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Written By WD Feature Desk
Last Updated : गुरुवार, 26 जून 2025 (18:28 IST)

कर्ण पिशाचिनी की साधना कैसे करें, जानिए अचूक मंत्र और 7 प्रयोग, कान में बता देगी भूत और भविष्य

karna pishachini kya hai
karna pishachini vidya: भारतीय संस्कृति और परंपरा में ऐसी कई खतरनाक साधनाओं का उल्लेख मिलता है जिसको हिंदू धर्म वर्जित साधनाएं मानता है। शैव, शाक्त और नाथ संप्रदाय में सभी तरह की साधनाओं का प्रचलन है। नौदुर्गा साधना, दश महाविद्या साधना, तंत्र साधना, मंत्र साधना, योगिनी साधना, भैरव साधना, यक्ष और यक्षिणी साधना, अप्सरा साधना, गंधर्व साधना, नाग साधना, किन्नर साधना, नायक नायिका साधना, साबर साधना, पिशाचिनी साधना और बीर साधना आदि। इनमें से कुछ सकारात्मक और कुछ नकारात्मक और खतरनाक मानी गई है। नकारात्मक साधना में पिशाचिनी साधना है। पिशाचिनी कई होती हैं जिनमें कर्ण पिशाचिनी की साधना को लोग मानते हैं।
 
कर्ण पिशाचिनी कौन है? 
पिशाची देवी ही पिशाचिनी साधनाओं की अधिष्ठात्री देवी है। यह हमारे हृदय चक्र की देवी है। इसे बहुत ही खतरनाक तरह की साधनाएं माना जाता है। किसी भी एक पिशाचिनी की साधना करने के बाद व्यक्ति को चमत्कारिक सिद्धि प्राप्त हो जाती है। पिशाचिनी साधना में कर्ण पिशाचिनी, काम पिशाचिनी आदि का नाम प्रमुख है। पिशाच शब्द से यह ज्ञात होता है कि यह किसी खतरनाक भूत या प्रेत का नाम है लेकिन ऐसा नहीं है। यह साधनाएं भी तंत्र के अंतर्गत आती है।
कर्ण पिशाचिनी साधना से क्या होगा?
कर्ण पिशाचिनी साधना को सिद्ध करने के बाद साधक में वो शक्ति आ जाती है कि वह सामने बैठे व्यक्ति की नितांत व्यक्तिगत जानकारी भी जान लेता है। कर्ण पिशाचिनी साधक को किसी भी व्यक्ति की किसी भी तरह की जानकारी कान में बता देती है। कान में बताने के कारण ही इन्हें कर्ण पिशाचिनी कहते हैं। इस साधना की सिद्धि के पश्चात् किसी भी प्रश्न का उत्तर कोई पिशाचिनी कान में आकर देती है अर्थात् मंत्र की सिद्धि से पिशाच-वशीकरण होता है। मंत्र की सिद्धि से वश में आई कोई आत्मा कान में सही जवाब बता देती है। पारलौकिक शक्तियों को वश में करने की यह विद्या अत्यंत गोपनीय और खतरनाक है। मृत्यु के उपरांत एक सामान्य व्यक्ति अगर मुक्ति ना प्राप्त करे तो उसकी क्षमताओं में आश्चर्यजनक वृद्धि हो जाती है।
 
किसे करना चाहिए यह साधना?
इस साधना को कमजोर दिल के व्यक्ति को नहीं करना चाहिए। इसी के साथ जो व्यक्ति नशा करता है और अपवित्र रहता है। उसे भी यह साधना नहीं करना चाहिए। दूसरों को नुकसान पहुंचाने का उद्येश्य जिनके मन में है उन्हें भी यह साधना नहीं करना चाहिए। यदि ऐसा व्यक्ति साधना करना है तो उसका नुकसान हो सकता है। 
 
योग्य व्यक्ति के मार्गदर्शन में करें साधना:
व्यक्ति स्वयं कभी यह साधना संपन्न नहीं कर सकता। उसे विशेषज्ञों या सिद्ध गुरुओं के मार्गदर्शन से ही साधना सीखने के बाद करना चाहिए। किसी किताब को पढ़कर या वेबसाइट्स पर जानकारी को पढ़कर यह साधना नहीं करना चाहिए। स्वयं करने से इसके नकारात्मक परिणाम भी देखे गए हैं। आलेख पढ़ने वाले हर शख्स को गंभीर चेतावनी दी जाती है कि इसे अकेले आजमाने की कतई कोशिश न करें अन्यथा मन-मस्तिष्क पर भयावह असर पड़ सकता है। साधना की छोटी से छोटी गलती आपके जीवन पर भारी पड़ सकती है। कर्ण पिशाचिनी मंत्र के 7 प्रयोग हैं। सभी प्रयोग यहां जानिए।
 
प्रयोग 1
प्रयोग अ‍वधि: 11 दिन
प्रयोग : सर्वप्रथम कांसे की थाली में सिंदूर का त्रिशूल बनाएं। इस त्रिशूल का दिए गए मंत्र द्वारा विधिवत पूजन करें। यह पूजा रात और दिन उचित चौघड़िया में की जाती है। गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं और 1100 मंत्रों का जाप करें। रात में भी इसी प्रकार त्रिशूल का पूजन करें। घी एवं तेल दोनों का दीपक जलाकर ग्यारह सौ बार मंत्र जप करें। इस प्रकार ग्यारह दिन तक प्रयोग करने पर कर्ण पिशाचिनी सिद्ध हो जाती है। तत्पश्चात् किसी भी प्रश्न का मन में स्मरण करने पर साधक के कान में पिशाचिनी सही उत्तर दे देती है।
 
मंत्र
।।ॐ नम: कर्णपिशाचिनी अमोघ सत्यवादिनि मम कर्णे अवतरावतर अतीता नागतवर्त मानानि दर्शय दर्शय मम भविष्य कथय-कथय ह्यीं कर्ण पिशाचिनी स्वहा।।
 
प्रयोग 2
प्रयोग अवधि: 21 दिन
प्रयोग: आम की लकड़ी से बने पटिए पर गुलाल बिछाएं। अनार की कलम से रात्रि में 108 बार मंत्र लिखें और मिटाते जाएं। लिखते हुए मंत्र का उच्चारण भी जरूरी है। अंतिम मंत्र का पंचोपचार पूजन कर फिर से 1100 बार मंत्र का उच्चारण करें। मंत्र को अपने सिरहाने रखकर सो जाए। लगातार 21 दिन करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। यह मंत्र अक्सर होली, दीवाली या ग्रहण से आरंभ किया जाता है। 21 दिन तक इसका प्रयोग होता है।
 
मंत्र :-
'ॐ नम: कर्णपिशाचिनी मत्तकारिणी प्रवेशे अतीतानागतवर्तमानानि सत्यं कथय में स्वाहा।।'
 
प्रयोग-3
प्रयोग अवधि: 21 दिन
प्रयोग: इस प्रयोग में काले ग्वारपाठे को अभिमंत्रित कर उसका हाथ-पैरों में लेप कर नीचे दिए गए मंत्र का 21 दिनों तक जप करें। यह मंत्र प्रतिदिन पाँच हजार बार किया जाता है। 21 दिनों में मंत्र सिद्ध हो जाता है और साधक को कान में सभी अपेक्षित बातें स्पष्ट सुनाई देने लग जाती हैं।
 
मंत्र : ओम ह्यीं नमो भगवति कर्णपिशाचिनी चंडवेगिनी वद वद स्वाहा।।
 
प्रयोग-4
प्रयोग अवधि: 21 दिन
प्रयोग: यह प्रयोग किसी सिद्ध पुरुष अथवा गुरु के मार्गदर्शन में ही संपन्न किया जाए। प्रयोग 4 पूरी तरह से प्रयोग 3 की तरह है। लेकिन इस प्रयोग में मंत्र नया सिद्ध किया जाता है। 21 दिनों में मंत्र सिद्ध हो जाता है। इस मंत्र ओम् प्रतिदिन 5 हजार जब करना अनिवार्य है।
 
मंत्र- 'ओम् ह्रीं सनामशक्ति भगवति कर्णपिशाचिनी चंडरूपिणि वद वद स्वाहा।'
 
प्रयोग 5
प्रयोग अधि: 11 दिन
प्रयोग: इस प्रयोग में साधक को गाय के गोबर में पीली मिट्‍टी मिलाकर उससे पूरा कमरा लीपना चाहिए। उस पर हल्दी, कुंमकुंम, अक्षत डालकर कुशासन बिछाए। भगवती कर्णपिशाचिनी का विधिवत पूजन कर रूद्राक्ष की माला से 11 दिन तक प्रतिदिन 10 हजार मंत्र का जाप करे। इस तरह 11 दिनों में कर्णपिशाचिनी सिद्ध हो जाती है।
 
मंत्र:- ओम् हंसो हंस: नमो भगवति कर्णपिशाचिनी चंडवेगिनी स्वाहा।।
 
प्रयोग- 6
प्रयोग अवधि: 21 दिन
प्रयोग: इस प्रयोग में साधक को लाल वस्त्र पहनकर रात को घी का दीपक जलाकर नित्य 10 हजार मंत्र का जप करना चाहिए। इस प्रकार 21 दिन तक मंत्र का जप करने से कर्णपिशाचिनी साधना सिद्ध हो जाती है। पाठकों से निवेदन है कि किसी भी प्रकार का प्रयोग आजमाने से पूर्व वेबदुनिया पोर्टल में वर्णित कर्णपिशाचिनी साधना प्रयोग अवश्य पढ़ें।
 
मंत्र- ओम् भगवति चंडकर्णे पिशाचिनी स्वाहा।
 
प्रयोग-7
प्रयोग अवधि: 21 दिन
प्रयोग: कर्णपिशाचिनी के पूर्व में वर्णित प्रयोगों की तुलना में यह प्रयोग सबसे अधिक पवित्र और महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि स्वयं वेद व्यास जी ने इस मंत्र को इसी विधि द्वारा सिद्ध किया था। सबसे पहले आधी रात को (ठीक मध्यरात्रि) को कर्णपिशाचिनी देवी का ध्यान करें। फिर लाल चंदन (रक्त चंदन) से मंत्र लिखें। यह मंत्र बंधक पुष्प से ही पूजा जाता है। 
 
मंत्र: 'ओम अमृत कुरू कुरू स्वाहा' इस मंत्र से लिखे हुए मंत्र की पूजा करनी चाहिए। बाद में मछली की बलि देनी चाहिए।
 
बलि निम्न मंत्र से दी जानी चाहिए-
''ओम कर्णपिशाचिनी दग्धमीन बलि
गृहण गृहण मम सिद्धि कुरू कुरू स्वाहा।''
 
रात्रि को पांच हजार मंत्रों का जाप करें। प्रात: काल निम्नलिखित मंत्र से तर्पण किया जाता है-
''ओम् कर्णपिशाचिनी तर्पयामि स्वाहा''
 
कर्णपिशाचिनी मंत्र
''ओम ह्रीं नमो भगवति कर्णपिशाचिनी चंडवेगिनी वद वद स्वाहा''
 
चेतावनी: यह मंत्र साधनाएं आसान प्रतीत होती हैं किंतु इनके संपन्न करने पर मामूली सी गलती भी साधक के लिए घातक हो सकती है। साधक इन्हें किसी विशेषज्ञ गुरु के साथ ही संपन्न करें। पाठक अपने स्वविवेक से काम लें।
 
सावधानी:-
  1. काले वस्त्र धारण करके ही साधना करें। स्त्री से बातचीत वर्जित है। 
  2. साधनाकाल में मन-कर्म-वचन की शुद्धि रखें।
  3. इन मंत्रों को अज्ञानतावश आजमाने की कोशिश न करें।
  4. यह अत्यंत गोपनीय एवं दुर्लभ मंत्र है। इसे किसी सिद्ध पुरुष एवं प्रकांड विद्वान के मार्गदर्शन में ही करें।
  5. इस मंत्र को सिद्ध करने में अगर मामूली त्रुटि भी होती है तो इसका घोर नकारात्मक असर हो सकता है।
  6. कर्णपिशाचिनी साधना के दौरान की गई मामूली त्रुटि भी दिमाग पर नकारात्मक असर डाल सक‍ती है।
  7. मंत्र के पश्चात जिस कमरे में साधक सोए वहां और कोई नहीं सोए।
  8. जहां बैठकर मंत्र लिखा जाए वहीं पर साधक सो जाए वहाँ से उठे नहीं।
  9. कान में सारी बातें स्पष्‍ट सुनने के लिए सभी सावधानियां ध्यान में रखना आवश्यक है।
 
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