दिल्ली गैंग रेप : दामिनी को मिला इंसाफ, चारों को फांसी
दिल्ली गैंगरेप के सभी आरोपी मुकेश, विनय, अक्षय और पवन को कोर्ट कुल 13 धाराओं में दोषी करार दे चुकी है। इनमें रेप, हत्या, सबूत मिटाने की कोशिश, आपराधिक साजिश जैसी तमाम धाराएं थी। आज चारों अपराधियों को फांसी की सजा सुनाई गई है। यह वक्त राहत का है लेकिन दर्द है कि रह-रह कर रिस रहा है। फैसले की खुशी है लेकिन दामिनी की शहादत के लिए शब्द मौन है। हर अनुभूति नि:शब्द है। राहत है कि आखिर हुआ फैसला। चारों को फांसी की सजा सुनाई गई है। लेकिन दर्द है कि रह गया वह दरिंदा जिसे नाबालिग होने का मिला लाभ। कैसे इस फैसले पर खुश हुआ जाए? एक छोटी-सी बात जो सारी दुनिया को समझ आ रही है कि जो लड़का बलात्कार जैसे कृत्य में शामिल हो सकता है वह भला नाबालिग कैसे हो सकता है। जिसे यह समझ(?) आ गई है कि किसी लड़की के साथ किस हद तक नीचता को पार कर दुष्कृत्य किया जा सकता है भला वह कैसे हुआ नाबालिग? खुद दामिनी की मां ने बार-बार कोर्ट में यह गुहार लगाई थी कि सबसे ज्यादा घिनौनी हरकत करने वाले को न बख्शा जाए। दामिनी की मां ने यह भी बताया था कि कोर्ट में सबसे ज्यादा बेखौफ वही नजर आता था। उसे तो फांसी से कम मिलना ही नहीं था। लेकिन अफसोस कि उसे बख्श दिया गया। सवाल इन चारों का भी है कि फांसी की सजा तो इन्हें दे दी गई है मगर फांसी इतनी खामोशी से न दे दी जाए कि देश में विरोध में बना माहौल अपमानित हो जाए। बहरहाल, एक लड़ाई जीत ली गई इस संदेश के साथ कि इस देश में स्त्री के सम्मान को कमतर नहीं माना जाता है। भविष्य में अब ऐसी घटना नहीं होगी... काश कि ऐसा कह सकते मगर फिर भी यह जरूर कह सकते हैं कि अब स्त्री की आबरू को छला जाना किसी भी रूप में क्षम्य नहीं होगा। चारों हत्यारे और बलात्कारी मुकेश, विनय, अक्षय और पवन की फांसी के बाद देश भर में फैल रहे उन जैसे असंख्य अपराधियों को भी यह समझ लेना चाहिए उनकी नृशंसता उन्हें कहां तक ले जा सकती है। फिलहाल, दामिनी के लिए दो बूंद आंसू नहीं दो शब्द बुलंदी के दीजिए... यकीनन देश की हर 'दामिनी' को अच्छा लगेगा....