सुरा, सोम और मदिरा, जानिए फर्क
प्राचीन भारत में सुर, सुरा, सोम और मदिरा आदि का बहुत प्रचलन था। कहते हैं कि इंद्र की सभा में सुंदरियों के नृत्य के बीच सुर के साथ सुरापान होता था। यह कितना सही है यह बताना मुश्किल है, क्योंकि वेदों में देवताओं द्वारा सोमपान किए जाने की चर्चा ज्यादा रही है। आओ जाते हैं सुरा, सोम और मदिरा में क्या फर्क है?
सोम रस : सभी देवता लोग सोमरस का सेवन करते थे। प्रमाण- 'यह निचोड़ा हुआ शुद्ध दधिमिश्रित सोमरस, सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इंद्रदेव को प्राप्त हो।- (ऋग्वेद-1/5/5)....हे वायुदेव यह निचोड़ा हुआ सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिश्रित करके तैयार किया गया है। आइए और इसका पान कीजिए।।(ऋग्वेद-1/23/1).. ।।शतं वा य: शुचीनां सहस्रं वा समाशिराम्। एदुनिम्नं न रीयते।। (ऋग्वेद-1/30/2) अर्थात : नीचे की ओर बहते हुए जल के समान प्रवाहित होते सैकड़ों घड़े सोमरस में मिले हुए हजारों घड़े दुग्ध मिल करके इंद्रदेव को प्राप्त हों।
इन सभी मंत्रों में सोम में दही और दूध को मिलाने की बात कही गई है, जबकि यह सभी जानते हैं कि शराब में दूध और दही नहीं मिलाया जा सकता। भांग में दूध तो मिलाया जा सकता है लेकिन दही नहीं, लेकिन यहां यह एक ऐसे पदार्थ का वर्णन किया जा रहा है जिसमें दही भी मिलाया जा सकता है। अत: यह बात का स्पष्ट हो जाती है कि सोमरस जो भी हो लेकिन वह शराब या भांग तो कतई नहीं थी और जिससे नशा भी नहीं होता था अर्थात वह हानिकारक वस्तु तो नहीं थी। देवताओं के लिए समर्पण का यह मुख्य पदार्थ था और अनेक यज्ञों में इसका बहुविधि उपयोग होता था। सबसे अधिक सोमरस पीने वाले इंद्र और वायु हैं। पूषा आदि को भी यदा-कदा सोम अर्पित किया जाता है। सोमरस को सोम लताओं से बनाया जाता था। सोम लताएं पर्वत श्रृंखलाओं में पाई जाती हैं। राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के महेन्द्र गिरी, विंध्याचल, मलय आदि अनेक पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी लताओं के पाए जाने के जिक्र है। कुछ विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है। यह बिना पत्तियों का गहरे बादामी रंग का पौधा है।
सुरापान : प्राचीन काल में सुरा एक प्रकार से बीयर की तरह होती थी। कहते हैं कि सुरों द्वारा ग्रहण की जाने वाली हृष्ट (बलवर्धक) प्रमुदित (उल्लासमयी) वारुणी (पेय) इसीलिए सुरा कहलाई। कुछ देवता सुरापान करते थे। हालांकि कई लोग सुरापान को ही मदिरा सेवन या शराब का सेवन करना मानते हैं। कई लोग यह भी मानते हैं कि ताड़ी को ही सुरा कहते हैं।
।।हृत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्।।
अर्थात : सुरापान करने या नशीले पदार्थों को पीने वाले अक्सर युद्ध, मार-पिटाई या उत्पात मचाया करते हैं।
मदिरा : मदिरा को शराब कहते सकते हैं। दैत्य, दावन और राक्षस प्रजाति के लोग अक्सर इसका सेवन करते थे। कहते हैं कि समुद्र मंथन से वारुणी नाम से एक मदिरा निकली थी। जल से उत्पन्न होने के कारण उसे वारुणी कहा गया। वरुण का अर्थ जल। यह भी कहा जाता है कि कदंब के फलों से बनाई जाने वाली मदिरा को वारुणी कहते हैं। कुछ लोग ताल अथवा खजूर से निर्मित मदिरा को वारुणी मानते हैं। ये समुद्र से निकले वृक्ष भी माने जाते हैं। चरकसंहिता के अनुसार वारुणी को मदिरा के एक प्रकार के रूप में बताया गया है और यक्ष्मा रोग के उपचार के लिए इसे औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। मदिरापान को मद्य-पान भी कहा जाता है। मदिरा को फलों, गन्ने, अनाज आदि को सड़ाकर बनाया जाता था।