'सृष्टि के आदिकाल में न सत् था न असत्, न वायु था न आकाश, न मृत्यु थी और न अमरता, न रात थी न दिन, उस समय केवल वही एक था जो वायुरहित स्थिति में भी अपनी शक्ति से सांस ले रहा था। उसके अतिरिक्त कुछ नहीं था।'- ऋग्वेद (नासदीयसूक्त) 10-129
प्रलय का अर्थ : प्रलय का अर्थ होता है संसार का अपने मूल कारण प्रकृति में सर्वथा लीन हो जाना। प्रकृति का ब्रह्म में लय (लीन) हो जाना ही प्रलय है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड ही प्रकृति कही गई है। इसे ही शक्ति कहते हैं।
प्रलय क्या है : जो जन्मा है वह मरेगा- पेड़, पौधे, प्राणी, मनुष्य, पितर और देवताओं की आयु नियुक्त है, उसी तरह समूचे ब्रह्मांड की भी आयु है। इस धरती, सूर्य, चंद्र सभी की आयु है। आयु के इस चक्र को समझने वाले समझते हैं कि प्रलय क्या है। प्रलय भी जन्म और मृत्यु और पुन: जन्म की एक प्रक्रिया है। जन्म एक सृजन है तो मृत्यु एक प्रलय।
प्रलय के प्रकार : 1.नित्य, 2.नैमित्तिक, 3.द्विपार्थ और 4.प्राकृत। इसमें प्राकृत ही महाप्रलय है जब संपूर्ण ब्रह्मांड आदिकाल में जैसा था वैसा हो जाता है। अर्थात अंधाकार और निराकारमय।
प्राकृत प्रलय : ब्राह्मांड के सभी भूखण्ड या ब्रह्माण्ड का मिट जाना, नष्ट हो जाना या भस्मरूप हो जाना प्राकृत प्रलय कहलाता है। प्राकृत प्रलय अर्थात प्रलय का वह उग्र रूप जिसमें तीनों लोकों सहित महतत्व अर्थात प्रकृति के पहले और मूल विकार तक का विनाश हो जाता है और प्रकृति भी ब्रह्म में लीन हो जाती है अर्थात संपूर्ण ब्रह्मांड शून्यावस्था में हो जाता है। न जल होता है, न वायु, न अग्नि होती है और न आकाश और ना अन्य कुछ। सिर्फ अंधकार रह जाता है।
अर्थात संपूर्ण ब्रह्मांड भस्म होकर पुन: पूर्व की अवस्था में हो जाता है, जबकि सिर्फ ईश्वर ही विद्यमान रह जाते हैं। न ग्रह होते हैं, न नक्षत्र, न अग्नि, न जल, न वायु, न आकाश और न जीवन। अनंत काल के बाद पुन: सृष्टि प्रारंभ होती है।
यहां रहती है सभी आत्माएं : पुराणों अनुसार त्रैलोक्य (तीन लोक या जगत) होते हैं। ये 3 लोक हैं- 1. कृतक त्रैलोक्य, 2. महर्लोक, 3. अकृतक त्रैलोक्य।
1. कृतक त्रैलोक्य : इस कृतक त्रैलोक्य में 3 लोक हैं:- 1.भू लोक, 2.भुवर्लोक, 3.स्वर्लोक (स्वर्ग)। कृतक त्रैलोक्य के यह तीनों ही लोक नश्वर है। अर्थात नष्ट हो जाने, भस्मरूप या भस्मीभूत हो जाने वाले हैं। इस कृतक त्रैलोक्य में ही सूर्य, धरती, चंद्र, ग्रह-नक्षत्र और तारे विद्यमान हैं। यहीं पर अनगिनत आत्माएं किसी भी आकार-प्रकार में रहकर निवास करती है।
A.भूलोक : हमारी पृथ्वी सहित और भी कई पृथ्वियां हैं। इसे भूलोक कहते हैं। जितनी दूर तक धरती, चंद्रमा आदि का प्रकाश जाता है, वह पृथ्वी लोक कहलाता है। भूलोक में ही पाताल आदि कई लोक विद्यमान हैं।
B.भुवर्लोक : पृथ्वी और सूर्य के बीच के स्थान को भुवर्लोक कहते हैं। इसमें सभी ग्रह-नक्षत्रों का मंडल है।
C.स्वर्लोक : सूर्य और ध्रुव के बीच जो 14 लाख योजन का अंतर है, उसे स्वर्लोक या स्वर्गलोक कहते हैं। इसी के बीच में सप्तर्षि का मंडल है।
प्रलयकाल में यहां रहती हैं आत्माएं...
2.महर्लोक : ध्रुवलोक से एक करोड़ योजन ऊपर महर्लोक है। कृतक और अकृतक लोक के बीच स्थित है 'महर्लोक' जो कल्प के अंत की प्रलय में केवल जनशून्य हो जाता है, लेकिन नष्ट नहीं होता। इसीलिए इसे कृतकाकृतक भी लोक कहते हैं। महर्लोक प्रलय से अछूता स्थान है जहां समय ठहरा हुआ है।
यह स्थान जनशून्य अवस्था में रहता है जहां प्रलयकाल में सामान्य या पापी आत्माएं स्थिर अवस्था में रहती हैं, यहीं पर महाप्रलय के दौरान सृष्टि भस्म के रूप में विद्यमान रहती है। यह लोक कृतक त्रैलोक्य और अकृतक त्रैलोक्य के बीच स्थित है। इस लोक के कोई प्रकार नहीं है।
3.अकृतक त्रैलोक्य : इस अकृतक त्रैलोक्य के भी 3 प्रकार है- 1.जनलोक, 2.तपलोक और 3.सत्यलोक। सत्यलोक को ब्रह्मलोक भी कहते हैं। कृतक त्रैलोक्य अर्थात जो नश्वर नहीं है अनश्वर है। जिसे मनुष्य स्वयं के सदकर्मो से ही अर्जित कर सकता है। अर्थात प्रलयकाल में जहां आत्माएं अचेत अवस्था में महर्लोक में अनंतकाल तक पड़ी रहती है वहीं जन, तप या सत्य लोक में वे आत्माएं प्रवेश कर जाती है जिन्होंने अपने जीवन में ध्यान, तप या सद्कर्मों को अर्जित किया है।
A.जनलोक : महर्लोक से बीस करोड़ योजन ऊपर जनलोक है।
B.तपलोक : जनलोक से आठ करोड़ योजन ऊपर तपलोक है।
C.सत्यलोक : तपलोक से बारह करोड़ योजन ऊपर सत्यलोक है।
नोट : उपरोक्त चित्र अनुमानित है। उक्त सात लोकों के बारे में पुराणों ने विस्तार से अलग-अलग तरीके से लिखा है। पुराणों का यह ब्रह्मांड भेद वेदों पर ही आधारित माना जाता है, लेकिन वेदों में ब्रह्मांड को पंच कोशों वाला माना गया है। जहां तक 'योजन' का सवाल है तो यह स्पष्ट नहीं है। इसे अनुमानत: ही माने।