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Last Updated : शुक्रवार, 24 जनवरी 2020 (15:21 IST)

गणतंत्र को क्यों नहीं बनाया जा सकता है गुणतंत्र?

Republic Day | गणतंत्र को क्यों नहीं बनाया जा सकता है गुणतंत्र?
नदी बहती है तो स्वच्छ, सुंदर और पवित्र लगती है लेकिन रुक जाती है तो उसका पानी सड़ांध मारने लगता है। एक प्रसिद्ध और महान राजा ने पहाड़ से गिरे पत्थर को सड़क पर से हटाकर सड़क के किनारे रखवा दिया था।सदियों बाद जब सड़क को नई बनाकर चौड़ा करने की बात हुई तो इंजीनियर लोग उस पत्‍थर को हटवाने लगे। लेकिन लोग सड़क पर उतर आए और कहने लगे कि यह तो पवित्र पत्‍थर है। हमारे बाप-दादाओं ने इसे यहां रखवाया था। आप इसे हटा नहीं सकते। यदि हटाया तो अंदोलन कर देंगे। बस, फिर क्या था आज भी वह पत्थर वहीं पड़ा हुआ है।
 
 
इसी तरह इस देश के हर समाज के पास अपने-अपने पत्थर है। क्योंकि इस देश के कर्णधारों और महापुरुषों को भी जातियों में बांट दिया गया है। जैसे मान लो कि अब यदि किसी महापुरुष ने कोई कार्य उस काल की तात्कालीन परिस्थिति के अनुसार किया है और अब उसे बदलने का वक्त है तो नहीं बदला जा सकता, क्योंकि यदि आप उसे बदलने गए तो उस महापुरुष की जातिवाले लोग सड़कों पर उतर आते हैं।
 
इसलिए अब हमें कुछ भी बदलना नहीं है लेकिन लोककंत्र के महत्व को समझकर उसे और अच्‍छा बनाने की आवश्यकता है। बात महत्व की है तो यह कहना जरूरी है कि दुनिया का कोई भी धार्मिक कानून मनुष्‍य की स्वतंत्रता से ऊपर नहीं होना चाहिए। लादी गई व्यस्था और तानाशाह कभी दुनिया में ज्यादा समय तक नहीं चल पाया। माना कि लोकतंत्र की कई खामियां होती है, लेकिन तानाशाही या धार्मिक कानून की व्यवस्था व्यक्ति स्वतंत्रता का अधिकार छीन लेती है, यह हमने देखा है। जर्मन और अफगानिस्तान में क्या हुआ सभी जानते हैं। सोवियत संघ क्यों बिखर गया यह भी कहने की बात नहीं है। चीन यदि खुद को नहीं बदलता तो उसका हाल भी सोवियत संघ जैसा ही होता। 
 
भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं और इस दौरान लोगों में लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति असंतोष भी व्याप्त होता गया। असंतोष का कारण भ्रष्ट शासन और प्रशासन तथा राजनीति का अपराधिकरण रहा हैं। भारत में बहुत से ऐसे व्यक्ति और संगठन हैं जो भारतीय संविधान के प्रति श्रद्धा नहीं रखते। इस अश्रद्धा का कारण हमारा संविधान नहीं है। दरअसल, दुनिया के हर संविधान में थोड़ी बहुत खामियां हो सकती हैं और उसे समय समय पर सुधारा भी गया है। वर्तमान में हमें और भी कुछ सुधारों की जरूरत हो सकती है।
 
 
यदि लोककंत्र को भीड़तंत्र, मनमानी तंत्र, जातितंत्र, सांप्रदायिकतंत्र और भ्रष्ट व्यवस्था से बचाना है तो हमें इसका आधार गुणतंत्र बनाना होगा। प्राचीनकाल के हमारे संतों ने गुणतंत्र के आधार पर गणतंत्र की कल्पना की थी, लेकिन हमारे इस गणतंत्र में कोई अंगूठा टेक भी प्रधानमंत्री बनकर हमारी छाती पर मूंग दल सकता है। यह हालात किसी तानाशाही तंत्र से भी बुरे हैं। न ढंग से जी रहे हैं और न मर रहे हैं। निश्चित ही अब लोग सोचने लगे हैं कि या तो गणतंत्र बदलो या चुनाव प्रक्रिया को सुधारों।
 
 
वोटतंत्र नहीं गुणतंत्र हो : दरअसल, गणतंत्र की सारी गड़बड़ी वहां से प्रारंभ होती जहां गणतंत्र को वोट का आधार मान लिया गया। गणतंत्र को गुणों पर आधारित किया जाए। यदि ऐसा होगा तो किसी आईएस के ऊपर कोई अनपढ़ विधायक, सांसद या अफसर नहीं बैठ पाएगा। हम अपनी जिंदगी खफा दें प्रोफेसर या कलेक्टर बनने में और वह हमारे ऊपर बैठ जाए जातिवाद, दंगे या झूठ फैलाकर। क्यों नहीं विधायक, सांसदों की पहले आईएस लेवल की परीक्षा हो, फिर चुनाव लड़ने का अधिकार मिले? समाजसेवा के नाम पर लोग कैसे नेता बन जाते हैं? ये सभी अपने अपने समाज के प्रतिनिधि हैं देश के नहीं।

 
चुनाव में लाखों रुपया खर्च होता है। जातियां ब्लैकमेल करने लगी है। सभी को चाहिए आरक्षण, सुविधा, धन, मकान, ऋण, शक्ति और पद। भाईसाब किसे मालूम है कि मंदिर के सामने एक महिला भूख से मर गई? फूटपाथ पर सोया व्यक्ति ठंड से मर गया और लोगों को पता ही नहीं चला। तीन साल की बच्ची के रैप की घटनाओं से अब लोगों को फर्क नहीं पड़ता क्योंकि आए दिन यह छपता रहता है तो अब संवेदनाएं भी मर गई है। 16 दिसंबर 2012 से अब तक कुछ नहीं बदला है।
 
 
सवाल यह है कि कब हम गणतंत्र की अहमियत समझेंगे? कब हम इसे गुणतंत्र में बदलेंगे? कब हम जातिवादी सोच से बाहर निकलकर एक राष्ट्रीय सोच को अपनाएंगे? वह दिन कब आएगा जबकि अच्छा काम करने वाले सत्तापक्ष को विपक्ष का समर्थन मिलेगा? वह दिन कब आएगा जबकि शिक्षा के बारे में जानने वाला ही शिक्षामंत्री और रक्षा के बारे में ज्ञान रखने वाला ही रक्षामंत्री बनेगा? निश्चित ही कभी तो 26 जनवरी जैसी गणतंत्र में भी सुहानी सुबह होगी।
 
 
गणतंत्र की जय हो : हमें विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने का गर्व है। हमारा लोकतंत्र धीरे-धीरे परिपक्व हो रहा है। हम पहले से कहीं ज्यादा समझदार होते जा रहे हैं। धीरे-धीरे हमें लोकतंत्र की अहमियत समझ में आने लगी है। सिर्फ लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही व्यक्ति खुलकर जी सकता है। स्वयं के व्यक्तित्व का विकास कर सकता है और अपनी सभी महत्वाकांक्षाएं पूरी कर सकता है।
 
जो लोग यह सोचते हैं कि इस देश में तानाशाही होना या कट्टर धार्मिक नियम होने चाहिए वे यह नहीं जानते कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में क्या हुआ। सीरिया, इराक में क्या हुआ। फ्रांस, जर्मन, सोवियत संघ में क्या हुआ। यह भी सोचा जाना चाहिए कि चीन में क्या हो रहा है। वहां की जनता खुलकर जीने के लिए तरसती रही है। ये सिर्फ नाम मात्र के देश हैं।
 
हमारा समाज परिवर्तित हो रहा है। मीडिया जाग्रत हो रही है। जनता भी जाग रही है। युवा सोच का विकास हो रहा है। शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है। टेक्नोलॉजी संबंधी लोगों की फौज बढ़ रही है। इस सबके चलते अब देश का राजनीतिज्ञ भी सतर्क हो गया है। ज्यादा समय तक शासन और प्रशासन में भ्रष्टाचार, अपराध और अयोग्यता नहीं चल पाएगी तो हमारे भविष्य का गणतंत्र गुणतंत्र पर आधारित होगा, इसीलिए कहो....गणतंत्र की जय हो।