दर्रा : श्रीनगर और लेह हाईवे के बीच में भारत के सबसे खतरनाक मार्गों में से एक ज़ोजिला दर्रा समुद्री तल से 3538 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं। यह सड़क बहुत संकरी है और यहां भारी बर्फबारी, जानलेवा हवाएं और लगातार भूस्थलन होता रहता है। थोड़ी बहुत बारिश से ही इस पर कीचड़ जमा हो जाती हैं, जिसके कारण सड़क पर फिसलन बढ़ जाती हैं।
गंगटोक-नाथुला रोड : नाथुला दर्रा भारत के सिक्किम में डोगेक्या श्रेणी में स्थित है। यह दर्रा हिमालय के अंतर्गत पड़ता है। नाथूला दर्रा भारत के सिक्किम राज्य और दक्षिण तिब्बत में चुम्बी घाटी को जोड़ता है। यह 14 हजार 200 फीट की ऊंचाई पर है। इसी रास्ते से होकर कैलाश मानसरोवर जाया जा सकता है। हाल ही में चीन ने इसका रास्ता खोल दिया है। यह दर्रा प्राचीन रेशम मार्ग (सिल्क रूट) का भी एक हिस्सा है।
यह रास्ता प्राचीनकाल से अब तक उपयोग में लाया जाता रहा है। इस मार्ग से लाखों प्राचीन मानव गुजर गए हैं। कहते हैं कि इसी मार्ग से ही महात्मा बुद्ध की मां भी कैलाश पर्वत पर दर्शन करने के लिए गई थी।
यह दर्रा गंगटोक के पूर्व की ओर 54 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। गंगटोक से नाथुला दर्रा तक जो रोड जाती है वह विश्व की खतरनाक सड़कों में से एक है। नाथूला दर्रे से निकटतम रेलवे स्टेशन 'न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन' है। गंगटोक भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित सिक्किम की राजधानी है। गंगटोक देश के प्रमुख महत्त्वपूर्ण हिल स्टेशनों में एक है।
रोहतांग पास : हिमाचल प्रदेश में स्थित रोहतांग पास बहुत ही खतरनाक रोड है। यहां किसी भी प्रकार का वाहन चलाना आसान नहीं है। यहां आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती है। वेबदुनिया के शोधानुसार पहले रोहतांग को भृगु तुंग कहते थे। मनाली से रोहतांग पास जाना बहुत ही खतरों और रोमांच से भरा है। यहां रोहतांग दर्रा है जो उत्तर में मनाली, दक्षिण में कुल्लू शहर से 51 किलोमीटर दूर यह स्थान मनाली-लेह के मुख्यमार्ग में पड़ता है। पूरा वर्ष यहां बर्फ की चादर बिछी रहती है। यह सड़क मई से नवंबर तक आम तौर पर खुला है।
रोहतांग दर्रा और सोलांग वैली देखने के लिए कई साहसी पर्यटक रोहतांग पास की यात्रा करते हैं। रोहतांग का सफर बहुत ही सुहाना और रोमांचकारी होता है। हालांकि यहां के खतरनाक मोड़ और घाटियां दिल दहला देने वाली है। रोहतांग दर्रा समुद्री तल से 4111 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं। यह हिमालय का एक प्रमुख दर्रा है।
हाइवे पर व्यास नदी के साथ चलते हुए सारा रास्ता प्राकृतिक नजारों से भरा पड़ा हुआ है। प्रकृति की गोद में पड़ने वाले बर्फ से ढंकी पहाड़, नदी, नाले, छोटे-छोटे घर, घने वन और हरियाली के बीच में बने होटल, रिसोर्ट, लहराती सड़कों के दृश्य अपने आप में अजूबे हैं।
खारदोंग ला दर्रा : हिमालय का एक प्रमुख दार्रा खारदोंग ला दर्रा है। यहां की सड़क को दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित सड़क माना जाता है। समुद्र तल से 5359 मीटर के ऊंचाई पर स्थित है यह दर्रा। यह भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में पड़ता हैं। यहां की जलवायु काफी ठंड होती हैं और ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां ऑक्सीजन की कमी होती हैं।
खारदोंग ला दर्रा की संकीर्ण सड़क के एक किनारे विशालकाय पहाड़ है तो दूसरी तरफ गहरी खाई है। इस सड़क पर सफर करने के पहले एक बार सोच जरूर लें और अपने वाहन को चेक जरूर कर लें, क्योंकि अक्सर यहां बर्फ जमी रहती है, जिससे वाहन चालकों की गाड़ी फिसलती रहती है।
चैंग ला दर्रा : 134 किलोमीटर लंबी इस सड़क को दुनिया की तीसरी सबसे ऊंचाई पर स्थित सड़क का दर्जा प्राप्त है। यह दर्रा लद्दाख में स्थित है, जोकि समुद्र तल से 5360 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां की जलवायु काफी ठंड होती हैं और ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां ऑक्सीजन की कमी होती हैं।
किलाड़-किश्तवाड़ रोड : भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर में स्थित किलाड़ से किश्तवाड़ के बीच की सड़क दुनिया की सबसे खतरनाक सड़कों से एक है। यहां कार से जाने का मतलब सीधे-सीधे आत्महत्या करने जैसा है। वेबदुनिया के शोधानुसार हिमाचल और जम्मू एवं कश्मीर में स्थित पांगी घाटी में स्थित है यह घाटी मार्ग भी बहुत ही प्राचीन मार्ग रहा है। हालांकि वक्त के साथ इस मार्ग की दशा दिशा बदलती रही है।
जम्मू क्षेत्र से कश्मीर जाने के लिए तीन रास्ते हैं- पहला जम्मू-श्रीनगर हाईवे, दूसरा है मुगल रोड और तीसरा है किश्तवाड-अनन्तनाग मार्ग। बटोड से डोडा-किश्तवाड 110 किलोमीटर है। पुलडोडा से किश्तवाड लगभग 55 किलोमीटर है। श्रीनगर के रास्ते में सिंथन टॉप दर्रा पडता है जो लगभग 3800 मीटर ऊंचा है। सिंथन टॉप रोहतांग का 'सहोदर' है। दोनों ही दर्रे पीर पंजाल की श्रंखला में स्थित हैं। किश्तवाड से आगे चेनाब के साथ-साथ यही सड़क पद्दर, पांगी होते हुए लाहौल भी जाती है।
बाइक से इसका सफर भी मौत के मुंह में जाने जैसा है। यदि बाइक से आप रोड पार कर जाओ तो फिर किसी मंदिर या दर्गा पर जाकर माथा जरूर टेक देना। इसके अलावा उदयपुर-पांगी-किश्तवाड़ सड़क मार्ग भी बेहद ही खतरनाक है। यहां वही व्यक्ति जाए जो खतरों का खिलाड़ी हो।
इस सुरंग से पाताल लोक गए थे हनुमान : नेशनल जियोग्राफिक के अनुसार, हाल ही में वैज्ञानिकों के एक समूह ( जिसका नेतृत्व कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्रिस्टोफर फिशर कर रहे थे।) ने एक ऐसी प्राचीन रहस्यमय शहर( सियुदाद ब्लांका आज का होंडुरास देश) की खोज की है, जिसका वर्णन भारतीय पौराणिक कथाओ में मिलता है।
हिन्दू धार्मिक ग्रंथ रामायण के अनुसार पवनपुत्र हनुमान अपने ईष्ट देव को अहिरावण के चंगुल से बचाने के लिए एक सुरंग मार्ग से 70 हजार योजन ( तक़रीबन 560 हजार किलोमीटर ) की गहराई में पाताल लोक पहुंचे थे।वेबदुनिया के शोधानुसार इस पौराणिक कथा के अनुसार पाताल लोक धरती के ठीक नीचे है। अगर मौजूदा वक्त में हम भारत से कोई सुरंग खोदना चाहें तो 560 हजार किलोमीटर लम्बी ये सुरंग अमेरिका महाद्वीप के होंडुरास नामक देश के आस-पास निकलेगी।
बहुत से जानकार इस शहर को वही पाताल लोक मान रहे हैं जहां राम भक्त हनुमान पहुंचे थे। और इस बात को बल देने के कई पुख्ता वजह भी है। हजारों साल पहले नष्ट हो चुकी सभ्यता में ठीक राम भक्त हनुमान जैसे दिखने वाली एक देवता की मूर्तियां मिली हैं। अब तक के प्राप्त अवशेषो में ऐसी कई मूर्तिया मिली है जिनमे हनुमान जी गुठने के बल बैठे है और हाथ में उनके गदा जैसा हथियार है जो भारत में मिलने वाली हनुमान जी की मूर्तियों से मिलती जुलती है।
इतिहासकारों का मानना है कि प्राचीन शहर सियुदाद ब्लांका के लोग एक विशालकाय वानर देवता की पूजा करते थे। जिससे इस बात को बल मिलता है, की कहीं हजारों साल पहले रामायण में वर्णित पाताल पुरी ही प्राचीन सियूदाद ब्लांका तो नहीं है। रामायण की कथा में पाताल पुरी का जिक्र तब आता है, जब मायावी अहिरावण भगवान श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण का हरण कर उन्हें अपने मायालोक पातालपुरी ले जाता है, तब हनुमान जी अहिरावण तक पहुंचने के लिए पातालपुरी के रक्षक मकरध्वजा को परास्त करना पड़ा था। रामकथा के अनुसार अहिरावण वध के बाद भगवान राम ने वानर रूप वाले मकरध्वजा को ही पातालपुरी का राजा बना दिया था, जिसे पाताल पुरी के लोग पूजने लगे थे। इस प्राचीन शहर की खोज अमेरिकी वैज्ञानिकों की टीम ने लीडर नामक तकनीक से की, जो जमीन के नीचे की 3-D मैपिंग दिखाती है।
इस शहर की पहली पुख्ता जानकारी 1940 में अमेरिकी खोजकर्ता थियोडोर मोर्डे ने एक अमेरिकी मैगजीन में दी थी। उस लेख में लिखा था की इस प्राचीन शहर के लोग एक वानर देवता की पूजा करते थे परन्तु लेख में उस स्थान का खुलासा नहीं किया गया था। कुछ समय बाद में रहस्यमय परिस्थितियों में खोजकर्ता थियोडोर की मौत हो गई जिससे प्राचीन शहर की खोज अधूरी रह गई।
इसके करीब 7 दशक बाद लाइडार तकनीक की मदद से होंडूरास के घने जंगलों के बीच मस्कीटिया नामक इलाके में प्राचीन शहर के निशान मिलने शुरू हुए हैं। अमेरिका के ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी और नेशनल सेंटर फॉर एयरबोर्न लेजर मैपिंग ने होंडूरास के जंगलों के ऊपर आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से प्राचीन शहर के निशान को खोज निकाला है।
लाइडार तकनीक की मदद से जो थ्री-डी नक्शे मिले है, उसका अध्ययन करने पर जमीन के नीचे एक प्राचीन शहर की मौजूदगी का पता चलता है साथ ही साथ जंगलों की जमीन की गहराइयों में मानव निर्मित कई वस्तुओ के भी साक्ष्य मिले है।
इस दरवाजे में क्या कोई रहस्यमयी रास्ता है?
भारत के केरल में सन् 2011 में श्रीपद्मनाभ स्वामी मंदिर की सुरक्षा उस वक्त कड़ी कर दी गई जब यहां सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर मंदिर के तहखाने में बने पांच खुफिया दरवाजे खोल दिया जो सदियों से बंद थे। और हर दरवाजे के पार उन्हें सोना और चांदे के अंबार मिलते गए जिनकी कीमत करीब 22 सौ करोड़ डॉलर थी। लेकिन जब वे आखरी चेम्बर बी पर पहुंचे तो वे उसे खोलने में नाकाम हो गए।
वहां तीन दरवाजे हैं। पहला दरवाजा लोहे की झड़ों से बना दरवाजा है। वेबदुनिया के शोधानुसार दूसरा लकड़ी से बना एक भारी दरवाजा है और अंतिम दरवाजा लोहे का बना बड़ा ही मजबूत दरवाजा है जो बंद है और उसे खोला नहीं जा सकता क्योंकि उसे पर लोहे के दो नाग बने हैं और वहां चेतावनी लिखी है कि इसे खोला गया तो अंजाम बहुत बुरा होगा।
इस पर न तो ताले लगे हैं और न ही कोई कुंडी। कहा जाता है कि उसे एक मंत्र से बंद किया गया है। उसे कहते हैं अष्टनाग बंधन मंत्र। मगर वो मंत्र क्या है ये कोई नहीं जानता। वह चेम्बर एक अनोखे शाप से ग्रस्त है। यदि कोई भी उसे चेम्बर के दरवाजे तक जाने का प्रयास करता है तो वह बीमार हो जाता है या उसकी मौत भी हो सकती है।
17 जुलाई 2011 में पहले पांच कक्षों को खोलने के बाद ही टी.पी सुंदरराजन यानी वे शख्स जिन्होंने इन दरवाजों को खुलवाने के लिए अदालत में याचिका दी थी, पहले वे बीमार पड़े और फिर उनकी मौत हो गए। अगले ही महीने मंदिर प्रशासन ने यह चेतावनी जारी कर दी की यदि किसी ने भी उस अंतीम कक्ष को खुलवाने या खोलने की कोशीश की तो अंजाम बहुत बुरा होगा।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि चेम्बर बी के दरवाजे के पीछे आखिर क्या रखा है? अपार सोना, कोई खतरनाक हथियार या कि प्राचीन भारत की कोई ऐसी टेक्नोलॉजी का राज छुपा है जिसे जानकर दुनिया हैरान रह सकती है। यह कहीं ऐसा तो नहीं कि वहां कोई ऐसा रास्ता हो जहां से पाताल लोग में जाया जा सकता हो?
कुरुक्षेत्र की सुरंग : महाभारत की भूमि के प्राचीन कुलतारण तीर्थ किनारे प्राचीन सुरंग बनी हुई है। यह सुरंग भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के लिए अभी भी रहस्यमयी बनी हुई है। धर्मनगरी कुरुक्षेत्र से 48 कोस की परिधि के एक ओर गांव किरमच में स्थित तीर्थ कुलतारण की सुंरग पर शोध जारी है। पुरातत्व विभाग ने सालों से बंद पड़ी इस सुरंग के कई चित्र और नमूने लेकर इस संबंध में एक रिपोर्ट केंद्र को भेजी है।;
48 कोस की परिधि के इस तीर्थ का पुराना इतिहास है, बताया जाता है कि पांडुओं की अस्थियां इसी कुलतारण तीर्थ में विसर्जित की गई थी। तब से इस क्षेत्र के लोग अस्थियों को इस तीर्थ में ही विसर्जित करते है। वेबदुनिया के शोधानुसार यहां पर रामकुंडी मंदिर, भगवान शिव का मंदिर में स्थित है। इस तीर्थ का अपना एक प्राचीन इतिहास रहा है। ऐसा पूर्वजों से सुनते आए है, इस क्षेत्र के लोग इस तीर्थ को काफी मानते है। इस तीर्थ पर हर वर्ष मेला लगता है और दूर दराज से लोग इस मेले में शामिल होने के लिए यहां आते है।
हाथी पोल : रामगढ़ के उत्तरी छोर के निचले भाग में एक विशाल सुरंग है, जो लगभग 39 मीटर लम्बा एवं मुहाने पर 17 मीटर ऊंचा एवं इतना ही चौड़ा है. इसे हाथपोल या हाथीपोल कहते है। अन्दर इसकी ऊंचाई इतनी है कि इसमें से हाथी आसानी से गुजर सकता है। बरसात में इसमें से एक नाला बहता है। अंदर चट्टानों के बीच में एक कुण्ड है जो सीता कुण्ड के नाम से जाना जाता है जिसका पानी अत्यंत निर्मल एवं शीतल है।
तिरुपति मंदिर रोड़ : तिरुपति तीर्थ स्थल आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में है। यहां समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थित तिरुमला की पहाड़ियों पर बना श्री वैंकटेश्वर मंदिर दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यहां तक पहुंचने के लिए पहाड़ियों की ओर चढ़ती हुई कई घुमावदार और खतरनाक सड़कों को पार करना होता है तब जाकर कहीं भगवान के दर्शन होते हैं, लेकिन यदि आप जरा भी ध्यान चूके तो सीधे भगवान के पास पहुंच जाएंगे। यहां दुर्घटनाओं का खतरा हर दम बना रहता है।
माउंट आबू रोड : माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र पहाड़ी नगर है। समुद्र तल से यह 1220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहा पहाड़ आरावली पहाड़ियों की श्रंखला का सर्वोच्च शिखर है। यहां जैन और हिन्दू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थान है। वेबदुनिया के शोधानुसार माउंट आबू तक पहुंचने के लिए 28 किलोमीटर के दर्रे से जाना पड़ता है जो आबू रोड़ से शुरू होता हैं। यह सड़क कुछ जगहों पर बहुत खतरनाक हो जाती है। जहां एक बार में एक ही वाहन सड़क पर चल सकता हैं, ऐसे में बहुत सावधानी रखना होती है। सावधानी हटी की दुर्घटना घटी। नीचे खाई में गिरने के मौके बहुत होते हैं।