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Written By ND

कसमसाता कश्मीर लहलहाता पंजाब

बुलंद भारत की नई इबारत : उत्तर भारत

कसमसाता कश्मीर लहलहाता पंजाब -
संदीप चंसौरिय
आजादी के बाद भारत ने छः दशक बिता दिए। खान-पान बदला, रहन-सहन बदल गया। फिजा बदली तो फसाने, रुत बदली तो रूतबा और पानी भी बदला तो परंपराएँ भी बदल गईं। नहीं बदला तो देश का आम आदमी, उसकी मजबूरी और भुखमरी। विकास का पहिया घूमा तो दक्षिण आगे निकल गया और पूर्वोत्तर पिछड़ता चला गया। पंजाब निरंतर आगे बढ़ रहा है तो कश्मीर में पल भर के लिए सुकून नहीं है।

गुजरात कुलाँचे भर रहा है तो उड़ीसा की साँसें उखड़ रही हैं। गोआ के युवा मॉडर्न बन रहे हैं तो चंडीगढ़वासी भी पीछे नहीं हैं। बिहार पटरी पर आ रहा है तो झारखंड की गाड़ी नीचे उतर गई है। अबूझमाड़ के आदिवासी अभी तक जीना नहीं सीख पाए तो पूर्वोत्तर में उल्फा के आतंकी लोगों को सुख से जीने नहीं दे रहे हैं। कुछ इलाकों के लोग इतने एडवांस हो रहे हैं कि उनके लिए भारत अब इंडिया बन गया है तो कुछ अभी आजादी का स्वाद भी नहीं चख पाए हैं। हरियाणा में दूध की नदियाँ बह रही हैं तो देश के ज्यादातर हिस्सों में पीने का पानी भी नसीब नहीं हो रहा है। आजादी के छः दशक बाद के भारत की यही है असली तस्वीर।

कसमसाता कश्मीर लहलहाता पंजाब

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बर्फ की मखमली चादर, गगन छूते देवदार के झुंड, चाँदनी रात में जगमग पर्वत मालाएँ, फूलों का गुलिस्ताँ और मनोरम डल झील। प्रकृति ने इसे सँवारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं धरती के स्वर्ग, देवों की भूमि कश्मीर की, जो आजादी के छः दशक बाद भी दिल खोलकर साँस लेने को तरस रहा है। एक तरफ चप्पे-चप्पे पर लाखों संगीनों का पहरा तो दूसरी तरफ आतंकियों का खौफ। ऐसे में हम सीधे विकास की बात करें तो बेमानी होगी। कश्मीर आज भी भारत से पूरी तरह कटा हुआ है। यहाँ अलग संस्कृति, रहन- सहन, खान- पान, भाषा तो है ही, यहाँ के बाशिंदे भी खुद को भारतीय नहीं, कश्मीरी मानते हैं।

दरअसल, अलगाव की मुख्य वजह जम्मू व श्रीनगर के बीच 294 किलोमीटर का वो दुर्गम पहाड़ी फासला है, जो पिछले छः दशकों में आसान नहीं बनाया जा सका। आज जम्मू से श्रीनगर पहुँचने में बस से कम से कम 12 घंटे लगते हैं। हाँ, जिस दिन बारामुला से उधमपुर तक की रेल परियोजना पूरी हो जाएगी, उस दिन वास्तव में कश्मीर में सर्वांगीण विकास का श्रीगणेश हो जाएगा। यह रेल लाइन कश्मीर की लाइफ लाइन होगी। यानी उत्तर भारत में विकास की हालत देखना है तो इसकी शुरुआत जम्मू से होती है।

वैष्णोदेवी धाम जम्मू के लिए पिछले दो दशकों में वरदान साबित हुआ। इसकी बदौलत पर्यटन उद्योग यहाँ दिन दूना, रात चौगुना बढ़ा। साथ ही ड्रायफ्रूट का कारोबार पूरे देश से फैल गया। विकास के इस दौर ने यहाँ के रहवासियों की लाइफ स्टाइल तो बेहतर बनाई, लेकिन उनमें अलगाव का बीज भी बो दिया। वे अब कश्मीर से जुदा रहना चाहते हैं। यदि हम मूलभूत सुविधाओं की बात करें तो बिजली, पानी की व्यवस्था बेहद खराब है, लेकिन शानदार सड़कों ने जम्मू को पूरे देश से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है।

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उधर, पंजाब का नजारा बिलकुल ही बदला नजर आता है। छोर ना दिखने वाली खेतों में बिछी हरियाली चादर, सरपट जीटी हाइवे, शानदार कोठियाँ, अतिथि देवो भवः की संस्कृति जहाँ इसकी पहचान है, तो वहीं संघर्ष और सफलता इसका इतिहास। पंजाब आजादी से लेकर अब तक तीन बार बना और बिगड़ा, लेकिन हर बार वह औरों से आगे निकला। चाहे बात खेती की हो, उद्योगों की हो, मौज-मस्ती की हो, आम जरूरतों की या फिर देश रक्षा की।

पंजाब के पठानकोट, अमृतसर, जालंधर और लुधियाना वो शहर है, जो उद्योगों से राज्य को समृद्ध बना रहे हैं। वहीं शेष पंजाब पूरे देश का पेट भरने के लिए अन्न पैदा करने का माद्दा रखता है। यह जरूर है कि इस शेरदिल सूबे को अब नशा जकड़ता जा रहा है। इधर हरियाणा स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक रूप समृद्ध हो चला है। दोनों राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाला देश का एकमात्र प्लांड शहर चंडीगढ़ दोगुने विस्तार के साथ ग्रीन व स्मोक फ्री सिटी भी बन चुका है।

यूँ तो दिलवालों की दिल्ली से कोई अनजान नहीं है, लेकिन यह बात शायद बहुत कम लोग जानते हैं कि दिल्ली की असली रौनक चाँदनी चौक बाजार से है, जहाँ रोजाना अरबों का व्यापार होता है। यह जरूर है कि विकास की दौड़ में हरी- भरी दिल्ली कांक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुकी है, वहीं आबादी के सैलाब ने इसे बुरी तरह जकड़ लिया है। हिमाचल प्रदेश में विकास की गति मंथर दिखाई पड़ी। हरिद्वार को आज भी पर्यटन या धार्मिक नगरी की तरह विकसित नहीं किया जा सका। जबकि यहाँ से 34 किलोमीटर दूर मसूरी पर्यटन स्थल है। इधर उत्तरप्रदेश में प्रवेश करते ही विकास का बिगड़ैल स्वरूप देखने को मिलता है। लखनऊ की बसाहट को दो हिस्सों में बाँटकर उसे बेनूर कर दिया गया। कमोबेश यही हालात बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी के भी हैं, जिसके समृद्ध घाट अब अपनी रौनक खोते जा रहे हैं। विश्व प्रसिद्ध काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की विद्वता की चमक फीकी हो चली है।