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Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 28 अगस्त 2024 (20:44 IST)

गुजरात का नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, पांडवों ने किया था स्थापित, नागदोष से मुक्ति का चमत्कारी स्थान

गुजरात के द्वारका क्षेत्र के दारुकावन में स्थित है अत्यंत ही प्राचीन नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर

Nageshvara Jyotirling Gujarat
Nageshvara Jyotirling Gujarat : गुजरात के द्वारिकापुरी धाम से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गोमती द्वारका से बेट द्वारका जाते समय रास्ते में ही पड़ता है। यहां पर भगवान शिव को नागों के देवता के रूप में पूजा जाता है। इसलिए इसका नाम नागेश्‍वर ज्योतिर्लिंग शिव मंदिर है। यह भगवान शिव का दसवां ज्योतिलिंग है।ALSO READ: गुजरात में हैं 2 ज्योतिर्लिंग, रोचक है सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी
 
याम्ये सदंगे नगरेऽतिरम्ये, विभूषिताडं विविधैश्च भोगै:।
सद्भक्ति मुक्ति प्रदमीशमेकम्, श्री नागनाथं शरणं प्रपद्यै।।
 
मंदिर की प्राचीनता:-
1. इस पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन की हिंदू शास्त्रों में बड़ी महिमा बताई गई है। कहा गया है कि जो श्रद्धापूर्वक इसकी उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा वह सारे पापों से छुटकारा पाकर समस्त सुखों का भोग करता हुआ अंत में भगवान्‌ शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को प्राप्त होगा।
 
एतद् यः श्रृणुयान्नित्यं नागेशोद्भवमादरात्‌।
सर्वान्‌ कामानियाद् धीमान्‌ महापातकनाशनम्‌॥
 
2. रुद्र संहिता में इन भगवान को दारुकावने नागेशं कहा गया है। नागेश्वर का अर्थ है नागों के भगवान। नाग जो भगवान शिव के गर्दन में चारों ओर लिपटा होता है। शिव पुराण में गुजरात राज्य के भीतर ही दारूकावन क्षेत्र में स्थित ज्योतिर्लिंग को ही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति में भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को दारूकावन क्षेत्र में ही वर्णित किया गया है।ALSO READ: Sawan somwar 2024: इन 3 राज्यों में जाकर आप 7 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करें, जानें प्लान
 
3. पंडवों से भी इस मंदिर और स्थान का इतिहास जुड़ा हुआ है। वनवास के दौरान पांडव यहां दारुकवन आए थे। उनके साथ एक गाय थी जो यहां के एक सरोवर में प्रतिदिन उतरकर दूध देती थी। एक बार भीम ने यह देखा और अगले दिन वह गाय का पीछा करते हुए सरोवर में उतर गया और उसने देखा कि वह गाय हर दिन एक शिवलिंग पर अपना दूध छोड़ रही थी। तब सभी पांडवों ने महादेव के इस शिवलिंग के दर्शन किए। श्रीकृष्ण ने उन्हें उस शिवलिंग के बारे में बताया और कहा यह शिवलिंग कोई साधारण नहीं है यह नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है। तब पांचों पांडवों ने उस स्थान पर भूतल पर स्थित ज्योतिर्लिंग का भव्य अखंड पत्थर का मंदिर बनवाया था।
 
4. कई काल बीत जाने के बाद वर्तमान मंदिर हेमाडपंथी शैली में सेउना यादव वंश द्वारा बनाया गया था और कहा जाता है कि यह 13वीं शताब्दी का है, जो 7 मंजिला पत्थर की इमारत का बनाया था। बाद में छत्रपति संभाजी महाराज के शासनकाल में औरंगजेब ने इस मंदिर की इमारतों को नष्ट कर दिया था। मंदिर के वर्तमान खड़े शिखर का पुनर्निर्माण अहिल्याबाई होल्कर द्वारा किया गया है।

नाग दोष से मुक्ति दिलाने वाले बाबा नागेश्वर: जिन लोगों की कुंडली में नागदोष, सर्पदोष या कालसर्प दोष होता है वे इस मंदिर में जाकर पूजा पाठ करवाते हैं। इस मंदिर में अलग-अलग धातुओं से बने नाग-नागिन अर्पित करने से नाग दोष से छुटकारा मिल जाता है।
 
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर परिचय:- ये मंदिर सुबह 5:00 बजे आरती के साथ ही खुल जाता है लेकिन यहां भक्तों को प्रवेश सुबह 6:00 बजे मिलता है। इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण अद्भुत और सौंदर्यीकरण विधि से हुआ है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में निचले स्तर पर भगवान शिव के एक ज्योतिर्लिंग को स्थापित किया गया है। इस ज्योतिर्लिंग के ऊपर चांदी का एक बड़ा सा नाग बनाया गया है। ज्योतिर्लिंग के पीछे ही माता पार्वती की प्रतिमा भी स्थापित की गई है।ALSO READ: Sawan 2024: सावन के महीने में ऐसे करें एक ही राज्य के इन दो ज्योतिर्लिंगों के दर्शन, जानिए कैसे करना है प्लानिंग
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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा:
सुप्रिय नामक एक बड़ा धर्मात्मा और सदाचारी वैश्य था। वह भगवान्‌ शिव का अनन्य भक्त था। वह निरंतर उनकी आराधना, पूजन और ध्यान में तल्लीन रहता था। अपने सारे कार्य वह भगवान्‌ शिव को अर्पित करके करता था। मन, वचन, कर्म से वह पूर्णतः शिवार्चन में ही तल्लीन रहता था। उसकी इस शिव भक्ति से दारुक नामक एक राक्षस बहुत क्रुद्व रहता था।
 
उसे भगवान्‌ शिव की यह पूजा किसी प्रकार भी अच्छी नहीं लगती थी। वह निरंतर इस बात का प्रयत्न किया करता था कि उस सुप्रिय की पूजा-अर्चना में विघ्न पहुँचे। एक बार सुप्रिय नौका पर सवार होकर कहीं जा रहा था। उस दुष्ट राक्षस दारुक ने यह उपयुक्त अवसर देखकर नौका पर आक्रमण कर दिया। उसने नौका में सवार सभी यात्रियों को पकड़कर अपनी राजधानी में ले जाकर कैद कर लिया। सुप्रिय कारागार में भी अपने नित्यनियम के अनुसार भगवान्‌ शिव की पूजा-आराधना करने लगा।
 
अन्य बंदी यात्रियों को भी वह शिव भक्ति की प्रेरणा देने लगा। दारुक ने जब अपने सेवकों से सुप्रिय के विषय में यह समाचार सुना तब वह अत्यंत क्रुद्ध होकर उस कारागर में आ पहुँचा। सुप्रिय उस समय भगवान्‌ शिव के चरणों में ध्यान लगाए हुए दोनों आँखें बंद किए बैठा था। उस राक्षस ने उसकी यह मुद्रा देखकर अत्यंत भीषण स्वर में उसे डाँटते हुए कहा- 'अरे दुष्ट वैश्य! तू आँखें बंद कर इस समय यहाँ कौन- से उपद्रव और षड्यंत्र करने की बातें सोच रहा है?' उसके यह कहने पर भी धर्मात्मा शिवभक्त सुप्रिय की समाधि भंग नहीं हुई। अब तो वह दारुक राक्षस क्रोध से एकदम पागल हो उठा। उसने तत्काल अपने अनुचरों को सुप्रिय तथा अन्य सभी बंदियों को मार डालने का आदेश दे दिया। सुप्रिय उसके इस आदेश से जरा भी विचलित और भयभीत नहीं हुआ।
 
वह एकाग्र मन से अपनी और अन्य बंदियों की मुक्ति के लिए भगवान्‌ शिव से प्रार्थना करने लगा। उसे यह पूर्ण विश्वास था कि मेरे आराध्य भगवान्‌ शिवजी इस विपत्ति से मुझे अवश्य ही छुटकारा दिलाएँगे। उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान्‌ शंकरजी तत्क्षण उस कारागार में एक ऊँचे स्थान में एक चमकते हुए सिंहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए।
 
उन्होंने इस प्रकार सुप्रिय को दर्शन देकर उसे अपना पाशुपत-अस्त्र भी प्रदान किया। इस अस्त्र से राक्षस दारुक तथा उसके सहायक का वध करके सुप्रिय शिवधाम को चला गया। भगवान्‌ शिव के आदेशानुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा।