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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : शुक्रवार, 7 जून 2024 (10:34 IST)

18 पुराणों की 20 परंपराएं, Life बदल देंगी आपकी

20 Traditions of 18 Puranas
20 traditions of 18 Puranas, your life will change: पुराण का शाब्दिक अर्थ है- प्राचीन आख्यान या पुरानी कथा। पुराणों में दर्ज है प्राचीन भारत का इतिहास। इसमें प्राचीन कथाओं के साथ ही ज्ञान, विज्ञान और धर्म की कई गहन गंभीर बातें भी समाहित हैं। आओ जानते हैं पुराणों की ऐसी 20 परंपराएं जो आपके जीवन में बहुत काम आएगी, जिन पर अमल करके आप अपना जीवन बदल सकते हैं।
 
 
1. एकादशी : पुराणों में व्रतों का बहुत महत्व बताया गए हैं। प्राचीनकाल से ही एकादशी, प्रदोष और चतुर्थी का व्रत रखने की परंपरा रही है। इसे रखने से कई तरह के संकटों से मुक्ति पाई जा सकती है। व्रत को उपवास भी कह सकते हैं, हालांकि दोनों में थोड़ा-बहुत फर्क है। संकल्पपूर्वक किए गए कर्म को व्रत कहते हैं। व्रत के 3 प्रकार हैं- 1. नित्य, 2. नैमित्तिक और 3. काम्य। 
 
2. गंगा नदी में स्नान करना : प्राचीन काल से ही गंगा में स्नान करने की परंपरा रही है। गंगा में स्नान करने का पुराणों में महत्व बताया गया है। विभिन्न पर्वों पर और खासकर माघ माह में गंगा के स्नान का खास महत्व है।
 
3. तीर्थ परिक्रमा : प्राचीनका से ही तीर्थ स्नान और परिक्रमा की परंपरा चली आ रही है। व्यक्ति को अपने जीवन में चार धाम की यात्रा या कहें की तीर्थ यात्रा जरूर करना चाहिए। पुराणों में प्रत्येक तीर्थ का अलग ही महत्व बताया गया है। मोक्ष प्राप्ति हेतु या सद्गति हेतु तीर्थ करना चाहिए।
 
4. तुलसी पूजा और सेवन : पुराणों में हर कहीं तुलसी के पौधे के महत्व को बताया गया है। प्राचीन काल से ही तुलसी पूजा और उसके सेवन का प्रचलन रहा है। भोजन और पानी में तुलसी का पत्ता डालकर खाने की परंपरा रहे हैं। इसके कई लाभ हैं। 
 
5. शालिग्राम या शिवलिंग पूजा : पुराणों में शालिग्राम और शिवलिंग की पूजा का महत्व बताया गया है। भारत में इन दोनों की पूजा का प्रचलन रहा है। यह भगवान विष्णु और शिव के विग्रह रूप है। 
 
5. गाय की सेवा : पुराणों में गाय को बहुत ही पवित्र माना गया है। विभिन्न पर्वों पर गाय की पूजा और सेवा करने की परंपरा प्राचीन काल से ही रही है। गाय की सेवा करने से सभी जन्मों के पापों का नाश हो जाता है। 
 
6. श्राद्धकर्म करना : श्राद्धकर्म करना करना पितृयज्ञ के अंतर्गत आता है। प्राचीनकाल से ही इसे करने की परंपरा रही है। जीवन में सुख चाहिए तो प्रत्येक हिन्दू को यह करना ही चाहिए।
 
7. पाठ : वेद, पुराण या गीता का पाठ करने या सुनने की परंपरा रही है। इनके थोड़े बहुत हिस्सों का पाठ करते रहना या सुनते रहना चाहिए। इससे व्यक्ति के मन, मस्तिष्क में सुधार होता है और जीवन में शांति तथा निर्भिकता आती हैं।
 
8. संध्यावंदन : संध्या आठ प्रहर की होती है। प्राचीन काल में इसकी परंपरा थी। हर व्यक्ति प्रात: और शाम को संध्या वंदन या संध्योपासन करता था। सुबह या शाम को यह करना चाहिए। यह नहीं कर सकते हैं तो कम से कम पूजा या प्रार्थना जरूर करना चाहिए। संध्यावंदन करने से जीवन में आत्मविश्‍वास बढ़कर सकारात्मकता बढ़ती है।ऐसा करने वाला सदा सुखी रहकर मोक्ष को प्राप्त होता है।
 
9. माता पिता की सेवा : माता पिता की सेवा और उनका सहयोग करने की परंपरा रही है। पुराणों में इसका उल्लेख मिलता है। श्रवण कुमार, श्रीराम, पुंडलिक आदि के उदाहरण हैं।
10. प्रायश्चित करना : प्राचीनकाल से ही हिन्दु्ओं में मंदिर में जाकर अपने पापों के लिए प्रायश्चित करने की परंपरा रही है। प्रायश्‍चित करने के महत्व को स्मृति और पुराणों में विस्तार से समझाया गया है। गुरु और शिष्य परंपरा में गुरु अपने शिष्य को प्रायश्चित करने के अलग-अलग तरीके बताते हैं।
 
11. जनेऊ धारण करना या दीक्षा लेना : प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है जनेऊ धारण करके उसके नियम का पालन करना। कई लोग नियम का पालन नहीं कर पाते हैं तो वे दीक्षा ले कर कुछ नियमों का पालन कर सकते हैं। दीक्षा देने का प्रचलन वैदिक ऋषियों ने प्रारंभ किया था। हिन्दू धर्मानुसार दिशाहीन जीवन को दिशा देना ही दीक्षा है। किसी भी संत से दीक्षा जरूर लें। दीक्षा के बाद व्यक्ति द्विज बन जाता है। द्विज का अर्थ दूसरा जन्म। दूसरा व्यक्तित्व। सिख धर्म में इसे अमृत संचार कहते हैं।
 
12. बिना सिले सफेद वस्त्र पहनना : पूजा-पाठ, तीर्थ परिक्रमा, यज्ञादि पवित्र कर्म के दौरान बिना सिले सफेद या पीत वस्त्र पहनने की परंपरा भी प्राचीनकाल से हिन्दुओं में प्रचलित रही है। मंदिर में जाएं तो भी इसी परंपरा का पालन करना चाहिए।
 
13. शौच और शुद्धि : मंदिर जाने या संध्यावंदन के पूर्व आचमन या शुद्धि करना जरूरी है। ध्यान, पूजा, या प्रार्थना करने से पूर्व शरीर शुद्धि किए जाने का उल्लेख पुराणों में मिलता है। वैसे भी किसी भी पूजास्थल पर जाने से पूर्व पवित्र होना जरूरी है।
 
14. जप-माला फेरना : किसी मंत्र, भगवान का नाम या किसी श्लोक का जप करना हिन्दू धर्म में वैदिक काल से ही प्रचलित रहा है। जप करते वक्त माला फेरी जाती है जिसे जप संख्या का पता चलता है। जप 3 तरह का होता है- वाचिक, उपांशु और मानसिक।
 
15. दान-पुण्य करना : दान-दक्षिणा देने की परंपरा भी वैदिक काल से रही है। पुराणों में अनोकों दानों का उल्लेख मिलता है जिसमें अन्नदान, वस्त्र दान, विद्यादान, अभयदान और धनदान को ही श्रेष्ठ माना गया है, यही पुण्‍य भी है।
 
16. सेवा भाव : सेवा एक नैसर्गिक भावना है। सेवा भाव का हिन्दू में बहुत महत्व है। गरीब, अनाथ, अपंग, गाय, कुत्ता, कौवे, पशु, पक्षी, अतिथि, विधवा, बहु, बेटी आदि की सेवा करना 'पुण्य' का कार्य है।
 
17. खेती, बागवानी या रक्षा करना : पुराणों में खेती करने, बागवानी करने और धर्म की रक्षा करने का महत्व बताया गया है। जीवितं च धनं दारा पुत्राः क्षेत्र गृहाणि च। याति येषां धर्माकृते त भुवि मानवाः॥ [स्कंदपुराण:] अर्थात- मनुष्य जीवन में धन, स्त्री, पुत्र, घर-धर्म के काम, और खेत– ये 5 चीजें जिस मनुष्य के पास होती हैं, उसी मनुष्य का जीवन इस धरती पर सफल माना जाता है।
 
18. भक्ति करना : कर्मयोग से बढ़कर है ज्ञानयोग, ज्ञानयोग से बढ़कर है भक्तियोग। जो व्यक्ति अपने ईष्टदेव की भक्ति में दृढ़ रहता है उसके जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार की परेशानी खड़ी नहीं होती है। पुराणों में भक्ति की महिमा का वर्णन मिलता है। गरुड़ पुराण में विष्णु और उनके अवतरों की भक्ति को सर्वोपरि माना गया है। 
 
19. सत्य बोलना : पुराणों में सत्य बोलने पर बहुत जोर दिया गया है। गरुड़ पुराण हमें सत्कर्मों के लिए प्रेरित करता है। सत्कर्म और सुमति से ही मृत्यु के बाद सद्गति और मुक्ति मिलती है। मनुष्‍य के लिए सबसे बड़ा धर्म है सत्य बोलना या सत्य का साथ देना और सबसे बड़ा अधर्म है असत्य बोलना या असत्य का साथ देना। कहते भी हैं कि राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत्य है।
 
20. 4 आश्रम और 4 पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को साधने के लिए ही प्राचीन काल से ही 4 आश्रम परंपरा चली आ रही है। इसका पालन करने से जीवन अच्छे से मैनेज होकर अपने मुकाम तक पहुंच जाता है। सही समय पर शिक्षा, सही समय पर नौकरी, सही समय पर विवाह, सही समय पर संतान सुख और सही समय पर कर्तव्यों का पालन करते हुए उससे मुक्त होकर धर्म की ओर कदम बढ़ाकर मोक्ष प्राप्त करना ही अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। 
 
ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। धर्म से मोक्ष और अर्थ से काम साध्‍य माना गया है। ब्रह्मचर्य और गृहस्थ जीवन में धर्म, अर्थ और काम का महत्व है। वानप्रस्थ और संन्यास में धर्म प्रचार तथा मोक्ष का महत्व माना गया है।
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