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Written By WD Feature Desk
Last Modified: सोमवार, 26 मई 2025 (13:14 IST)

वीर सावरकर जयंती पर जानिए पतित पावन मंदिर की कहानी, आज भी देता है सामाजिक समानता का संदेश

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patit pavan mandir ratnagiri: 28 मई 2025 को हम वीर सावरकर की 142वीं जयंती मना रहे हैं। स्वतंत्रता संग्राम के इस महानायक को अक्सर उनके राजनीतिक विचारों और क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए जाना जाता है, लेकिन उनका सामाजिक सुधारों में योगदान भी उतना ही महत्वपूर्ण है। रत्नागिरी स्थित पतित पावन मंदिर इसका जीवंत उदाहरण है, एक ऐसा मंदिर जिसने जाति व्यवस्था की दीवारों को तोड़कर सामाजिक समरसता की नई मिसाल कायम की। वीर सावरकर ने 1924 में अंडमान की सेल्युलर जेल से रिहा होने के बाद रत्नागिरी में नजरबंद रहते हुए सामाजिक सुधारों की दिशा में कार्य करना शुरू किया। उस समय हिंदू समाज में छुआछूत और जातिगत भेदभाव गहराई से व्याप्त था। सावरकर ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और एक ऐसे मंदिर की परिकल्पना की जहां सभी जातियों के लोग समान रूप से पूजा-अर्चना कर सकें।
 
इस विचार को साकार करने के लिए उन्होंने रत्नागिरी के उदार व्यापारी श्रीमान भागोजीशेठ कीर से सहयोग प्राप्त किया। 10 मार्च 1929 को शंकराचार्य डॉ. कुर्तकोटी द्वारा मंदिर की नींव रखी गई और 22 फरवरी 1931 को इसका उद्घाटन हुआ। मंदिर में लक्ष्मी-नारायण की मूर्तियां स्थापित की गईं, और इसका नाम पतित पावन रखा गया, जिसका अर्थ है "गिरे हुए का उद्धार करने वाला"।
 
मंदिर की विशेषताएं
पतित पावन मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि यह सभी जातियों के लिए समान रूप से खुला था। मंदिर के ट्रस्टी बोर्ड में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और तथाकथित अछूत जातियों के प्रतिनिधि शामिल थे। पूजा-अर्चना के लिए कोई जातिगत प्रतिबंध नहीं था, और कोई भी हिंदू, चाहे वह किसी भी जाति से हो, मंदिर में प्रवेश कर सकता था और पूजा कर सकता था।
 
सावरकर ने मंदिर परिसर में अखिल हिंदू गणेशोत्सव की शुरुआत की, जो 1930 से 1937 तक आयोजित हुआ। इस उत्सव का उद्देश्य सभी जातियों के लोगों को एक साथ लाकर सामाजिक एकता को बढ़ावा देना था। उत्सव के दौरान भजन, कीर्तन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और व्याख्यान आयोजित किए जाते थे, जिनमें सभी जातियों के लोग भाग लेते थे।
 
पतित पावन मंदिर का आज का स्वरूप
आज पतित पावन मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और समानता का प्रतीक बन चुका है। मंदिर परिसर में वीर सावरकर का स्मारक भी स्थित है, जहां उनके जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान की झलक मिलती है। यह स्थान युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो सामाजिक न्याय और समानता के मूल्यों को समझने और अपनाने की दिशा में मार्गदर्शन करता है। 


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