भक्तिरसामृतसिन्धु में भगवान् "श्री कृष्ण" के 64 गुण बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं -
(1) सम्पूर्ण शरीर का सुन्दर स्वरूप
(2 )समस्त शुभ गुणों से अंकित
(3) अतिव रूचिर
(4)तेजवान
(5) बलवान
(6) नित्य युवा
(6) अद्भुत भाषाविद्
(8) सत्यवादी
(9) मधुर भाषी
(10) वाक् पटु
(11) सुपण्डित
(12)अत्यधिक बुद्धिमान्
(13) प्रतिभावान्
(14 ) विदग्ध
(16) दक्ष
(17) कृतज्ञ
(18) दृढ़संकल्प
(19) काल तथा परिस्थियों के कुशल निर्णायक
(20) वेदों या शास्त्रों के आधार पर देखने एवं बोलने वाले
(21) पवित्र
(22) आत्मसंयमी
(23) स्थिर
(24) सहिष्णु
(25) क्षमावान्
(26) गंभीर
(27) धैर्यवान्
(28) समदृष्टि रखने वाले
(29) उदार
(30) धार्मिक
(31) शूरवीर
(32) दयालु
(33) सम्मान करने वाले
(34) भद्र
(35) विनयी
(36) लज्जावान्
(37) शरणागत पालक
(38) सुखी
(39) भक्तों के हितैषी
(41) सर्वमंगलमय
(42) परम शक्तिमान्
(43) परमयशस्वी
(44) लोकप्रिय
(45) भक्तों का पक्ष लेने वाले
(46) समस्त स्त्रियों के लिए अत्यधिक आकर्षक
(47) सर्व आराध्य
(48) सर्व सम्पन्न
(49) सर्व सम्मान्य
(50 ) परम नियंता
(51) परिवर्तन रहित
(52) सर्वज्ञ
(53) चिर नूतन
(54) सच्चिदानंद(सदैव नित्य आनन्दमय शरीरवाले)
(55)समस्त योग सिद्धियों से युक्त ।
"श्री कृष्ण" में पांच गुण और भी होते हैं जो नारायण के शरीर में प्रकट होते हैं और ये हैं....
(56) वे अचिंत्य शक्तिमय हैं..
(57) उनके शरीर से असंख्य ब्रह्माण्ड उत्पन्न होते हैं..
(58) समस्त अवतारों के उद्गम वे ही हैं..
(59) वे अपने द्वारा मारे हुए शत्रुओं को भी मुक्ति देने वाले हैं..
(60) वे मुक्तात्माओं के लिए आकर्षक हैं ।
ये सारे गुण भगवान् "श्री कृष्ण" के साकार स्वरूप में अद्भूत ढंग से प्रकट होते हैं । इन साठ दिव्य गुणों के अतिरिक्त "श्री कृष्ण"में चार और भी गुण पाए जाते हैं जो देवताओं या जीवों में तो क्या ,स्वयं नारायण रूप में भी नहीं होते । यह गुण हैं.....
(61) वे अद्भुत लीलाओं के कर्ता हैं ( विषेकर उनकी बाल लीलाएं)
(62) वे अद्भुत भगवत् से युक्त भक्तों द्वारा घिरे रहते हैं
(63) वे अपनी वंशी से सारे जीवों को आकृष्ट कर सकते हैं
(64) उनका रूप सौंन्दर्य अद्भुत है जो सारी सृष्टि में अद्वितीय है।
इन 64 असाधारण गुणों से युक्त श्री कृष्ण 64 कला से भी परिपूर्ण हैं।