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Last Updated : सोमवार, 6 जून 2022 (14:31 IST)

जम्मू के डोडा स्थित वासुकी नाग मंदिर का रहस्य

जम्मू के डोडा स्थित वासुकी नाग मंदिर का रहस्य - Vasuki Nag Temple Jammu Doda
Vasuki Nag Temple Vasak Dhera : जम्मू कश्मीर के डोडा स्थित वासुकी नाग मंदिर में तोड़फोड़ की घटना सामने आई है। कश्मीर में पंडितों के साथ ही अब मंदिरों को भी निशाना बनाया जा रहा है। हालांकि यह मंदिर जम्मू में है। जम्मू संभाग में हुई इस घटना के बाद से स्थानीय हिन्दुओं में रोष व्याप्त है। घटना रविवार (5 मई, 2022) देर रात या फिर सोमवार को तड़के हुई। मंदिर में अंदर से लेकर बाहर तक तोड़फोड़ मचाई गई है। आओ जानते है कि क्या है इस मंदिर का महत्व।
 
वासुकि नाग मंदिर (डोडा जम्मू) : यह भद्रेवाह का सबसे पुराना मंदिर है जो 11वीं सदी में बना था। मंदिर में वासुकि भगवान की मूर्ति लगी हुई है जो एक बड़े से पत्‍थर से बनाई गई है। भद्रवाह के इस मंदिर को भद्रकाशी के रूप में भी जाना जाता है। मंदिर वास्तुकला और मूर्तिकला का एक अद्भुत नमूना है, जहां एक पत्थर पर दो प्रतिमाएँ (वासुकी और राजा जामुन वाहन) तराशी हुई हैं। इससे थोड़ी ही दूर पर कैलाश कुंड स्थित है, जिसे वासुकी कुंड के नाम से भी जानते हैं।
जनश्रुति के अनुसार कहा जाता है कि सन् 1629 में बसोहली के राजा भूपत पाल ने भद्रवाह पर अपना अधिकार जमा लिया था। परंतु कैलाश कुंड पार करते समय वे एक नागपाश में फंस गए। भयभीत राजा ने विशाल नाग से क्षमा याचना की तब नाग ने राजा के कान के छल्ले से यहां एक मंदिर बनवाने को कहा। यहां स्थित कुंड को ‘वासक छल्ला’ भी कहते हैं, क्योंकि मंदिर निर्माण में देरी के कारण आक्रोशित नागराज ने पानी पी रहे राजा को छल्ला झरने से वापस कर दिया था। हालांकि, राजा ने शीघ्री ही मंदिर निर्माण कराक छल्ला वापस समर्पित किया। कथा है कि रास्ते में मूर्तियां जहां रखी गईं और वहां से उठी ही नहीं।

कैलाश कुंड या कपलाश जिसे वासुकी कुंड के नाम से भी जाना जाता है, नागराज वासुकी का निवास स्थान है और समुद्र तल से 14500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। दूर-दूर से हजारों भक्त मंदिर के दर्शन करने और भगवान वासुकी को प्रणाम करने आते हैं।  मंदिर में वासुकी नाग और राजा जमुते वाहन की एक ही काले पत्थर की मूर्ति है। कहते हैं कि वासुकी नाग की एक सुंदर मूर्ति शानू समुदाय के पूर्वजों द्वारा बनाई गई थी।
 
वासुकी नाग मंदिर में दाईं ओर भगवान वासुकी नाग और बाईं ओर राजा जमुते वाहन की मूर्तियां हैं, जो रहस्यमय तरीके से बिना किसी सहारे के अपने आप खड़ी हैं। 7 सिर वाले भगवान नाग 'वासुकी नाग' को समर्पित एक वार्षिक तीर्थयात्रा, भद्रवाह की कैलाश यात्रा इस मंदिर में अनुष्ठान पूजा के बाद ही शुरू होती है।

 
 
कौन है वासुकी : हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार, वासुकि नागों के राजा हुआ करते थे जिनके माथे पर नागमणि लगी थी। शिवजी के गले में जो नाग है वह वासुकि ही है। इनकी बहन का नाम माता मनसा देवी है। वसुकी के पिता ऋषि कश्यप थे और उनकी मां कद्रू थीं। प्राचीनकाल में कश्मीर का संपूर्ण क्षेत्र ही शेषनाग (अनंतनाग) और उनके भाईयों का ही क्षेत्र था। यहां पर उन्हीं का राज था। 


मंदिर स्थापना से जुड़ी कथा : भद्रवाह को 'नागोन की भूमि' भी कहा जाता है। 8वीं और 9वीं विक्रम संवंत के बीच भद्रवाह के चंद्रवंशी राजा, महाराजा धूरी पाल ने अपने राज्य में वासुकी नाग मंदिर के निर्माण की शुरुआत की थी। हालांकि मंदिर निर्माण शुरू हो गया था लेकिन कई प्रयासों के बाद भी मंदिर में मूर्तियों स्थापित करने में बाधा उत्पन्न हो रही थी। तब राजा ने पुजारियों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि यहां एक वासक धेरा दुष्ट आत्मा रहती है और उससे छुटकारा पाने के लिए, एक ब्राह्मण की बलि देना होगा।
 
राजा को यह सुनकर आश्चर्य हुआ लेकिन धूर्त पुजारियों की बात में आकर राजा ने आदेश दे दिया। सलाहकारों की सलाह पर गांव मनवा के एक ब्राह्मण ने उन्हें देवराज और बोधराज नामक ब्राह्मण भाइयों में से एक को पकड़ने का सुझाव दिया। सैनिक गए तब उन्होंने देखा कि उनमें से एक ब्राह्मण बोधराज ध्यान कर रहा था। जैसे ही राजा के सिपाही ने ब्राह्मण का सिर काटने के लिए अपनी तलवार खींची, उसके हाथ हवा में जम गए। 
 
फिर जब वह ब्राह्मण ध्यान से जागा तो उसने सैनिक से उसे मारने का उद्देश्य पूछा। इस बीच, ब्राह्मण का भाई देवराज भी जंगलों से शिविर में लौट आया। सिपाहियों ने उन्हें राजा के आदेशों के बारे में बताया। जिसके लिए बोधराज दत्त राजा के सामने जाने के लिए तैयार हो गए। दरबार पहुंचने पर राजा ने विनम्रता से उसे कहानी सुनाई और मदद की गुहार लगाई। इसके लिए, बोधराज ने एक शर्त रखी कि मैं अपना सिर दूर्वा घास से काटूंगा लेकिन मेरी शर्त यह है कि सिर काटने के बाद जहां तक मेरा धड़ चलेगा वहां तक की भूमि मेरे भाई और परिवार को सौंपना होगा और जब तक मेरा धड़ चलेगा तब तक आप उसे रोक नहीं सकते। राजा ने शर्त मांग ली। 
 
बोधराज ने अपना सिर काट कर रख दिया और सिरविहीन शरीर जाग गया और राज्य भद्रवाह में चलने लगा। राजा को अपनी गलती का अहसास हो चला था, क्योंकि सिर मीलों तक पैदल चलता रहा। उस शरीर को मीलों तक जाने के बाद भी कोई रोकने की हिम्मत नहीं कर पाया। अंत में खुद वासुकी नाग गाय के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने उस धड़ को रोका। जिसके बाद इस स्थान पर सभी धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ पवित्र संत बोधराज दत्त के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया। इस घटना से क्रोधित होकर, ब्राह्मण देवराज ने अंतिम अनुष्ठान के बाद घोषणा की कि उनका परिवार न तो वासुकी मंदिर में पूजा करने के लिए प्रवेश करेगा और न ही प्रसादम या चरणामृत के रूप में कोई प्रसाद स्वीकार करेगा।
 
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