ये कैसी राह है प्यार की
प्रेम कविता
रेखा भाटिया क्यों छिप रहा मन मेरा मुझसे ढूँढे किसी सुकून को,आशाओं के दीप जलाए मन खोजे तुम्हें यहाँ-वहाँ,गीत फुट पड़े भाव चल पड़े,थमती हैं देखो मेरी अभिलाषाएँ कहाँ,यादों में तेरी बातों में तेरी,कोई ऐसा जादू चल गया,बस में नहीं है यहाँ कुछ भी मेरे,इधर-उधर न जाने कहाँ मैं भटक रहा,ये कैसी राह है प्यार की,मैं जिन राहों पर हूँ चल पड़ा,बजता है संगीत यहाँ चारों ओर,मन खोजे उस भीनी-भीनी खुशबू को,जिसका अहसास मेरे चारों ओर छा गया,मैं मुसाफिर हूँ तो कौन-सी मंजिल है मेरी ,मेरे कदम किन दिशाओं की ओर चल दिए,पवन के वेग-सा मन मेरा मुझे संग ले उड़ा,किन राहों पर ढूँढूँ मैं तुम्हें,आज मुझे मेरा अहसास भी न रहा,न जाने क्या मैं महसूस करूँ ,मुझे कुछ भी इसका भान न रहा,ये दर्द है या है मुस्कान,ये चुभन है या है मुझमें कोई प्राण,ये जीवन है या ख्वाबों में मैं जी रहा,किस राह, किस डगर किस मंजिल की ओर बढ़ रहा,मैं जिंदा हूँ या मर गया,तेरा अहसास मुझे दीवाना कर गया,ये प्यार है तड़प है,सीने में लगती चुभन है वेग है,तूफान है या ठंडी धूप-सी छाँव है,मुझे कोई समझाए,कोई मुझे बतलाए,मैं इस ज्वार-भाटे में ही बह गया,क्यों छिप रहा मन मेरा मुझसे कहाँ ढूँढे किसी सुकून को।