बहुचर्चित आरुषि कांड : न्याय मिला मगर...
- स्मृति आदित्य
सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले के बाद आरुषि की आत्मा इस समय खुश हो रही होगी या कराह रही होगी? तमाम असुरक्षित असभ्य माहौल में एक बेटी जिस घरौंदे में दुबक कर सोती है, एक नन्ही चिड़िया जहां सबसे ज्यादा प्यार और अपनत्व की गर्माहट महसूस करती है कैसे वहीं पर 'खूनी' कांटे निकल आए....जन्मदाता के दोषी पाए जाने पर न्याय की राहत अनुभव करेगी या फिर एक बार अपने ही माता-पिता के निर्मम हाथों को याद करते हुए मर जाएगी? एक स्त्री जब मां बनती है तब अपनी पूरी शक्ति अपने कोमल शिशु की सुरक्षा में लगा देती है लेकिन क्या जब वही शिशु उसकी आशा के अनुरूप व्यवहार न करें तो उसे खत्म कर देती है... कैसे भूल जाती है कि वह मां है? नहीं, अगर ऐसा होता है तो मानव सभ्यता में ऐसे किस्से कलंक-कथा के रूप में दर्ज होते हैं। अधिकांश मामलों में बच्चे हमेशा ही निर्दोष होते हैं। क्योंकि बच्चे तो अंतत: माता-पिता के ही संस्कारों का प्रतिबिंब होते हैं। वह वही दोहराते हैं जो वह अपने से बड़ों का देखते-सुनते-समझते हैं। माता-पिता की जैसी परवरिश होती है वह उसी का प्रतिफल देते हैं। अफसोस की बच्चों की तरफ से बोलने वाली अब तक कोई ऐसी अदालत नहीं बनी है जो उनके अधिकारों की सही रूप में रक्षा कर सके। उन्हें कृतघ्न बोलने के लिए पूरा समाज खड़ा है पर माता-पिता को दायित्वों का पाठ पढ़ाने के लिए कोई 'शाला' नहीं बनी है।