1. सामयिक
  2. »
  3. विचार-मंथन
  4. »
  5. विचार-मंथन
  6. देख तेरे जाने से यहां हर आंख रो रही है
Written By WD

देख तेरे जाने से यहां हर आंख रो रही है

दामिनी के लिए फेसबुक पर संदेश

फेसबुक
FILE
संजय पटेल-
मैं उसे सिर्फ़ दामिनी नहीं दामिनी भारतीय नाम देना चाहूंगा। उसकी मृत्यु ने ये तो बता दिया है कि इस देश के हुक्मरान अवाम को टेक इट फार ग्रांटेड न लें। हां ये भी कहना चाहूंगा कि इस जन-आक्रोश के पीछे यदि कोई राजनैतिक कुचक्र नहीं है तो इसे हल्के से न लिया जाए....ऐसी आवाज़ें ही सोई सत्ता को झकझोरती है.....और यह भी ध्यान रहे कि आवाज़ उठाने वाले..आप...मैं.....हम सब किसी बेबस दामिनी भारतीय को इस तरह लुटते देखें तो उसी वक़्त सहयोग का हाथ उठाएं....वरना हम सब भी भी सवालों के घेरे में होंगे.आइए ! हाथ उठाएं....हम भी...

Sudha Arora
दामिनी मामले ने सामने आकर बताने का हौसला दिया -
डोंबिवली,मुंबई-29 दिसम्बर, 2 साल पहले अपने माता-पिता में तलाक के बाद, अपने 20 वर्षीय भाई और 49 वर्षीय पिता से, दो साल से लगातार उनकी हवस का शिकार होती और बोलने पर जान से मारे जाने की धमकी झेलती 18 वर्षीय लड़की ने आखिर अपना मुंह खोलने का निर्णय लिया! दोनों बाप-बेटे को गिरफ्तार कर कल्याण कोर्ट में पेश किया गया। 3 जनवरी तक वे हिरासत में हैं। पर उसके बाद....?

* दामिनलिए- उस बहादुर बच्ची को सलाम जो जीना चाहती थी .... !

Rajshekhar Vyas

if u can send my daughter to singapur for better treatment!!!! i suggest pl. send accused to saudi arabia for bettar justice.

Sachin Kumar Jain

जलने लगी हैं अफ़सोस की आग चौराहों पर
अब इस आग को अपने दिलों में जलाना होगा
गुस्सा जो पनप रहा है सरकारों के खिलाफ
उसे संभाल कर अपने घरों में लाना होगा
हम जिन्दा हैं तुम्हारे कोई उपनिवेश नहीं
हर पुरुष को हमारे होने का अहसास कराना होगा;;


* मैं तो कहता हूं कोई खुश न रहने पाए, हो रहा है वह और खुश हो ताकि भड़कती आग में उन हथियारों को जलाया जा सके जिनसे दामिनी नाम की अनाम लड़की को मारा गया।

Pramod Singh

लोगों को राष्‍ट्रीय शर्म और तकलीफ़ में सहभागिता से रोकने वालों ढीठ बेहया राजतंत्रियों, अच्‍छा हो तुम्‍हारी आज की नालायकी का जवाब लोग छब्‍बीस जनवरी को अपनी ओर से धारा एक सौ चवालीस लगाकर दें.. पुलिस के डंडों की छांह में अकेले मनाओ अपना उत्‍सव, जिसमें सिर्फ़ तुम्‍हारा तंत्र हो.. गण एक झांकने न जाए!

मुकेश ठन्ना

दामिनी......
मां तेरे वापस आने की बाट जोह रही है ,,
खिलखिला के हंस दे तू अब क्यों सो रही है ,,
उठ जा पगली हर कोई तेरे ही इन्तजार में ,,
देख तेरे जाने से यहां हर आंख रो रही है ,,

संजय वर्मा 'दृष्टि'

बेटी बचाओं

बेटियों को कहां छुपाये
यहां तो दरिंदों की भरमार है
मर रही है बेटियां
... यहां सुरक्षा का कहना बेकार है
आंसू टपक रहे है
ये है खून के आंसू लालदार है
मिल जाये वहशी
फांसी की रस्सी के हक़दार है
जग सुना बेटी के बिना
नयन आंसू के पहरेदार है
कुछ तो करना होगा
नहीं तो ये जीवन बेकार है
बेटियों की सुरक्षा
पर जीवन न्योछावर है
कानून को कड़ा करो
यही सरकार से दरकार है..

Manoj Limaye

देश में गर बेटियां मायूस और नाशाद हैं
दिल पे रख के हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है

Swaraangi Sane

ढाई साल की फलक पर हुए अत्याचार से शुरू हुआ सिलसिला दामिनी का दर्द दे गया
ये साल यूं बीता पर बस अब और नहीं
आने वाला कोई साल यूं न आए

मुकेश ठन्ना

देख कर ये वहशियाना हरकते शैतान की .....
ढांक ली फिर से कफ़न ने आबरू इन्सान की
(युनुस अली की कलम से)