शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
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भगवान शिव के नामों के यह रहस्य आपको अचरज में डाल देंगे, पढ़ें पौराणिक राज

भगवान शिव के नामों के यह रहस्य आपको अचरज में डाल देंगे, पढ़ें पौराणिक राज - Shiv ke naam
भगवान शिव अठारह नामों से पूजे जाते हैं जिनमें शिव, शम्भु, नीलकंठ, महेश्वर, नटराज आदि प्रमुख हैं। भगवान शिव अपने मस्तक पर आकाश गंगा को धारण करते हैं तथा उनके भाल पर चंद्रमा हैं। उनके पांच मुख माने जाते हैं जिनमें प्रत्येक मुख में तीन नेत्र हैं। भगवान शिव दस भुजाओं वाले त्रिशूलधारी हैं।
 
पुराणों में भगवान शिव के जिन अट्ठारह नामों का उल्लेख किया गया है उनमें पहला है- शिव। शिव शंकर अपने भक्तों के पापों को नष्ट करते हैं। पशुपति उनका दूसरा नाम है। ज्ञान शून्य अवस्था में सभी पशु माने गये हैं। शिव इसलिए पशुपति हैं क्योंकि वह सबको ज्ञान देने वाले हैं। शिव को मृत्युंजय भी कहा जाता है। मृत्यु से कोई नहीं जीत सकता। पर चूंकि शिव अजर और अमर हैं इसलिए उन्हें मृत्यंजय भी कहा जाता है। त्रिनेत्र रूप में भी उनकी पूजा की जाती है। कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव के दोनों नेत्र पार्वती जी ने मूंद लिए इससे पूरे विश्व में अंधकार छा गया। सब लोग जब व्याकुल हो उठे तो शिवजी के ललाट पर तीसरा नेत्र उत्पन्न हुआ। इससे तुरंत ही सारा अंधकार दूर हो गया।
 
शिवजी को पंचवक्त्र भी कहा जाता है। इस बारे में कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु ने कई मनोहर रूप धारण किये। इससे अनेक देवताओं को उनके दर्शनों का लाभ मिला। इसके बाद शिवजी के भी पांच मुख हो गये और हर मुख पर तीन-तीन नेत्र उत्पन्न हो गये। कृत्तिवासा के रूप में भी भगवान शिव को जाना जाता है। जो गज चर्म धारण करे उसे कृत्तिवासा कहा जाता है। महिषासुर के पुत्र गजासुर के कहने पर शिव जी ने उसका चर्म धारण किया था।
 
शितिकंठ के रूप में भी भगवान शिव की पूजा की जाती है। जिसका कंठ नीला हो उसे शितिकंठ कहा जाता है। खंडपरशु भी भगवान शिव का एक नाम है। कहा जाता है कि जिस समय दक्ष यज्ञ का ध्वंस करने के लिए भगवान शिव ने त्रिशूल को छोड़ा था तो वह बदरिकाश्रम में तपलीन नारायण जी को बेध गया। तब नर ने एक तिनके को अभिमंत्रित किया और उसे शिवजी पर चलाया। वह परशु के आकार में था। शिवजी ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले इसलिए उन्हें यह नाम मिला। इसके अलावा शिवजी को प्रमथाधिव, गंगाधर, महेश्वर, रुद्र, विष्णु, पितामह, संसार वैद्य, सर्वज्ञ, परमात्मा और कपाली के नामों से भी पूजा जाता है।
 
इनके अलावा भारत भर में भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंग हैं जिनकी विशेष रूप से पूजा की जाती है। इनमें सोमनाथ, मिल्लकाजुZन, महाकाल या महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर और अमलेश्वर, केदारनाथ, भीमशंकर, विश्वनाथ, त्र्यम्बेकश्वर, वैद्यनाथ धाम, नागेश, रामेश्वरम और घुश्मेश्वर आदि हैं। इन ज्योर्तिलिंगों की भक्त जन विशेष पूजा अर्चना करते हैं और शिवरात्रि पर तो इन ज्योतिर्लिंगों पर भक्तों का तांता लगा रहता है।
 
ब्रम्हा और विष्णु भगवान शिव में से ही उत्पन्न हुए हैं। एक बार भगवान शिव ने अपने वाम भाग के दसवें अंग पर अमृत मल दिया। वहां से एक पुरुष प्रकट हुआ। शिव ने उनसे कहा कि आप व्यापक हैं इसलिए विष्णु कहलाए जाओगे। तपस्या के बाद विष्णु जी के शरीर में असंख्य जलधाराणं फूटने लगीं। देखते ही देखते सब ओर जल ही जल हो गया। विष्णु जी ने उसी जल में शमन किया।
 
बाद में उनकी नाभि से एक कमल उत्पन्न हुआ। तब भगवान शिव ने अपने दाएं अंग से ब्रह्माजी को उत्पन्न किया। उन्होंने ब्रह्माजी को नारायण के नाभि कमल में डाल दिया। तभी हैरत से विष्णुजी और ब्रह्माजी एक दूसरे को देखने लगे। भगवान शिव ने कहा कि मैं, विष्णु तथा ब्रह्मा तीनों एक ही हैं। ब्रह्माजी सृष्टि को जन्म दें, विष्णुजी उसका पालन करें तथा मेरे अंश रुद्र उसके संहारक होंगे। इसी तरह सृष्टि का चक्र चलेगा। इसके बाद विष्णुजी और ब्रह्माजी ने भगवान शिव का पूजन किया। शिव ने कहा कि यही पहला शिवरात्रि पर्व है। यहीं से मेरे निराकार और साकार दोनों रूपों में पूजा मूर्ति तथा लिंग के स्वरूप में होगी।
 
भगवान शिव और पार्वती के विवाह का किस्सा भी बड़ा रोचक है। पार्वती ने इसके लिए कठोर तप किया। तप से प्रसन्न होकर आखिरकार भगवान शिव बूढ़े तपस्वी का रूप बनाकर पार्वती के पास गए। ब्राह्मण बनकर वह पार्वती के समक्ष जाकर शिवजी की बुराई करने लगे। पार्वती से यह सहन नहीं हुआ तो भगवान शिव ने उन्हें अपना असली रूप दिखाया और हंसने लगे और बोले- क्या तुम मेरी पत्नी बनोगी? पार्वती ने उन्हें प्रणाम किया और बोलीं- इस संबंध में आपको मेरे पिता से बात करनी होगी।
 
शिवजी ने तुरंत ही नट रूप धारण किया और पार्वती के घर जा पहुंचे। वहां पहुंचकर वह नाचने लगे। जब पार्वती के माता-पिता ने उन्हें रत्न और आभूषण देने चाहे तो उन्होंने मना कर दिया और पार्वती को मांगने लगे। इस पर उनके माता-पिता का क्रोध बढ़ गया और उन्होंने सेवकों से नट को बाहर निकालने को कहा। पर कोई भी उनको स्पर्श भी नहीं कर सका। इसके बाद शिवजी ने उन दोनों को अनेक रूपों में दर्शन दिए। इसके बाद भगवान शिव और पार्वती जी का विवाह संपन्न हुआ।