इन दिनों मेजर फिल्म की चर्चा है। इस फिल्म में देश के जांबाज सैनिक संदीप उन्नीकृष्णन की कहानी है। वही संदीप उन्नीकृष्णन जिन्होंने मुंबई में 26/11 के हमले अपनी बहादुरी की ऐसी मिसाल पेश की थी कि वो न सिर्फ आज भी याद रखी जाती है, बल्कि उनकी यह मिसाल इतिहास में भी दर्ज हो गई है।
जांबाज मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की बहादुरी की कहानी दिखाने वाली फिल्म 3 जून को रिलीज हो रही है। फिल्म के बहाने आइए जानते हैं कौन हैं संदीप उन्नीकृष्णन और क्यों उनकी बहादुरी के किस्से आज भी मिसाल के तौर पर याद किए जा रहे हैं।
मुंबई में 26 नवंबर को कई जगह पर आतंकियों ने हमले किए थे। सबसे बडा हमला मुंबई की ताज होटल पर हुआ था। आतंकियों ने पूरे होटल को बंधक बना लिया था। कई लोग होटल में फंसे हुए थे, ऐसे में सेना का फोकस पहले फंसे हुए लोगों को सुरक्षित बाहर निकालना था। यह काम आम पुलिसकर्मियों के बस का नहीं था।
इस बेहद खतरनाक स्थिति से निपटने के लिए एनएसजी कमांडो ऑपरेशन चलाने का फैसला किया गया। इस कमांडो ऑपरेशन की को लीड करने का काम मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को सौंपा गया। मेजर संदीप ने ताज में घुसने और घेरने की पूरी रणनीति बनाई।
मैं देख लूंगा कहा, और कई आतंकियों को ढेर कर दिया
रणनीति तो उन्होंने बनाई लेकिन अपने कमांडो को उन्होंने पीछे ही रखा, जबकि वे खुद आगे रहे। होटल में आतंकियों के ठिकाने पता कर टारगेट करना शुरू किया। दोनों तरफ से जमकर गोलीबारी हो रही थी। इस बीच मेजर संदीप को गोली भी लग गई, क्योंकि वे बेहद आगे जाकर आतंकियों को टारगेट कर रहे थे, उनकी बहादुरी देख आतंकियों के भी पसीने छूट गए थे। संदीप गोलीबारी में घायल हो गए, उनके पूरे शरीर से खून की धारा बह रही थी, लेकिन ऐसी हालत में भी वे करीब 14 बंधकों को आतंकियों के चंगुल से बचाकर निकाल आए।
आलम यह था कि वे गोलियां चलाते हुए होटल के ऊपरी हिस्से में जा पहुंचे। पीछे उनकी फोर्स उन्हें कवर कर रही थी। इस दौरान जब कवर कर रहे उनके एनएसजी कमांडो आगे आने लगे तो उन्होंने कहा था...
'ऊपर मत आना, मैं इन सबको अकेले देख लूंगा' ... ये संदीप के आखिरी शब्द थे जो उनके साथियों ने सुने थे। हालांकि तब तक संदीप अकेले कई आतंकियों को ढेर कर चुके थे, लेकिन खून से लथपथ और घायल संदीप उन्नीकृष्णन आतंकियों को ढेर करते हुए और अपने लोगों को बचाते हुए खुद शहीद हो गए।
उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर अपना सारा खून बहा दिया और 26/11 के हमले के इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों से दर्ज करा गए।
कई ऑपरेशन का रहे अहम हिस्सा
संदीप उन्नीकृष्णन को सिर्फ मुंबई हमले के लिए ही नहीं, बल्कि देश में कई ऑपरेशन में उनकी बहादुरी के लिए याद किया जाता है। कारगिल समेत वे देश सबसे अहम ऑपरेशन विजय, ऑपरेशन पराक्रम, ऑपरेशन रक्षक, काउंटर इनसर्जेंसी, और ऑपरेशन ब्लैक टोर्नेडो का हिस्सा रह चुके थे। गर्व करने वाली बात यह है कि संदीप अपने देश से इतना प्यार करते थे कि वो चाहते तो अपने पिता की तरह इसरो में वैज्ञानिक बन सकते थे। लेकिन उन्होंने देश की सेवा का विकल्प चुना और देश के लिए अपना बलिदान दे दिया।
कौन थे संदीप उन्नीकृष्णन?
15 मार्च 1977 को बेंगलुरु में भारत के एक जांबाज बेटे ने जन्म लिया था। यह कोई और नहीं 26/11 हमले में अकेले कई आतंकियों से भिड़ जाने वाले मेजर संदीप उन्नीकृष्णन थे। उनके पिता इसरो में वैज्ञानिक थे, लेकिन वे सेना में गए। संदीप उन्नीकृष्णन सातवीं बिहार रेजीमेंट के जवान थे।
कहा जाता है कि जब 29 नवंबर के दिन उनकी अंतिम यात्रा निकाली जा रही थी तो आसमान भी उदास हो गया था। दरअसल, 29 नवंबर के दिन बेंगलुरु में गहरे काले बादल छा गए थे और मौसम पूरी तरह से गमगीन हो गया था। अखबारों ने हैडिंग बनाया कि देश के जांबाज सिपाही के लिए धरती ही नहीं आसमान भी उदास हो गया था।
उनका अंतिम संस्कार सैन्य सम्मान के साथ किया गया था। बेंगलुरु में एक सड़क का नाम उनके नाम पर रखा गया है। शहर की एक रिंग रोड जंक्शन पर उनकी प्रतिमा भी लगाई गई है। भारत सरकार ने संदीप को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था।