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Last Modified: बुधवार, 9 जनवरी 2019 (15:32 IST)

प्रयागराज कुंभ : इनकी बहियों के आगे कम्प्यूटर की भी नहीं कुछ बिसात, 500 पीढ़ियों से अधिक का लेखा-जोखा रखते हैं ये पुरोहित...

प्रयागराज कुंभ : इनकी बहियों के आगे कम्प्यूटर की भी नहीं कुछ बिसात, 500 पीढ़ियों से अधिक का लेखा-जोखा रखते हैं ये पुरोहित... - Prayagraj Kumbh 2018 Tirtha Purohit
प्रयागराज। बिरले ही होंगे जिन्हें अपनी तीन पीढ़ी के पहले के लोगों के नाम याद रहता होगा, लेकिन दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम कुम्भ में पुरोहितों के पास अपने यजमानों की 500 पीढ़ियों से अधिक का लेखा-जोखा मौजूद है।
 
पुरोहितों को केवल जजमान अपना नाम और स्थान का पता बताने की देरी होती है बस, शेष काम उनका होता है। वह आधे घंटे के अंदर कई पीढ़ियों का लेखा-जोखा सामने रख देते हैं। लाखों लोगों के ब्योरे के संकलित करने का यह तरीका इतना वैज्ञानिक और प्रमाणिक है कि पुरातत्ववेत्ता और संग्रहालयों के अधिकारी भी इससे सीख ले सकते हैं।
 
अत्याधुनिक दौर में भी पुरोहित अपने यजमानों राजा-महाराजाओं और मुस्लिम शासकों से लेकर देशभर के अनगिनत लोगों की पाच सौ वर्षों से अधिक की वंशावलियों के ब्योरे बहीखातों में पूरी तरह संभाल कर रखते हैं। तीर्थराज प्रयाग में करीब 1000 तीर्थ पुरोहितों की झोली में रखे बही-खाते बहुत सारे परिवारों, कुनबों और खानदानों के इतिहास का ऐसा दुर्लभ संकलन हैं जिससे कई बार उसी परिवार का व्यक्ति ही पूरी तरह वाकिफ नहीं होता है।
 
तीर्थपुरोहितों का कहना है कि राजपूत युग के पश्चात यवन काल, गुलाम वंश, खिलजी सम्राट के समय भी इन तीर्थ पुरोहितों की महिमा बरकरार रखी गई थी। अलाउद्दीन खिलजी द्वारा दिया गया माफीनामा का फरमान प्रयाग के तीर्थ पुरोहितों के पास यहां मौजूद है।
 
उनका कहना है कि इन पुरोहितों के खाता-बही में यजमानों का वंशवार विवरण वास्तव में वर्णमाला के व्यवस्थित क्रम में आज भी संजो कर रखा हुआ है। पहले यह खाता-बही मोर पंख बाद में नरकट फिर जी-निब वाले होल्डर और अब अच्छी स्याही वाले पेनों से लिखे जाते हैं। वैसे मूल बहियों को लिखने में कई तीर्थ पुरोहित जी-निब का ही प्रयोग करते हैं। टिकाऊ होने की वजह से सामान्यतया काली स्याही उपयोग में लाई जाती है। मूल बही का कवर मोटे कागज का होता है। जिसे समय-समय पर बदला जाता है। बही को मोड़कर मजबूत लाल धागे से बांध दिया जाता है।
      
उनका दावा है कि पुराने पुरोहितों के वंशजों के पास के पास ऐसे कागजात हैं जब अकबर ने प्रयाग के तीर्थ पुरोहित चंद्रभान और किशनराम को 250 बीघा भूमि मेला लगाने के लिए मुफ्त दी थी। यह फरमान भी उनके पास सुरक्षित है। पुराहितों की बहियों में यह भी दर्ज है कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई कब प्रयाग आई थीं। इनके पास नेहरू परिवार के लोगों के लेख और हस्ताक्षर भी मौजूद हैं।
 
उनका कहना है कि सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के बेटे अभिषेक बच्चन पत्नी ऐश्वर्या राय बच्चन के पिता कृष्णराज राय की अस्थि कलश को संगम में प्रवाहित करने आई थीं, तब भी यहीं के तीर्थ पुरोहितों ने इस संस्कार को पूर्ण कराया था।
 
प्रयागवाल के संरक्षक सुभाष पांडे ने बताया कि भगवान राम ने लंका विजय के प्रयाग में स्नान के बाद पुरोहित को दान देना चाहा, लेकिन ब्रह्महत्या का आरोप लगाकर उनसे किसी ने दान नहीं लिया। उसके बाद उन्हें अयोध्या के तत्कालीन कवीरापुर, बट्टपुर जिले के रहने वाले कुछ लोगों को ब्राह्मणों को यहां लाए और स्नान कर उन्हें दान दिया था।
    
उन्होंने बताया कि इन दस्तावेजों को संजोकर रखने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। बड़े-बड़े बक्सों में रखे मोटे-मोटे बहीखातों की साफ-सफाई करनी पड़ती है। दीमक और अन्य कीटों से बचाने के लिए फिनाइल की गोलियां अथवा अन्य कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग करते हैं। बहुत पुराने बहीखातों को फिर से नए बनाने पड़ते हैं क्योंकि एक नीयत समय तक ही कागज की स्थिति बनी रहती है, उसके बाद वह गलने और टूटने लगता है।
 
पांडे ने बताया कि यह उनका पुश्तैनी पेशा है और वे अपने इस पेशे के माध्यम से बाहर से आने वाले यजमानों को अधिक से अधिक सुविधा प्रदान करने का प्रयास करते हैं। इसी के सहारे उनके परिवार का सालभर का खर्चा चलता है। इसीलिए इसको वह बड़ी शिद्दत से निभाते हैं। इलाहाबाद में करीब 1000 पंडा परिवार धर्मकांड से अपनी आजीविका चला रहे हैं।
 
किला मार्ग के तीर्थ पुरोहित मुन्ना भैय्या ने बताया कि उनके पास मध्यप्रदेश के कई स्टेट के राजघाराने के यजमानों के 150 वर्ष पुराना बहीखाता मौजूद हैं। इनके पास अजयगढ़ स्टेट, विजवर स्टेट, खनियादान स्टेट और गरौली स्टेट के अधिनस्थ क्षेत्र है। उन्होंने बताया कि अजयगढ़ स्टेट के राजा भोपाल सिंह, रंजौर सिंह देवेन्द्र सिंह के वंशज, विजवर स्टेट के राजा महाराणा सावन सिंह, खनियादान स्टेट के राजा खलन सिंह, कौशलेन्द्र सिंह एवं गरौली स्टेट के राजा पुष्पेन्द्र सिंह, कैप्टन चन्द्रभान सिंह के वंशज आज भी इनके यहां आते हैं।
 
मुन्ना ने बताया कि पन्ना स्टेट और अजयगढ़ स्टेट मिलकर अब पन्ना जिला बन गया है। पन्ना स्टेट के पवई, अमानगंज समेरिया आदि तथा अजयगढ़ स्टेट के गुनौर, सलेहा, देवेन्द्र नगर समेत आसपास के सभी क्षेत्रों के लोग किसी प्रकार धार्मिक या संस्कार वाले कर्म इन्ही के पास आते हैं।
 
उन्होंने बताया कि बहीखाते का कवर लाल रंग का बनाया जाता है, क्योंकि लाल रंग पर कीटाणु का असर नहीं होता है। तीर्थ पुरोहित बहियों की तीन कॉपी तैयार करते हैं। एक घर में सुरक्षित रहती है। दूसरी घर पर आने वाले यजमानों को दिखाई जाती है। तीसरी तीर्थ स्थल पर लोहे के संदूक में रखी जाती है। सामान्यतः तीर्थ पुरोहित अपने संपर्क में आने वाले किसी भी यजमान का नाम-पता आदि पहले एक रजिस्टर या कापी में दर्ज करते हैं। बाद में इसे मूल बही में उतारा जाता है। यजमान से भी उसका हस्ताक्षर उसके द्वारा दिए गए विवरण के साथ ही कराया जाता है। बही की शुरुआत में बाकायदा अनुक्रमणिका भी होती है।
 
तीर्थ पुरोहित भैय्या ने बताया कि गया में पितरों का श्राद्ध करने के लिए कभी भी कोई गया होगा तो उसकी भी इत्तिला इन पंडों के बहीखातों से पलक झपकते ही मिल जाएगी। पंडा समाज में इस हाईटेक युग में भी बहियों के आगे कम्प्यूटर की बिसात कुछ भी नहीं है। यही वजह है कि पंडे अपने बहीखातों का इलेक्ट्रानिक डाकूमेंटकशन कराने को तैयार नहीं है।
 
उनका कहना है कि पुरोहितों की बिरादरी के बीच सूबे के जिले ही नहीं, देश के प्रांत भी एकदम व्यवस्थित ढंग से बंटे हुए हैं। अगर किसी जिले का कुछ हिस्सा अलग कर नया जिला बना दिया गया है तो भी तीर्थ यात्री के दस्तावेज मूल जिला वाले पुरोहित के नियंत्रण में ही रहते हैं। (वार्ता)
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