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Last Updated : मंगलवार, 8 मार्च 2022 (14:18 IST)

होलाष्टक के 5 रहस्यमय कारण और 8 अशुभ दिन के 10 शुभ उपाय

होलाष्टक के 5 रहस्यमय कारण और 8 अशुभ दिन के 10 शुभ उपाय - Holashtak pauranik katha and upay
Holashtak 2022: 10 मार्च 2022 से प्रारंभ हो रहा है होलाष्टक। फाल्गुन माह में शुक्ल अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक यानी होलिका दहन के दिन तक 8 अशुभ दिन माने गए हैं, जिसे होली अष्टक यानी होलाष्‍टक कहते हैं। मान्यता है कि होलाष्टक में कुछ विशेष उपाय करने से कई प्रकार के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। आओ जानते हैं होलाष्टक की 20 कहानियां और 8 अशुभ दिन के 10 शुभ उपाय।
 
 
होलाष्टक की कहानियां और कारण :
 
1. पहली कथा भक्त प्रहलाद की- इस कथा के अनुसार भक्त प्रहलाद को उसके पिता ने हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र की भक्ति को भंग करने और उसका ध्यान अपनी ओर करने के लिए लगातार 8 दिनों तक तमाम तरह की यातनाएं और कष्ट दिए थे। इसलिए कहा जाता है कि, होलाष्टक के इन 8 दिनों में किसी भी तरह का कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। यह 8 दिन वहीं होलाष्टक के दिन माने जाते हैं। होलिका दहन के बाद ही जब प्रहलाद जीवित बच जाता है, तो उसकी जान बच जाने की खुशी में ही दूसरे दिन रंगों की होली या धुलेंड़ी मनाई जाती है।
 
 
2. दूसरी कथा कामदेव के भस्म होने की- इस कथा के अनुसार हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान भोलेनाथ से हो जाए परंतु शिव जी अपनी तपस्या में लीन थे। तब कामदेव पार्वती की सहायता के लिए आए। उन्होंने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई। शिव जी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी। कामदेव का शरीर उनके क्रोध की ज्वाला में भस्म हो गया। फिर शिव जी ने पार्वती को देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई और शिव जी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इसीलिए पुराने समय से होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर अपने सच्चे प्रेम का विजय उत्सव मनाया जाता है। जिस दिन भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था वह दिन फाल्गुन शुक्ल अष्टमी थी। तभी से होलाष्टक की प्रथा आरंभ हुई। जब कामदेव की पत्नी शिव जी से उन्हें पुनर्जीवित करने की प्रार्थना करती है। रति की भक्ति को देखकर शिव जी इस दिन कामदेव को दूसरा जन्म में उन्हें फिर से रति मिलन का वचन दे देते हैं। कामदेव बाद में श्री कृष्ण के यहां उनके पुत्र प्रद्युम्न रूप में जन्म लेते हैं।
 
3. श्रीकृष्‍ण और गोपियां : कहते हैं कि होली एक दिन का पर्व न होकर पूरे आठ दिन का त्योहार है। भगवान श्रीकृष्ण आठ दिन तक गोपियों संग होली खेले और धुलैंडी के दिन अर्थात होली को रंगों में सने कपड़ों को अग्नि के हवाले कर दिया, तब से आठ दिन तक यह पर्व मनाया जाने लगा।
 
4. मौसम परिवर्तन : ज्योतिषियों के अनुसार इन आठ दिनों में मौसम परिवर्तित हो रहा होता है, व्यक्ति रोग की चपेट में आ सकता है और ऐसे में मन की स्थिति भी अवसाद ग्रस्त रहती है। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से नेचर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश हो जाता है। 
 
5. आठ ग्रह होते हैं उग्र : ज्योतिष विद्वानों के अनुसार अष्टमी को चंद्रमा, नवमी तिथि को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र और द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव के हो जाते हैं। इन ग्रहों के निर्बल होने से मनुष्य की निर्णय क्षमता क्षीण हो जाती है। इस कारण मनुष्य अपने स्वभाव के विपरीत फैसले कर लेता है। यही कारण है कि व्यक्ति के मन को रंगों और उत्साह की ओर मोड़ दिया जाता है। इसलिए शुभकार्य वर्जित माने गए हैं। होलाष्टक के आठ दिनों को व्रत, पूजन और हवन की दृष्टि से अच्छा समय माना गया है।
10 शुभ उपाय :
 
1. होलाअष्टक के दौरान 8 ग्रह उग्र रहते हैं। अत: ऐसे में सभी को पीड़ाहर स्तोत्र (Navgrah Peedahar Stotra) या नवग्रह कवच मंत्र (Navgrah Kavach Mantra) का पाठ करना चाहिए। साथ ही नवग्रह की कृपा प्राप्ति हेतु भगवान शिव का पंचामृत अभिषेक करें।
 
2. होलाष्टक के दौरान श्रीसूक्त व मंगल ऋण मोचन स्त्रोत का पाठ करना चाहिए जिससे आर्थिक संकट समाप्त होकर कर्ज मुक्ति मिलती है। 
 
3. रोग से बचने के लिए होलाष्टक के दौरान शिव पूवा और महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान प्रारम्भ करवाएं, बाद में हवन करें।
 
4. परिवार की समृद्धि, सुख शांति हेतु रामरक्षास्तोत्र, हनुमान चालीसा व विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
 
5. अपार धन-संपदा के लिए गुड़, कनेर के पुष्प, हल्दी की गांठ व पीली सरसों से हवन करें।
 
6. करियर में चमकदार सफलता के लिए जौ, तिल व शकर से हवन करें।
 
7. कन्या के विवाह हेतु-कात्यायनी मंत्रों का इन दिनों जाप करें। 
 
8. सौभाग्य की प्राप्ति के लिए चावल,घी, केसर से हवन करें।
 
9. बच्चों का पढाई में मन नहीं लग रहा है तो गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें। फिर मोदक व दूर्वा से हवन करें।
 
10. विजय प्राप्ति हेतु आदित्यहृदय स्त्रोत, सुंदरकांड का पाठ या बगलामुखी मंत्र का जाप करें।